रविवार, 13 जुलाई 2014

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फिल्म एक नजर में : हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया


कलाकार : वरुण धवन ,आलिया भट ,आशुतोष राणा ,सिद्धार्थ शुक्ल ,गौरव पाण्डेय

बॉलिवुड फिल्मो का यही दुर्भाग्य कहा जायेगा के अब कुछ नयी कहानिया बनने के बजाय 
उन्ही पुराने घिसे पिटे ढर्रे को जबरदस्ती यंगस्टर्स की पसंद के नाम पर खिंचा जा रहा है, 
चलाया जा रहा है ! चूँकि फिल्मो को कहानी के लिहाज से कम ,इंटरटेनिंग एवं 
हलकी फुलकी बनाने के प्रयास ज्यादा होते है इसलिए ऐसी फिल्मे अच्छा खासा नाम भी कमा लेती और दाम भी .
निर्माता यदि करण जौहर हो तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है ! 
फिल्म की कहानी का सार वही है जो अब तक की सैकड़ो
फिल्मो का सार रहा है ,लड़का लडकी को देखते ही प्यार ,कुछ प्रयासों के बाद लडकी का मान जाना ! 
लडकी की शादी कही और ,लडके का लडकी के पैरेंट्स को इम्प्रेस करने का पुराना फार्मूला ! 
और क्लाईमेक्स में हमेशा की तरह कठोर दिल बाप का हृदय परिवर्तन और भरी शादी तोडकर एक नए अनजान लडके संग अपनी बिटिया का विवाह करवा देना .
बस अब ले देकर यही फार्मुले बचे है ! कुछ नया करने का प्रयास नहीं करना चाहते ,
क्योकि कमाई जारी है ,इन फिल्मो को हाथो हाथ लिया भी जाता है .
अब कहानी का सार बता ही चुका हु किन्तु फिर भी इसके विस्तार पर आते है .
‘हंप्टी शर्मा’ ( वरुण धवन ) एक मस्तमौला युवक है जो पढाई से ज्यादा आवारगी में ध्यान देता है ! 
लडकियों के पीछे लगे रहना उसकी फितरत सी है ( पता नहीं क्यों अमुमन  हर फिल्म में नायक ऐसा ही होता है ) उसका साथ देने के लिए उसके दो मित्र भी है शंटी ,पप्पू जो उसके हर काम में बराबरी का सहयोग देते है ,
इसमें वह बाप भी है जो अपने बेटे की हरकतों से परेशान तो दिखता है लेकिन करता कुछ नहीं है .
चूँकि पढाई तो कुछ की नहीं तो पास करवाने के लिए हर ऐरे गैरे हथकंडे अपनाता है ‘हंप्टी ‘ ! 
इसी सिलसिले में वह प्रोफेसर को बंधक बना लेता है ,लेकिन वहा उसकी भांजी ‘काव्या ‘ 
( आलिया भट ) आकर अपने मामा को बचाती है और ‘हंप्टी ‘ की मदद करके उसे पास भी करवा देती है .
काव्या अम्बाला से दिल्ली अपनी शादी की खरीदारी के लिए आई है ( घरवालो से झगड़ा करके ,
पांच लाख का लहंगा खरीदने )
क्योकि उसकी सहेली गुरप्रीत ने अपनी शादी में ढाई लाख का लहंगा खरीदा है तो 
अब उसकी जिद है के वह पांच लाख का लहंगा पहनेगी ! किन्तु उसके माता पिता एवं भाई इसे फिजूलखर्ची मानते है ,जिस से काव्या अपनी कमाई से खरीदने की जिद करके अपने मामा के यहाँ दिल्ली आ जाती है
 ( माँ बाप को जरा भी फ़िक्र नहीं के बेटी इतने पैसे कहा से लाएगी )
और यहाँ ‘हंप्टी ‘ से मुलाक़ात के बाद ‘हंप्टी ‘ को काव्या से प्यार हो जाता है ! 
और वह उसकी मदद भी करता है ,कुछ घटनाओं के पश्चात दोनों में प्यार हो जाता है और 
शारीरिक सम्बन्ध भी ( जैसा के आजकल का फैशन है ) .
किन्तु काव्या इसके बाद अपनी शादी की बात कहकर अम्बाला निकल जाती है ‘हंप्टी ‘ से विदा लेकर ! 
हंप्टी उसके गम में है और फाईनली उसे अहसास होता है के वह उसके बिना जी नहीं सकता ! 
तो अपने मित्रो के संग जा पहुँचता है काव्या के घर !
जहा उसकी मुलाकात होती है मिस्टर सिंग ( आशुतोष राणा ) जो काव्या के पिता है ! 
सिंग पहली नजर में ही हंप्टी के इरादे भांप जाते है और उनकी पिटाई करवा कर भगा देते है ,
लेकिन हंप्टी फिर आ जाता है ,तब काव्या की जिद से सिंग हंप्टी को एक मौक़ा देते है के काव्या के 
मंगेतर में कोई कमी ढूंढ कर बता दे तो वह राजी ख़ुशी अपनी बेटी की शादी उससे करवा देगा !
तय समय पर ‘अंगद ‘ (सिद्धार्थ शुक्ल ) अपनी होनेवाली दुल्हन के घर लावलश्कर के साथ आता है ( ये रिवाज कब बदलेगा फिल्मो में ) और फिर शुरू होती हंप्टी और उसके दोनों मित्रो की खुराफाते ! 
जिसमे वे सफल होते है या नहीं यही बाकी कहानी है .
बस यही ! तो समीक्षा पढ़कर और फिल्म देखकर यदि आपके मन में दर्जनों फिल्मो के 
नाम घूम जाए तो हैरानी की बात नहीं होगी !
फिल्म में कुछ भी नया नहीं है ! बस एक लाईट फिल्म है , हल्का फुल्का मनोरंजन करती है , 
बाकी कोई शिगूफे छोड़े जाए तारीफ़ में ऐसी कोई बात नहीं है फिल्म में .
हंप्टी के रोल में वरुण धवन ने कोई कमाल नहीं किया ,वो वही करते नजर आये जो अब तक की 
फिल्मो में करते आ रहे है ! वरुण को चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं में देखना अभी बाकी है ! 
आलिया ने भी सिर्फ टू स्टेट्स को ही दोहराया है ,लेकिन प्यारी लगती है ,चुलबुला अभिनय ! 
आशुतोष राणा समय के अनुसार कभी सख्त तो कभी नर्म नजर आये है ,
अपनी भूमिका में एकदम जंचे है ( हिरोपंती के प्रकाश राज याद आ जायेंगे ) 
तो सिद्धार्थ शुक्ला सिर्फ फिल्म की लम्बाई बढाते नजर आये , 
उल्लेखनीय भूमिकाओं में आशुतोष राणा के साथ साथ हंप्टी के मित्रो की भूमिका 
कर रहे गौरव पांडे और साहिल वेध ने जरुर ध्यान खिंचा ! बढ़िया अभिनय ,
तीनो मित्रो की जुगलबंदी के दृश्य हंसाते है ,गुदगुदाते है ! खासकर पीटने के बाद वाले दृश्य में .
संगीत वैसा ही है जैसा आजकल फैशन में है ,
चालु बोल और शोरशराबेवाला ! कुछ गाने जुबान पर है आजकल (
जैसा के हर फिल्म के रिलीज तक होता है ) हिट भी है ( सिर्फ दो हफ्ते या तीन हफ्ते तक ) ,
उल्लेखनीय नहीं है ख़ास .
बस कुछ और देखने का ऑप्शन न हो और मुड बना ही चुके हो तो देख सकते है ! 
नहीं देखे तो भी कोई बात नहीं ,आगे भी ऐसी फिल्मे कतार में मिलेंगी .
हलकी फुलकी मनोरंजक एवरेज फिल्म ! ( पारिवारिक दर्शक दूर ही रहे )
ढाई स्टार

देवेन पाण्डेय 

4 टिप्‍पणियां:

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