शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

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’चलायिब गोली दनादन ‘’ ( व्यंग्य )

भोजपुरी स्टार का भोजपुरी फिल्मो में बढ़ति अश्लीलता विषय में लिया गया इंटर व्यू,
नोट : सभी पात्र एवं घटनाये काल्पनिक है ! उद्देश्य मात्र मनोरंजन है, दिल पे ले हमारी बला से 
तिवारी जी आज बड़े खुश थे ! उभरते पत्रकार थे , और उन्हें अपनी पत्रिका के लिये भोजपुरी सुपरस्टार ‘सन्देश लाल यादव ‘ जिन्हें भोजपुरी फिल्म जगत में ‘बौरहवा ‘’ ( पगला ) नाम से बुलाया जाता था , का इंटरव्यू जो लेना था .
पहुँच गये ‘’चलायिब गोली दनादन ‘’के सेट पर ! एक आईटम डांस फिल्माया जा रहा था , ‘सन्देश हिरोईन के आगे पीछे मटक मटक कार ठुमके लगा रहे थे ! पच्चीस डांसर्स पीछे एक लय में कोरियोग्राफर के इशारे पर नाच रहे थे , कोरियोग्राफर शक्ल से ही छंटा हुवा बदमाश लग रहा था ,
और ‘शाह ‘ जी ने पैक अप कहा ! मौक़ा देख कर ‘तिवारी ‘ जी सन्देश के सामने जा खड़े हुये .
‘’नमस्कार संदेस बाबू ‘’ बत्तिस्सी निपोरते हुये तिवारी मुकुराये
‘’नमस्कार तिवारी जी ! नमस्कार ,आईये बैठिये ‘’ सन्देश ने हाथ जोड़ते हुये कहा और सामने की कुर्सी की ओर इशारा कर दिया .
‘’का लेंगे तिवारी जी ? चाय या काफी , अरे गोली मारिये चाय काफी को ! गर्मी बड़ा जोरो पर है तो ठंडा पीजिएगा ‘’ सन्देश ने मुस्कुराते हुये कहा , सन्देश जो भले ही भोजपुरी का सुपरस्टार था ! लेकिन वह इंटरव्यू की महत्ता से अनजान नहीं था ,इंटरव्यू देने का कोई भी मौक़ा हाथ से जाने नहीं देता था ,
चाय ठंडा निपट गया ! और तिवारी जी सीधे जर्नलिजम पर आ गये .
तिवारी : सर्वप्रथम आप हमें  यह बताये के आप अपने नाम के आगे ‘बौरहवा ‘’ क्यों लगाते है ?
सन्देश : भक्क !!! हम थोड़े ही लगाते है .यह तो जनता का प्यार है जो हमें इस नाम से पुकारती है ,
आपको शुरुवात से सब बताना पड़ेगा , दरअसल बात यह है के हम बचपन में थोड़े ‘बौरहे ‘ थे ( पागल टाईप ) पढाई लिखाई में मन नहीं लगता था ! सनीमा के दीवाने थे हम , बहुत देखते थे ,बीच बीच में गाव में दिवाली –दशहरे –होली के मौको पर नौटंकी लगती थी ! हम आसपास के आठ गाव तक चले जाते थे नौटंकी देखने के चक्कर में ,बिरहा ,बेलवरिया के दीवाने थे ( लोकगायकी का एक प्रकार ) धीरे धीरे हमने लोकगायको की नकल करनी शुरू कर दी , और हम अपने दोस्तों के बीच भी ढोलक हारमोनियम लेके बैठ जाया करते थे , लोगो की प्रशंशा में मिलने लगी तो हम और ‘बौरहे ‘ होने लगे ! आसपास के लाग हमें ‘बौरहवा ‘ के नाम से पुकारने लगे ,तभी गाव में होली के मौके पर एक नौटंकी आई और हमने किसी तरह जोड़ तोड़ करके उसमे शामिल हो गये सौ रुपईया मिले थे ,अब हमने नाच के भी दिखाया तो एक्कावन रुपईया और मिला !
हम तो खुश हो गये ,ईसी बीच यह बात बाबूजी के संज्ञान में आई ,और उस शाम हमें बेंत से मार पड़ी ! बाबूजी सख्त खिलाफ थे के हम ‘नचनिया ‘ बने ! बाबूजी नाचगाने वालो को यही कहा करते थे .
बस हमने समझ लिया के अब अपना यहाँ ठिकाना नहीं है कौनो ,तो हम उसी दल के साथ भाग लिये ,उसके बाद कई शहरों में शो हुये और लोगो का अच्छा खासा प्रतिसाद मिला , एक लोकल म्यूजिक कम्पनी ने हमारा कैसेट जारी कर दिया ‘बौरहवा पगलायिल बा ‘’ और इसके बाद हमारी डिमांड बढ़ी तो बाबूजी ने हमें फिर अपना लिया .
तिवारी : भोजपुरी फिल्मो में बढती अश्लीलता के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?
सन्देश : हम बहुत चिंतित है ईस बात को लेकर ,अफ़सोस होता है के कुछ लोग खाली पैसा बनावे खातिर आपन संस्कृति के गिरवी रख रहिल बानी ! माफ़ करी मेरा कहने का अर्थ यह था के कुछ लाग सिर्फ पैसा कमाने के खातिर और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिये अपनी संस्कृति का बंटाधार कर रहे है .
तिवारी : किन्तु सन्देश जी ,आपकी शुरवाती अल्बम्स और नौटंकी भी काफी अश्लील और द्विअर्थी हुवा करती थी ,
सन्देश ( झेंपते हुये और बनावटी हंसी हस्ते हुये ) हाहाहा तिवारी जी लागत है रवुआ ( आप ) पूरी छानबीन करके आईल बानी .
तिवारी : अब पत्रकार है तो इतना तो करना ही पड़ता है ! और आप भोजपुरी में क्यों बाते कर रहे है ?
सन्देश : हम भोजपुरी जो ठहरे , आपन भाषा पे गर्व है हमका .
तिवारी : क्षमा कीजियेगा सन्देश जी किन्तु आप तो जौनपुर से बिलांग करते है ! और वहा तो ‘भोजपुरी ‘ नहीं अवधि बोली जाती है अधिकतर , भोजपुरी तो बिहार के ‘भोजपुर ‘ गाव से शुरू हुयी थी .
सन्देश : हीहीही ( खिसियानी हंसी ) तिवारी जी समझा कीजिये ! हमारी फिल्मे भोजपुरी है तो हमें कहना पड़ता है यह सब ,वैसे भी भोजपुरी तो हर जगह देखि जाती है उत्तर प्रदेश हो या बिहार या मध्य प्रदेश और अब तो बम्बई (मुंबई ) में भी देखि जाती है .
तिवारी : अच्छा जाने दीजिये ईस बात को , हम भोजपुरी सिनेमा के गिरते स्तर पर आते है .
सन्देश : हां यह बात काफी जरुरी है ! इसके लिये हमें कहानियों पर ध्यान देना होगा , फिल्मे शशक्त माध्यम है समाज में सन्देश देने का तो हमें ऐसी सार्थक फिल्मे बनानी चाहिए ,बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ हमें एकजुट होना पड़ेगा .
तिवारी : वह तो ठीक है सन्देश जी किन्तु अभी अभी आप आईटम सांग फिल्मा कर आ रहे है ! भोजपुरी आईटम क्वीन कहे जाने वाली ‘दुर्भावना ‘ जी के साथ ,और उनके कोस्ट्युम भी काफी अश्लील लग रहे थे ,गानों के बीच उनका नृत्य भी काफी अश्लील लग रहा था ,और आप कह रहे है के आप बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ है ?
सन्देश : ( सकपकाया हुवा ) : तिवारी जी ,हमने कहा था हम बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ , और हम कुछ सार्थक फिल्म बनाना चाहते है ,यहाँ पर यह गीत ईस कहानी का हिस्सा है ! लड़की की बिदाई हुयी है तो आईटम सांग रखवा दिया है .
तिवारी : (परेशान होते हुये ) : बेटी की बिदाई में आईटम सांग ? सन्देश जी यहाँ तो बिदाई का गीत होना चाहिये सन्देश : हां वह भी है , ईस गीत के बाद ‘बिटिया तोहार जाने से अंगना में आईल बहार ‘’ अर्ररर क्षमा कीजियेगा ‘अंगना भईल उजाड़ ‘
तिवारी : किन्तु आईटम सांग का तर्क नहीं समझ में आया ?
सन्देश : हम समझावत है ! देखिये अट्ठारह साल तक माई बाप ने बिटिया को पाला है उनके जिगर का टुकड़ा है वह ,अब उसकी बिदाई के समय माई –बाप की आँखों में पानी है और बिटियावाले दुखी है ! लेकिन बिटिया के भाई को अपने घरवालो और गाववालो का दुःख देखा नहीं जाता इसलिये उसने उन का मन बहलावे खातिर पहले से ही आईटम सांग का परोगराम बना रखा है ! समझे ? भाई का प्यार है यह जो अपने माँ बाप और गाववालो को दुखी नहीं देख सकता इसलिये यह गीत जरुरी है ,इससे सबका मन बहलता है .
तिवारी : किन्तु यह अश्लील नृत्य हावभाव ? द्विअर्थी शब्द ? इनका क्या तर्क है ?
सन्देश : तिवारी जी कौन दुनिया में पड़े हो आप ? अरे भईया हमरे भारत में आजकल अच्छे गाने पर किसका मन बहलता है ? गाने में थोड़ी सी उत्तेजना जरुरी है ,हम अश्लीलता के खिलाफ है इसलिये गाने को कलात्मक ढंग से फिल्माया है अब इसमें अश्लील का है ?
तिवारी : गाने का शीर्षक ‘पलंगतोड़ बलमा ‘’ है ! क्या यह अश्लील नहीं है ?
सन्देश : तिवारी जी ज़रा सा ह्यूमर भी जरुरी है ! यह एक अर्थपूर्ण गाना है , इसमें एक औरत है जो चूल्हे के लिये लकडिया ना होने से परेशान है ! बरसात का माहौल है तो लकड़ी कहा से आये ? तो वह अपने बलमा से कह रही है ‘पलंगतोड़ बलमा ‘ ताकि वह पलंग की लकडियो से चुल्हा जलाये ! आपने गौर नहीं किया ईस गाने में हमने भारत की गरीबी को दिखाने की कोशिश भी की है के कैसे गरीब व्यक्ति एक वक्त का खाना पकाने के लिये जद्दोजहद करता है ! अब आगरा इसमें अश्लील लगे तो अश्लील यह गाना नहीं सोचने वाले का दिमाग है ! आपको समझ में आया न के गाना कलात्मक है .
तिवारी : ( अपने बाल नोचने की मुद्रा में ) ज ..ज..जी हम समझ गये गाना बिलकुल अश्लील नहीं है ,हमने सूना है आपकी फिल्मो में महिला पात्रो की कोई अहमियत नहीं होती ? पुरुषप्रधान फिल्मे होती है आपकी जिसमे हिरोईन का कार्य सिर्फ नायक का दिल बहलाने और उसके आगे पीछे नाचने भर का होता है .
सन्देश : कैसी बाते कर रहे है तिवारी जी ? हमारी फिल्मे महिलाप्रधान होती है ,अब इसी फिल्म को देखिये नायक के साथ में चार –चार नायिकाये है तो हुयी ना फिल्म महिलाप्रधान ! वैसे भी इसमें ‘ग्राम प्रधान ‘ की भूमिका में भी एक महिला ही है तो आप कैसे कह सकते है के हमारी फिल्मे महिलाप्रधान नहीं होती ?
तिवारी : ( हैरानी से मुह खुला का खुला है ) : च ..चार नायिकाये ? सही है जी ! लगता है हम ही गलत थे
क्रमश ....
तिवारी : जाने दीजिये संदेस जी ! हम दुसरा सवाल पूछते है,क्या आपको नहीं लगता के भोजपुरी फिल्मो में एक बड़े बदलाव की जरुरत है ? अक्सर देखा गया है के भोजपुरी निर्माता अक्सर अपनी फिल्मो को बॉक्स ऑफिस पर कामयाब बनाने के लिये उसकी क्वालिटी से समझौता कर लेते है और असामायिक विषयों पर फिल्मे बना कर उत्तर भारतीय समाज को अँधेरे में रख रहे है जो के सर्वथा गलत है .
सन्देश : नहीं ऐसा नहीं है!  हम आपके कहने पूर्ण रूप से सहमत नहीं है ,हां कुछ लोग है जो अपने फायदे के लिये ऐसा करते है किन्तु सभी नहीं ,बदलाव के पक्षधर हम भी है , और हम भी चाहते है के भोजपुरी फिल्मो का विषय बदला जाये .
तिवारी : किन्तु संदेस जी , आप भोजपुरी फिल्मो के शीर्षक का ही उदाहरण ले लीजिये , इनके शीर्षक कभी भी ‘बलमा ,गोरिया ,ओढनिया ,सजनिया ,देवरवा ,ससुरवा ,साली ,जीजा के आगे नहीं बध पाते ,औउर नाम भी ऐसे होते है जैसे एक पूरा वाक्य कह दिया गया हो ‘’गोरिया मिलय अयबू अबके बजार के ‘’ या ‘ससुरवा बड़ा सतावेला ‘’या फिर ‘दहेज़ में चाहि तमंचा ‘’ क्या हम कभी कोई सार्थक शीर्षक वाली फिल्मे नहीं बना सकते ?
सन्देश : तिवारी आपने उदाहरण में जिन फिल्मो के नाम लिये उनमे से ‘गोरिया मिलय अयबू अबके बजार में ‘ और ‘दहेज़ में चाहि तमंचा ‘ तो हमारी ही फिल्मे है ,और आपको कैसे लगा के यह नाम सार्थक नहीं है ? ‘गोरिया ...फिलिम में नायक अपनी आधी जिन्दगी गुजार देता है नायिका से अपने प्रेम का इजहार करने में और जब हिम्मत कहके वह कह देता है तो लड़की मान जाती है तब मिलने के लिये किसी उपयुक्त जगह की तलाश में नायक कहता है ‘’ गोरिया मिलय अयबू अब के बजार में ‘ अर्थात ‘हे गोरी अबके मिलने आना अगले बाजार में ‘ अब यही ईस फिल्म का केंद्र है तो ईस पर नाम रखना सार्थक कैसे नहीं हुवा ?
और रही ‘ दहेज़ में चाहि तमंचा ‘ वाली बात तो नायक जो है बचपन से कमजोर है डरपोक है, तो वह चाहता है के वह मजबूत बने ! माँ बाप की ह्त्या के बाद और बहन की इज्जत लूटने के बाद वह बदल जाता है तो वह एक साजिश रचकर खलनायक की लड़की को अपने जाल में फंसाता है, और उस से शादी कर लेता है , उसके ससुर को यह नहीं पता के यह वही लडका है जिसे उसने बर्बाद किया था ! लेकिन जब वह लडके को पूछता है के दहेज़ में क्या चाहिये तब लड़का कहता है ‘’ दहेज़ में चाहि तमंचा ‘’ सब सकते में आ जाते है यह सुनकर और तब लड़का उसी तमंचे से खलनायक को मौत के घाट उतार देता है .तो आप बताईये नाम सार्थक है के नहीं है ?
तिवारी ( सन्देश को ऐसी नजरो से देख रहे है मानो वो कोई संत पुरुष हो ) : किन्तु सन्देश जी एक प्रश्न यह है के बाप को मारने के बावजूद नायिका हीरो के साथ कैसे खुश रह सकती है ?
सन्देश : क्योकि वह लडका उसका प्यार था ! और बाप काफी जुल्मी था उसकी शादी एक विधायक के बेटे से करवाना चाहता था, जब उसे अपने बाप की असलियत पता चली और नायक के ऊपर हुये जुल्मो की दास्तान सुनी तो उसे अपने बाप से नफरत हो गई .
तिवारी : लेकिन सन्देश जी हर फिल्म में नायक की बहन का काम सिर्फ ‘बलात्कार ‘ तक ही क्यों होता है ? और हमेशा बहन ही क्यों शिकार बनती है ? और नायक को हमेशा अनाथ दिखाना क्यों जरुरी है ? काहे को हर बार पूरी फैमिली खत्म करवानी जरुरी है ?
सन्देश : देखिये तिवारी जी ! हमारा  समाज काफी भावुक है उसे आक्रोश चाहिये खलनायक के खिलाफ तो खलनायक के इन जुल्मो का शिकार नायक से वे जुड़ाव महसूस करते है, तो हमें यह सब दिखाना पड़ता है .
तिवारी : किन्तु बहन के साथ जब ऐसी घटना होती है तो उसे इतनी डिटेल में दिखाने की क्या जरुरत है ? सुना है सेंसर ने काफी कैंची चलाई थी ईस दृश्य पर तब जाकर यह दृश्य इतना उत्तेजक बना था .
सन्देश : आप गलत शब्द इस्तेमाल कर रहे है तिवारी जी यह उत्तेजक नहीं ‘भयावह ‘ था ! एक त्रासदी थी जिसे हम त्रासदी के रूप में दिखाना चाहते थे ताकि दर्शक ‘बलात्कार ‘ की भयावहता समझे , एक नारी की तकलीफ समझे ! अगर देखनेवाले इसे गलत नजरिये से देखते है तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं है .
तिवारी : संदेस जी , आपकी फिल्मो में ‘बौरहवा ‘ अर्थात आप हमेशा एक गरीब आम देहाती नवयुवक का प्रतिनिधित्व करते है ! आप किसी फिल्म में रिक्शावाले है तो किसी में तांगा वाले ,किसी में मिल मजदुर तो किसी में विद्यार्थी तो हमें यह बताये के एक रिक्शावाला जो दिन भर में बामुश्किल से अपनी रोजी रोटी कमाता है वह भला ब्रांडेड जींस ,जैकेट और ब्रांडेड शूस कैसे अफोर्ड करता होगा ? आपकी फिल्मो का नायक गरीब है किन्तु जब तक वह रिक्शा MEमें नहीं बैठता या तांगा नहीं चलाता तब तक कोई उसे रिक्शावाला या तांगावाला नहीं कह सकता ! वह तो किस रईस बाप की बिगड़ी हुयी औलाद ज्यादा लगता है ,मैंने आजतक ऐसे रिक्शावाले या तांगेवाले नहीं देखे जो राडो की घड़ी पहनते हो या कीमती जूते जैकेट पहनते हो .
सन्देश : देखिये तिवारी जी ! अब हम हर जगह सच्चाई नहीं दिखा सकते , हमारा समाज पहले से ही परेशान है तो हम उसे कुछ पल देते है ख़ुशी के , अब हम हीरो को एकदम से फटीचर तो नहीं दिखा सकते ना ? आखिर लुक्स भी तो कोई चीज होती है ,हम अपने लुक्स से समझौता नहीं कर सकते ! और क्या रिक्शावाला –तांगावाला यह सब नहीं कर सकता ऐसा कही लिखा तो नहीं है ?
तिवारी : किन्तु जहा तक मैंने आपके शुरवाती अल्बम्स देखे है ! आप उसके वीडियोज में सिर्फ एक बनियान और नाडेवाला कच्छा पहने परफोर्म करते थे ,वही तो आपका ट्रेड मार्क था ! ‘बौरहवा ‘ का नाम उसी से तो प्रसिद्ध हुवा था .
सन्देश : ( झेंपते हुये ) : हां हमने भी अपने भूतकाल में कई गलत फैसले किये है जिसका मुझे अफ़सोस है ! किन्तु वह सब तो बीते हुये कल की बाते है ,आप आज को देखो हमने कैसे खुद में बदलाव किया है ! अब हम सामाजिक मुद्दों पर फिल्मे बना रहे है .
तिवारी : हमने सुना है के लोकगायक ‘’ललुवा ‘’ को भी  अपनी अगली फिल्म ‘’जहर बा के प्यार बा तोहार चुम्मा ‘’ में मौका दे रहे है ?
सन्देश : जी हां बिलकुल सही सुना है आपने ! ‘ललुवा ‘ सारे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है ,उसकी अभी उम्र ही क्या है ? सोलह –सत्रह साल में उसने अपनी कला के बदौलत नाम कमाया है .
तिवारी : लेकिन संदेस जी , ललुवा भले ही कम उम्र हो किन्तु उसके गाने काफी द्विअर्थी होते है ! उन पर अश्लीलता का भी ठप्पा लगा दिया गया है ,इतनी कम उम्र का लड़का अगर ऐसे गाने गाता है तो हम क्या कह सकते है अपनी युवा पीढ़ी के बारे में के वह ईस से क्या सिख लेगी ?
संदेस : अब आप पक्षपात कर रहे हो तिवारी जी ! सारी दुनिया ‘’ जस्टीन बिबर ‘’ को सुने यह चलता है ,उसकी कम उम्र पर कोई सवाल नहीं करता ,किन्तु यही जब हमारा देसी छोरा ‘ललुवा ‘ करे तो बवाल ? मानसिकता बदलनी चाहिये ,अगर कोई आगे बढ़ रहा है तो बढ़ने दीजिये ना काहे को टंगरिया (पैर ) खिंच रहे है ? हमें कला को बढ़ावा देना चाहिये .
तिवारी : किन्तु पिछले ‘भोजपुरी बडका सितारा ‘’ अवार्ड समारोह में आपने अपनी पहुँच का फायदा उठाते हुये सर्वश्रेष्ट कलाकार का खिताब ‘’ जय किशन ‘’ को ना दिलवाकर खुद के नाम करा लिया ! तो क्या इसमें आपने कलाकार को हतोत्साहित नहीं किया ?
संदेस : यह अफवाह है ! सरासर अफवाह है ,अगर उनमे ‘प्रतिभा ‘ होती तो यह अवार्ड उनके नाम ही होता .
तिवारी : यह आप क्या कह रहे है संदेस जी ? सभी जानते है के ‘जयकिशन ‘ जी फर्श से अर्श तक पहुंचे हुये व्यक्ति है ! यहाँ तक के वे ‘बोलीवूड ‘’ में भी कई फिल्मो में केन्द्रीय भूमिका कर रहे है ,क्या यह उनकी प्रतिभा नहीं है ?
संदेस : ( जल भुन कर ख़ाक होते हुये ) तिवारी जी आप यहाँ हमरा इंटरव्यू लेने आये है के ‘जयकिशन ‘ का ? वैसे भी हमारे पास समय बहुत कम है , अगले गाने की शूटिंग करनी है .
तिवारी : क्या ? अगला गाना ? किन्तु अभी तो शादी वाला आइटम सांग खत्म हुवा है ,इतनी जल्दी दुसरा गाना ?
संदेस : बड़े भोले है आप तिवारी जी ! अरे अभी बिटिया बिदा हुयी है तो बिदाई का गाना नहीं बजेगा का ? फिर ससुराल पहुंचेगी तो ससुराल में भी ख़ुशी का माहौल है तो एक आईटम सांग वहा भी होगा ,
तिवारी ( उकता गया है ) : हां हां क्यों नहीं ! आखिर अब भोजपुरी फिल्मे सार्थक जो बनने लगी है , चलिये संदेस जी आप भी जल्दी में है ! तो यह इंटरव्यू यही खत्म करते है ,
( सन्देश तिवारी के पास आता है और उसका रिकोर्डर बंद करता है , और मुस्कुराते हुये उसके कंधो पर हाथ रखता है )
‘’तिवारी जी ! आप अपने आदमी हो ,शुरू से हमें जानते हो तो आपसे क्या छिपाना ?
अंदर की बात बताता हु ! यह सार्थक –वार्थक फिल्मे कुछ नहीं होती , समाज बिगड़े या सुधरे ईस से किसी को कोई मतलब नहीं होता ,हर शुक्रवार को फिल्मे परदे पर आती है ! किसी बदलाव के लिये या संदेस देने के लिये नहीं आती सिर्फ पैसा कमाने आती है , और आप भोजपुरी फिल्मो में बढती अश्लीलता की बात करते है तो हम बता दे के भोजपुरी फिल्मो के निर्माता अधिकतर ऐसे व्यक्ति है जिनका भोजपुरी से कोई लेना देना नहीं है ! वे भोजपुरी भाषा की क ख ग भी नहीं जानते , वे यहाँ समाज सुधारने नहीं आये है वे सिर्फ पैसा बनाने आये है ,
हम भी मजबूर है ! आखिर हम क्या थे ? लोकगायक ,जो तमाशो में नौटंकी में बिरहा –नाच किया करते थे ,जब हमें पैसा कमाने का मौक़ा मिला तो हम क्यों छोड़ेंगे ? समाज बदलना तो नेताओं का काम है ,हम सिर्फ पैसा कमा रहे है ,हम भी एक फिल्म बना रहे है ,हमने भी सोचा के हम कोई सार्थक फिल्म बनायेंगे ! लेकिन हमने सार्थक फिल्मो का इतिहास भी देखा है , हम अपनी कमाई हुई जमापूंजी किसी समाज को बदलने में नहीं गँवा सकते ! और हमने किसी के पीछे बन्दुक नहीं तानी है के आओ और फिल्म देखो , लोगो को इसमें मजा आता है ? पब्लिक सिर्फ ‘मटकते कमर ‘ और द्विअर्थी संवादों पे मजे लेती है तो इसमें हमारी कोई गलती नहीं ,
तिवारी जी मुस्कुराये
‘संदेस जी , मजा तो खुजली करने में भी आता है ! किन्तु अगर समय रहते ईस मजे को
नजरअंदाज करके इलाज ना किया जाये तो इस खुजली को ‘कोढ़ ‘ बनते देर नहीं लगेगी ,समाज भी उसी राह पर है, खुजली में मजे ले रहा है कोढ़ को नजरअंदाज करके ,जब गलती का अहसास होगा तब तक बिमारी लाईलाज हो चुकी होगी ! चलते है ,आपसे मिलकर ,बाते करके ख़ुशी हुई ,नमस्कार ‘’
‘’आते रहियेगा कभी कभार तिवारी जी ! मिटटी से जुड़े लोग बहुत कम मिलते है आजकल , इंटरव्यू छपते ही सूचित कीजियेगा , तस्वीरे तो आपको मिल ही गई है , अब रऊवा (हमें ) के इजाजत देई ...नमस्कार ‘’

 समाप्त

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका ,जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई .

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  2. उत्तर
    1. आपके इस कमेन्ट से मुझे अभूतपूर्व हर्ष की अनुभूति हुयी सूरज भाई !
      बहुत बहुत धन्यवाद .

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