गुरुवार, 23 जनवरी 2020

चोपता से कार्तिक स्वामी की यात्रा 2

अपनी यात्रा के पिछले भाग में मैंने बताया था किस प्रकार से चोपता के लिये निकलते ही सूचना प्राप्त हुई कि भारी बर्फबारी के कारण चोपता जाने के रास्ते बंद हो चुके है। इसके बावजूद भी हमने अंतिम क्षण तक प्रयास करने का निश्चय किया और हरिद्वार से चोपता के लिये प्रस्थान कर गए।
हरिद्वार में ही दो लड़के मेरे साथ और जुड़ गए जो बीएचयू के विद्यार्थी थे। उनसे मेरी बात यात्रा के महीनों पहले से हो रही थी, हम फेसबुक द्वारा ही मिले थे और सहयात्री बन गए। किसी प्रकार जोड़ तोड़ करते कराते हम बर्फ में चलते पड़ते आखिरकार तुंगनाथ मुख्य द्वार तक जा पहुंचे।
उस समय दोपहर हो चुकी थी, तुंगनाथ द्वार के समक्ष स्थित मार्ग पर तीन तीन फीट बर्फ जमी हुई थी। हमारे मुंह से ठंडी भांप निकल रही थी, चूंकि दोपहर हो चुकी थी और द्वार पर कुछ पस्त पड़े ट्रेकर्स का जत्था अस्तव्यस्त और हैरान दिखाई दे रहा था तो यात्रा पूर्ण होने की संभावना काफी कम दिखाई दे रही थी। हमने उनमे से कुछ से आगे का हाल पूछा तो बताया गया कि बामुश्किल आधा किलोमीटर चलकर वे वापस आ गए, आगे बर्फ इतनी ज्यादा पड़ी हुई है कि उससे ज्यादा आगे बढ़ना सम्भव ही नही। हमने द्वार की ओर देखा वहां बर्फ का ढेर लगा हुआ था, हमारी हिम्मत टूट सी गई थी। उसी समय दो व्यक्ति कमर तक भीगे हुये ट्रेक से वापस आते दिखे, द्वारा की सीढ़ियों पर बर्फ पिघल कर जम गई थी जिस कारण भयँकर फिसलन हो गई थी। उन दोनों में से एक लड़का बेधड़क चलते हुये आया और फिसल गया , वह फिसल कर सीढ़ियों से नीचे आ गिरता लेकिन उसने गजब की फुर्ती दिखाते हुये द्वार की घण्टी पकड़ ली और बंदर की भांति झूल गया। हालांकि यह अनपेक्षित रूप से हो गया था, उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। हमने उसे सीढ़ियों के मध्य के बजाय किनारे से आने के लिये कहा, किनारों पर अब भी कोनो में भुरभुरी बर्फ थी जिससे फिसलन कम होती। उसने ऐसा ही किया और सकुशल नीचे आ पहुंचा। फिर उसका साथी आगे बढ़ा और वह भी फिसल कर अपने दोस्त की तरह घण्टी की जंजीर से जा लटका, उसके लटकने का अंदाज देखकर मुझे टार्जन की याद आ गई, हमारी हंसी छूट गई। वह बेचारा किसी प्रकार किनारे से होते हुये नीचे उतरा। मै अपना उपन्यास लेकर आया था, तो मैंने तुंगनाथ द्वार पर ही उसकी तस्वीर भी खींच ली।
दोपहर होती जा रही थी और हमे ट्रेक भी करना था, पिछले दिसम्बर की यादें अब तक जेहन में ताजा थी, मैं जानता था उस समय इतनी कम बर्फ के बावजूद मेरी हालत खस्ता हो गई थी तो इस समय तो बर्फ के अलावा और कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। यात्रा आरम्भ करने से पूर्व कुछ खाना पीना आवश्यक था तो हमने द्वार के सामने स्थित ढाबे पर आलू के परांठे, मैगी और चाय पी। यश भाई खाने के मूड में बिल्कुल नही थे, वो मुंह बना रहे थे। उनके अनुसार आलू के परांठे वगैरह हैवी हो जाएंगे तो ट्रेकिंग में तकलीफ देंगे तो वो ब्राउन ब्रेड और पीनट बटर खाने की सोचने लगे जो हम साथ लाये थे। जी, हम अपने साथ खाने पीने की कुछ वस्तुएं साथ रखे हुये थे ताकि भगवान न करें यदि कहीं फंस जाए तो उस परिस्थिति में काम आ सके।
मैंने उन्हें समझाया ऐसे मौसम में कितना भी हेवी ठूंस लो लेकिन उसे पचने में कुछ ही देर लगेगी। ऊर्जा और गर्मी चाहिये तो ब्रेड बटर को मारो गोली और चापो गरमा गरम परांठे, वो न माने। मैं और केशव मजे से परांठे खाने लगे, परांठे वाकई बेहद स्वादिष्ट थे, हम मजे लेकर खाते और तारीफ करते रहे तो यश भाई भी ललचा कर बैठ गए और एक परांठा खा कर ही माने। सब खाने पीने के बाद अब बारी थी घुटनों भर बर्फ से भरे पथ पर चलने की तैयारी करने की। मैंने वुडलैंड के ट्रेकिंग शूज पहन रखे थे जो बर्फ में बढ़िया पकड़ बनाये हुये थे, अब तक के मार्ग में यश और केशव अनगिनत बार गिरे थे किंतु मैं एक बार भी नही गिरा।
ढाबे से ही उन्होंने बूट्स किराये पर लिये और हमने ढाबे वाले चाचा जी के पास ही अपने बैग्स रखवा दिये और बम भोले, हर हर महादेव का उद्घोष करते हुये द्वार पर माथा टेक दिया और पहला कदम आगे बढ़ा दिया, द्वार की चंद सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने में जो गफलत हुई उसने साबित कर दिया कि आगे का रास्ता बिल्कुल भी आसान नही होने वाला है। केशव और यश ने रेनकोट पहन रखे थे और मैं अपनी जैकेट पर ही था। घण्टी से लटके युवक की लाठी सीढ़ियों पर ही गिरी थी जो मैंने कब्जा ली थी।
हम कुछ ही मीटर चले होंगे कि पैर घुटनो तक बर्फ में धंसने लगे, चारो ओर सफेद चमचमाती बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी, ट्रेक के आरम्भ में लगभग एक किलोमीटर तक जंगल पड़ता है, जंगल का सारा भाग बर्फ से ढंका हुआ था। मैं ऐसा नजारा पहले भी देख चुका था लेकिन केशव और यश ने इतनी बर्फ पहली बार ही देखी थी, वो दोनो अत्यधिक रोमांचित थे और उत्साह से चीख रहे थे चिल्ला रहे थे। आसपास के पेड़ों पर से बर्फ गिर रही थी जो स्नोफॉल का वहम पैदा करती थी। हम घुटने धँसाते धँसाते आगे बढ़ने लगे। यश भाई आरम्भ में ही हिम्मत हारने लगे, वो अनेक बार अपना संतुलन खो कर बर्फ में गिरते पड़ते रहे।
हमने किसी प्रकार एक किलोमीटर पार किया, मैं भी समझ रहा था कि हम बेकार की जिद में है, क्योकि इस भयंकर बर्फ में तुंगनाथ तक पहुंचना लगभग असंभव सा था, वैसे भी 2 बज रहे थे, दो घण्टे में ही अंधेरा होना शुरू हो जाएगा, यदि हम सुबह प्रयास करते तो ऊपर पहुंचने के बारे में सोच भी सकते थे किंतु इस समय यह सम्भव ही नही था। यदि किसी प्रकार गिरते पड़ते मंदिर तक पहुंच भी जाते तो रात हो जाती और नीचे आना असम्भव हो जाता। ऊपर से बर्फ में भीगने के कारण और तापमान में भयँकर गिरावट के चलते हम ठंड से अकड़ जाते। 
तो मैंने निर्णय लिया कि हम उस स्थान तक जाएंगे जहां से चौखम्बा, केदारनाथ और सतोपंथ पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती है, मैंने दोनो को समझाया कि वहां पहुंचकर आप जो दृश्य देखोगे वह आजीवन याद रहेगा, अविस्मरणीय अवर्णनीय और अकल्पनीय सुंदरता होगी, उस दिव्य अनुभव के लिये चलते है। वे मान गए, मैं और केशव द्रुत गति से चलते रहे लेकिन यश भाई अपने जूतों के कारण धीमे पड़ गए और गिरते पड़ते रहे। सम्पूर्ण मार्ग में केवल हम तीन ही दिखाई दे रहे थे। 
आखिरकार हम उस स्थान पर पहुंचे जहां घने जंगल वाला हिस्सा समाप्त होता है और चौखम्बा, केदारनाथ,सतोपंथ इत्यादि पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती है। यश और केशव एकम अवाक से थे, मैंने यह दृश्य पहले भी देखा था किंतु फिर भी प्रतीत हो रहा था मानो पहली बार ही देख रहा हूँ।हम तीनों थक कर चूर हो चुके थे और वही बर्फ में कुछ देर बैठ गए, मैंने उनसे कहा कि कुछ दूर और चलते है, अभी भी आगे कुछ पैरों के निशान है तो हम आखरी निशान से कम से कम बीस कदम आगे जाकर ही वापस आएंगे। वो मान गए। थोड़ी ही दूर जाकर पैरों के निशान गायब हो गए, हम शायद पहले थे जो उन पैरों के निशानों से भी काफी आगे आ चुके थे। दूर दूर तक बस सफेद बर्फ से ढंके पहाड़ और जंगल ही नजर आ रहा था, केशव और यश फोटोग्राफी में व्यस्त हो गए और मैं इस दिव्य वातवरण को निहारने लगा। उसी समय मुझे कोई आवाज सुनाई दी, मैंने अपने बाई ओर की ढलान पर देखा, आवाज वहीं से आई थी, फिर मुझे लगा शायद भरम हुआ हो। ऐसी जगहों पर अक्सर वहम हो जाया करते है, लेकिन वह आवाज फिर सुनाई दी। और इस बार यश और केशव दोनो को सुनाई दी।
"भईया यह कैसी आवाज थी?" यश ने घबराकर प्रश्न किया।
"यह भालू की आवाज है, फौरन निकलो यहां से।" मुझे पहचानने में पक्का भूल नही हुई थी।

शेष है....


















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