सोमवार, 30 दिसंबर 2019

चोपता से कार्तिक स्वामी की यात्रा

इस समय किसी भी हिमालयन ग्रुप में चले जाइये, आपको तुंगनाथ चोपता की तस्वीरें इतनी मिल जाएंगी कि यदि आप नही गए होंगे तो अगली योजना वही जाने की बना लेंगे।
मैं खुशकिस्मत हूँ जो लगातार 2 साल दिसम्बर में वहां जा पाया।
इस बार के हालात मुश्किल हो गए थे, मुम्बई से निकलते ही अपडेट मिली कि चोपता तक जाने के रास्ते भारी बर्फबारी के कारण बंद हो चुके है, मन खराब हो गया लेकिन फिर भी अब घर से निकल चुका था तो बिना प्रयास किये पीछे हटने का प्रश्न ही नही था।
किसी प्रकार हम रुद्रप्रयाग पहुंचे, रात हो चुकी थी और उकीमठ जाने का कोई साधन फिलहाल उपलब्ध नही था किंतु खुशकिस्मती से उकीमठ जाती एक अंतिम बस दिखाई दी हमने बगैर समय गंवाए उसे पकड़ी और उकीमठ आकर रुके।
उकीमठ में ही भरत सेवा संस्थान के आश्रम में रात्रि शरण लेने के पश्चात भोर सवेरे चोपता जाने की जुगाड़ में लग गए, कोई गाड़ी वहां जाने को तैयार नही थी, सबका कहना था कि बर्फ बहुत ज्यादा है। लेकिन फिर भी इतना समीप आकर वापस जाने का प्रश्न ही नही उठता था, ऐसे में एक स्कूल जिप्सी मिली जो ताला तक जा रही थी। हम ताला तक ही चले गए कि चलो जितना नजदीक हो सके उतना ही पहुंचते है उसके बाद कुछ नही मिले तो पैदल यात्रा ही आरम्भ कर देंगे।
लेकिन ताला से एक गाड़ी मिल ही गई जिसने 800 में चोपता पहुंचाने की बात तय की, लेकिन उसने हमें चोपता से 4 किलोमीटर नीचे ही छोड़ दिया कि इससे आगे गाड़ी नही जा पाएगी आप पैदल चले जाओ, हमने मंजिल तक पहुंचने तक के पैसे दिए थे तो हमने थोड़ा कन्सेशन को कहा तो भाई साहब बिदक गए। उनका स्वभाव एकदम बदल गया, अभी तक जो मिलनसार और हँसमुख नजर आ रहे थे वे एक ही बात पर मानो काटने दौड़ने पर उतारू हो गए, मुझे बहस में नही पड़ना था इसलिये मैंने बगैर किसी बहस के 800 उन्हें थमा दिए। 
एक सबक लेकर आगे बढ़ गए, आगे दूसरा सबक हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। तुंगनाथ द्वार यहां से कुछ 4 किलोमीटर आगे था, मुझे आसपास का माहौल और निचे की ओर कुछ कैम्पस देखकर फौरन पता चल गया कि यह वही कैम्प है जहां हम पिछली बार रुके थे, तब भी दिसम्बर की 15 तारीख थी और आज दिसम्बर की 16 तारीख थी। उस समय बर्फ इतनी नही थी, घास और जमीन साफ दिख रही थी। इस समय न घास दिखाई दे रही थी और न जमीन, कैम्प से सड़क पर अब काफी सारे कैम्प और छोटे होटलों का झुंड बन चुका था। जंगल के पेड़ों पर बर्फ ही बर्फ जमा थी। बीच बीच मे पेड़ों से गिरती बर्फ किसी स्नोफॉल सा अनुभव कराती थी। इसलिये मैं यह कह सकता हूँ कि मैंने स्नोफॉल का भी अनुभव कर लिया। खैर मेरे साथ आये दोनो मित्रों ने इस मौसम में पहली बार कदम रखा था, बर्फ में उनकी प्रथम यात्रा थी और कहना न होगा कि यात्रा के आरम्भ में ही दबा कर बर्फ मिली थी, इतनी की उनके सात जन्मों तक कि बर्फ देखने की इच्छा ही मिट गई होगी। हमने बर्फ में थोड़ी देर खेला, बर्फ के गोले बना कर एकदूसरे को मारे,
 यश भाई साथ थे जो फेसबुक द्वारा ही मिले थे, बर्फ के गोले बना कर फेंकने की बोहनी उन्होंने ही की थी, लेकिन बर्फ मारने के चक्कर मे पिछवाड़े के बल गिर कर अस्थि मालिश का आरम्भ भी उन्ही से हुआ।
एक गाड़ी सड़क के किनारे बर्फ में धंसी हुई थी, पता चला रात से ही फंसी हुई है। गाड़ी वाले पर्यटक या यात्री नही थे, वे वही के स्थानीय निवासी थे। हमने काफी मेहनत की और अपनी सारी ऊर्जा खत्म करके उन्हें निकालने का प्रयास किया, फावड़े से बर्फ काटी, रास्ता साफ किया, टायर तक बदली करवाये, धक्के मार मार कर अपने पसीने छुड़वाए। लगभग डेढ़ दो घण्टे में गाड़ी अपने स्थान से हिली और मुख्य मार्ग पर आ लगी। अब उसमे कोई और समस्या भी थी जो हमारी समझ से परे था, हमने अपना काम कर दिया था और दोपहर होने वाली थी, हमे अभी 4 किलोमीटर पैदल भी चलना था और तुंगनाथ तक जाना भी था तो हमने उनसे विदा ली और बर्फ में डगमगाते हुये चल पड़े।
पिछली बार मैंने स्पोर्ट्स शूज पहने थे जिस कारण तबियत से गिरा था, लेकिन इस बार फ्लिपकार्ट सेल से वुडलैंड के कैमल शूज मंगवाये थे, रबड़ टायर सोल वाले। उसके रहते मजाल जो एक बार भी गिरा होऊं, लेकिन पिछली बार के फिसलने का डर इस कदर हावी था कि हर कदम फूंक फूंक कर रख रहा था, ब्लैक आइस मेरे पैरों के नीचे तड़क रही थी, जहा पैर रखता था कड़कड़ाने की आवाजें आती थी इसके बावजूद मैं सम्भल कर चल रहा था, दूध का जला था तो छांछ में भी बर्फ डाल रहा था।
बर्फीली वादियों का आनन्द लेते हुए हम एक डेढ़ किलोमीटर तक ही चले होंगे कि जिन भाई साहब की गाड़ी निकाली थी वो अपनी गाड़ी सहित आते दिखे, उन्होंने गाड़ी रोकी और हम सवार हो गए। उन्होंने तुंगनाथ द्वार तक हमे छोड़ा और किसी भी प्रकार की कोई समस्या आने पर फौरन फोन करने को कहा, हमने उनका नम्बर नोट किया और गेट के सामने वाले ढाबे पर गर्मागर्म पराठों का नाश्ता किया।
तुंगनाथ द्वार पर ही एक डेढ़ फीट की बर्फ देख कर होश गुम हो गए, कुछ लोग दिखे जो द्वार से उतरने के प्रयास में फिसल कर द्वार की घण्टियों से ही जा लटके थे।
उनसे पूछा तो बताया कि बस एक किलोमीटर तक जा पाए उससे आगे बर्फ इतनी है कि हिम्मत जवाब दे गई। मैंने यश जी और केशव की ओर देखा और निर्णय लिया कि जितनी दूर हो पायेगा उतनी दूर जाएंगे और अंतिम कदमों के निशान से कम से कम 10 कदम आगे बढ़ कर ही आएंगे।
उनके सामान्य स्पोर्ट्स शूज थे तो उसी होटल से उन्होंने किराये पर बूट्स ले लिए, दोनो बन्धु रेनकोट साथ लाये थे, उन्होंने वो भी पहन लिया। दोपहर के 2 बज रहे थे और हमारे मुंह से ठंड से भांप निकल रही थी, होटल के सामने मार्ग पर ढेर सारी बर्फ थी। में यहां अपना उपन्यास भी लेकर आया था, मेरी इच्छा थी कि मेरे द्वारा लिखित उपन्यास को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त हो। मैंने तुंगनाथ द्वार पर ही उपन्यास की कुछ तस्वीरें खींची और हर हर महादेव का जयघोष करते हुऐ हमनी अपनी यात्रा का आरम्भ किया।

यात्रा अभी शेष है,
(अगली कड़ी में भालू जी ने उपस्थिति दर्ज कराई है)


सम्पर्क करे ( Contact us )

नाम

ईमेल *

संदेश *