गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

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तुंगनाथ चोपता यात्रा - 1

तुंगनाथ प्रवेश द्वार 
बर्फ की सफ़ेद चादरों से ढंका तुंगनाथ मंदिर 
ट्रेकिंग के पहले एक बार जी भर कर नज़रों को कैद करने की इच्छा 



कैम्प परिसर से दिखाई देती केदार पर्वत श्रृंखला 







हमारा शानदार कैम्प 

आखिरकार एक वर्ष की प्रतिक्षा और बनती बिगड़ती अनिश्चित योजनाओं के पश्चात आखिरकार इस दिसम्बर में
चोपता-तुंगनाथ जाने की योजना सफल हुई। मैंने अपने जीवन मे प्रथम ही बर्फ की सफेद चादर देखी थी।
मैंने ऋषिकेश से एक कैब बुक कर रखी थी जिसमे वापसी किराया शामिल था। बस वगैरह की सुविधा थी लेकिन
वो थोड़ा अनिश्चित एवं भागदौड़ भरा पर्याय लगा इसलिये खुद की कैब ज्यादा सुविधाजनक लगी भले पैसे थोड़े
तुंगनाथ ट्रेकिंग से पहले ही मनोरम दृश्य 
ज्यादा खर्च करने पड़े।
ऋषिकेश से चोपता तक का लगभग 200 किमी का अंतर मानो कटने का नाम ही नही ले रहा था,
मैंने अनुमान लगाया था के 50 किमी प्रतिघन्टा भी यदि कैब चली तो भी अधिकतम 5 घण्टो में हम चोपता में रहेंगे,
 लेकिन सारा गणित तब बिगड़ गया जब गाड़ी 30 किमी प्रतिघन्टा के हिसाब से चलने लगी।
ऊपर से चार धाम योजना सड़क निर्माण के कारण जगह जगह कटिंग चल रही थी, जिस कारण हमें
उकीमठ पहुंचने तक ही अच्छी खासी रात हो गई, रास्ते मे जब थकान अधिक हो गई तब एक छोटे से
 होटल में रुक कर गरमागरम चाय और मैगी का नाश्ता किया, मैंने इतना स्वादिष्ट मैगी आज तक नही खाया था,
मन प्रफुल्लित हो गया, इस समय तक हवा में ठंडक भी काफी हो चुकी थी। 
हम पुनः अपनी कैब में सवार हो अपनी मंजिल की ओर चल पड़े, सात घण्टे बीत चुके थे,
कुछ घण्टो बाद हम उकीमठ पहुंचने वाले ही थे के कैब के सामने ही रास्ते के मध्य एक जीव ने छलांग लगाई।
हमारी सांसे तब रुक गई जब उसे गौर से देखा। वह एक बाघ था, बाघ को पिंजरे में और फिल्मों में देखना अलग बात है,
इसके लिए तो शब्द ही नही 
और चलते रस्ते में देखना अलग। हमारी सिट्टी पिट्टी इस शानदार जीव को देखकर गुम हो गई थी,
खैर बाघ को हमसे कोई फर्क नही पड़ता था तो वह चुपचाप सड़क पर करके झाड़ियों में कही गुम हो गया,
तब ड्राइवर ने बताया के यहां बाघ वगैरह सामान्य बात है, चोपता में भी पहाड़ो पर बर्फ जमने के बाद बाघ नीचे उतर आते है,
बाघ तो फिर भी ठीक लेकिन अक्सर भालू सामने पड़ जाता है, इस समय तो होंगे ही।
हमारी सुबह 3 बजे तुंगनाथ और चंद्रशिला ट्रैकिंग की योजना थी लेकिन अब सामने बाघ देखने के बाद हिम्मत
ही नही हुई के अंधेरे में ट्रैक करें, बाघ को इस प्रकार रास्ते के मध्य चहलकदमी करते देख हमारी सांस मानो रुक सी गई,
 वो तो भला हो के श्रीमती जी सो रही थी, उन्हें इसकी भनक तक नही लगी।
केवल मैंने ,ड्राइवर ने और मेरी साली जी ने ही बाघ को देखा। बाघ झाड़ियों में लुप्त हो गया तब ड्राइवर ने
बताया के बाघ यहां सामान्य है, सर्दियों में पहाड़ियों पर बर्फ गिरने से बाघ और भालू जैसे जानवर नीचे आ जाते है,
इसलिए इस समय रात की ट्रैकिंग खतरनाक मानी जाती है। बाघ को इस तरह बेफिक्र घूमता देख और भालू का
 उल्लेख सुनकर साली जी ने फौरन रात्रि ट्रैकिंग की योजना खारिज कर दी।
 हमारी योजनानुसार केवल हम दोनों ही तुंगनाथ और चंद्रशिला की ट्रैकिंग करने वाले थे,
श्रीमती जी का स्वास्थ्य ट्रैकिंग के अनुकूल न होने की वजह से उन्हें कैम्प में ही रुकना था।
उनकी छोटी बहन और मुझमे अच्छी ट्यूनिंग है, और हम थोड़ा फुर्तीले भी है, हमे पिछले वर्ष वैष्णो देवी का
 भी अच्छा खासा अनुभव था। यहाँ बताना चाहूंगा के कही भी जब घूमने की योजना बनती है
तब मैं किसी दोस्त के साथ नही जाता। मैं श्रीमती जी और साली जी, हमारी स्वयं की तीन मेम्बर्स की टीम है
 जो हमेशा नई नई जगहों पर घूमने जाती है और खूब मजे करती है, इसलिए मुझे किसी अन्य मित्र की कभी
आवश्यकता नही पड़ी। एक साल से उत्तराखंड घूमने की योजना बन रखी थी, विभिन्न ट्रैवेल ग्रुप्स से मुझे
चोपता-तुंगनाथ के विषय मे पता चला, मैंने गूगल से चोपता-तुंगनाथ के विषय मे अनेक आलेख,
और जानकारीपूर्ण ब्लॉग पढ़े, यूट्यूब पर वीडियोज भी देखे और मंत्रमुग्ध रह गया के अब यही जाना है,
बाकी जगहें भले ना जाये। इससे पहले ऋषिकेश,हरिद्वार,मसूरी और धनौल्टी की योजना बनी थी।
मसूरी और धनौल्टी केवल स्नो फॉल हेतु जाने की इच्छा थी। किन्तु चोपता-तुंगनाथ के विषय मे पढ़ -देख-सुन
 कर उत्कंठा इतनी बढ़ी की मसूरी और धनौल्टी अपने आप इस योजना से बाहर हो गये।
अब यात्रा का मुख्य उद्देश्य केवल तुंगनाथ रह गया था। खैर हम अब उकीमठ पार कर चुके थे,
कुछ ही देर में हम चोपता पहुंचने वाले थे, रास्ते के दोनों किनारों पर बर्फ की सफेद चादरें दिखाई देने लगी थी।
मैंने श्रीमती जी को जगाया और बर्फ दिखाई, वे किसी बच्चे की भांति किलकारी मार उठी और देखने लगी,
उस अंधेरे में भी केदार,चौखम्बा पर्वतशृंखलाओ की सफेद चोटियां चांद की दूधिया रोशनी में स्पष्ट चमक रही थी।
 वह वाकई बेहद अद्भुत और दिव्य दृश्य था, एक ओर घना जंगल मध्य में संकरा रास्ता,
तुंगनाथ ट्रेकिंग के दौरान विश्राम 
 बर्फ की झिलमिल चादरें, सितारों भरा स्पष्ट आकाश, और दूध से सफेद बर्फाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं,
यह एक परिकथा के परिवेश जैसा था, कुछ कुछ हमे नार्निया जैसी फिल्मों की याद आ गई।
हम तीनों सदैव बकबक करने वाले प्राणी है किंतु वह परिवेश देख कर हम मन्त्रमुग्ध से हो गए थे।
 भावनाएं अपने चरम पर थी, बस आंखों के कोनो में नमी सी महसूस हुई, कुछ ही क्षणों में हम
अपनी मंजिल पर पहुंच चुके थे, कैम्प वाले भाई साहब का लगातार फोन आ रहा था और वे
 हमारे स्वागत के लिये खड़े थे, मैंने कैम्प और चार्जेस के विषय मे एक महीने पहले ही जानकारी
निकाल कर बात तय कर रखी थी। और ज्यादा ना भटकते हुए अपनी बात वही सिमित रखी।
 इसलिए मुझे स्पष्ट पता था के मुझे कहा जाना है, मेरी साली जी हैरान थी के मुझे उन सारी जगहों के विषय
 मे एकदम सटीक जानकारी कैसे थी, उन्होंने कई बार पूछा भी की आप यहां पहले भी आ चुके है?
 मैंने ना में सर हिला दिया अब उन्हें क्या बताता के पिछले दस महीनों से मैं केवल चोपता-चंद्रशिला-तुंगनाथ
 में ही आकंठ डूबा हुआ था। खैर हमारी कैब रुकी और दरवाजा खुला, दरवाजा खोलते ही मेरे दोनो कान
एकदम सुन्न हो गए, उंगलियां मानो जमी हुई बर्फ में चले गए से प्रतीत हो रहे थे।
चोपता में तो कल्पना से भी अधिक ठंड थी। फौरन कंपकंपी आरम्भ हो गई,
हमारे मेजबान ने फौरन जैकेट्स पहनने को कहा, हमारे पास सामान्य गर्म कपड़े थे,
लेकिन इसके बावजूद मैंने करोल बाग से आने के पहले ही सस्ते दामों में कुछ बढ़िया गर्म जैकेट्स खरीद लिए थे,
वे वाकई उपयोगी साबित हुये, दस्ताने और कनटोप भी मैंने सुरक्षा के लिए पहले ही खरीद रखे थे,
अब तक उनका उपयोग नही हुआ था, गाड़ी से बाहर आते ही हमने सबसे पहले दो जैकेट्स पहन,
दस्ताने और कनटोप पहन लिये। बात ही नही हो पा रही थी, और दांत किटकिटा रहे थे। हमारे मेजबान ने
 दूर से दिखाया और मार्गदर्शक बनकर चलने लगे, कैम्प मुख्य सड़क से लगभग हजार कदम की दूरि पर था,
किन्तु यह मामूली दूरी भी इस प्रकार भारी पड़ रही थी मानो हम किसी खड़े पहाड़ पर चढ़ रहे हो,
किसी प्रकार हम कैम्प पहुंचे और अपना बैग वहां पटक दिया।
कैम्प पहुंचते ही कल्पना से भी अधिक ठंड से हमारा सामना हुआ, हमारे मेजबान ने हमे बताया
के इस समय यहां का तापमान माइनस 5 डिग्री है। अविश्वास का प्रश्न ही नही उठता था, सड़क से कुछ
 दूर स्थित कैम्प में पहुंचने तक मार्ग में पड़ते नालियों का पानी तक बर्फ में जमा हुआ दिखाई दिया।
कुछ ही देर में हम कैम्प में थे, मेजबान ने बताया की कुछ दिनों पहले इसी कैम्प में सारा अली खान
रुकी थी जिसमे हम ठहरे थे, खुशनसीबी यह रही के मेरी श्रीमती जी और इनकी सिस्टर को सारा
अली खान के विषय मे कुछ पता नही था। और मुझे तो फर्क ही नही पड़ता था, मैंने मजाक में मेजबान
से कहा भी, के मैं सारा के ठहरने की वजह से कोई एक्सट्रा चार्जेस नही दूंगा, तो वे हंस पड़े।
श्रीमती जी की बहन का सपना था के वे किसी जंगल अथवा हिल स्टेशन पर बोन फायर का आनन्द उठाये,
इस विषय मे उन्होंने गाड़ी में भी चर्चा की थी। तो पहुंचते ही मेजबान ने कुर्सियां रखवा कर लकड़ियां
सुलगाकर अलाव की व्यवस्था करवा दी। वाकई उस गला देने वाली ठंड में अलाव तापने का अपना ही मजा था।
 हम ने जल्दी जल्दी से अपने कपड़े बदले और बाहर कुर्सियों पर बैठ अलाव का मजा लेने लगे। कैम्प बेहद
 खूबसूरत जगह पर था, जहां से केदार पर्वतशृंखलाये इस अंधेरे में भी किसी मोती की भांति चमकती स्पष्ट
 दिखाई दे रही थी। कुछ ही देर में खाना भी लग गया, खाना सादा ही था लेकिन इतने दिन से मुम्बई-दिल्ली-
हरिद्वार-ऋषिकेश के खानों से मन उकता गया था, और यह सादा खाना हमारे लिये किसी लजीज व्यंजन से
कम नही था। मैं कई बार दिल्ली आया हु, कह सकता हु के दिल्ली का खाना बड़ा भारी हो जाता है।
मजे की बात यह हुई के जब भी मेजबान गरमागरम दाल परोसते, कुछ ही क्षणों में वह एकदम ठंडी हो जाती।
 इस समय खाने और मुंह से समान मात्रा में ठंडी भांप निकल रही थी। हमने किसी प्रकार खाना निपटाया और
अलाव के सामने बैठे ढेर सारी बातें की। कल की योजना थी चंद्रशिला से सूर्योदय देखने की,
जो मौसम को देखते हुए अभी भी अनिश्चित ही थी। हमारे कैम्प परिसर में चारो ओर बर्फ फैली हुई थी।
कई जगह बर्फ ठोस हो चुकी थी जिसपर फिसलन भी थी, मेजबान ने बताया इससे कई गुना अधिक
 बर्फ इस समय तुंगनाथ और चंद्रशिला ट्रैक पर है, अंधेरे में ट्रैकिंग इस समय खतरनाक है, दिन में भी
 इस मौसम में जाना कठिन हो जाता है तो रात्रि 3 बजे निकलना बेहद दुष्कर है, ऊपर से जंगली जानवरों
का डर भी इस मौसम में अधिक होता है। साली साहिबा बाघ देखकर पहले ही थोड़ी दहशत में थी तो
उन्होंने स्पष्ट कर दिया के अंधेरे में ट्रैकिंग नही जाना, सुबह उजाला होते ही चलेंगे, बात तार्किक भी थी ,
मैं केवल एडवेंचर करने के चक्कर मे उन्हें जोखिम में नही डाल सकता था। ऊपर से जिस तरह का मौसम
 था उस मौसम में सूर्योदय का मजा भी नही आना था। दूसरे तुंगनाथ का मुख्य द्वार हमारे कैम्प से चार
किमी दूरी पर था, मेजबान ने बताया के तुंगनाथ द्वार तक सड़क पर ठोस बर्फ जमी है, जिस कारण
 फिसलन है और गाड़ियां आगे नही जा पा रही । सुबह जहां तक गाड़ी जाएगी वहां जाएंगे और
बाकी रास्ते पर से ही ट्रैक शुरू हो जाएगी। मैंने हा कर दिया। फिर हम अपने कैम्प में आये, तीन मोटी
 रजाइयों के बावजूद ठंड से ठिठुरते हुए पूरी रात कटी। सुबह लगभग छह बजे मेरी नींद खुली,
मैंने ब्रश करने के लिये नल का पानी चेक किया तो पानी आ ही नही रहा था, मैंने कैम्प के कर्मचारियों
को इस बाबत सूचित किया तो पता चला टँकी में पानी है लेकिन ठंड से जम जाने के कारण नही आ रहा।
फिर उन्होंने 3 बाल्टियां गर्म पानी पहुंचाया । इसके बाद मैं बाहर आया, कैम्प के बाहर की ठंड मानो सुइयां
सी चुभोती प्रतीत हो रही थी। मैंने अपने आसपास के वातावरण का जायजा लिया, रात के अंधेरे में कुछ भी
 स्पष्ट नही दिखाई दिया था, सुबह के उजाले में वह दृश्य किसी परिकथा में दर्शाये वातावरण सा सुंदर लग रहा था,
जंगलों और पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ, पक्षियों का कलरव और दूर स्थित केदार पर्वत श्रृंखलाओं पर पड़ती सूर्य
 की पहली किरण। मैं समझ गया था के अब कुछ ही क्षणों में यह पर्वत चोटियां सूर्य की किरणों से स्वर्ण की
भांति दमकने लगेंगी। मैं दौड़ कर कैम्प में गया और श्रीमती जी को जगाया के बाहर चलो फौरन। वे जाग गई
 किन्तु उनकी बहन सोने के मामले दिलदार है लेकिन मैंने भी उन्हें जबरन जगाया और लगभग खींचते हुये
 कैम्प के बाहर लाया। और उन्हें केदार पर्वत की ओर देखने के लिये कहा। पहले तो वे आधी नींद के कारण
 झुंझलाई किन्तु सामने का दृश्य देखकर अवाक रह गई। सूर्य की किरणों से बर्फ से ढंकी चोटियां सुनहरे रंग
में यू दमक रही थी मानो उनपर किसी ने सोने का पानी चढ़ा दिया हो। ऐसा अद्भुत दृश्य बस तस्वीरों और
इंटरनेट पर ही देखते आये थे। आज हम तीनों उसके सामने खड़े थे। मैं इस खूबसूरत पल को मोबाइल
और फोटोग्राफी के चक्कर मे गंवाना नही चाहता था। हम तीनों एक साथ खड़े होकर हाथों में हाथ डाले
प्रकृति की इस अद्भुत सुंदरता को मन्त्रमुगद्ध होकर निहार रहे थे। ठंडी हवाएं अपने चरम पर थी किन्तु इस
दृश्य का मोह उस पर भारी पड़ रहा था। जी भर कर इस दृश्य को निहारने के पश्चात हमने यादगार के तौर
पर कुछ तस्वीरें खींची। ऋषिकेश से निकलने के पश्चात ही हर पड़ाव पर हम अपने वीडियोज बनाते आ रहे थे,
 ताकि यादें जेहन में हमेशा बनी रहे, तो दो वीडियोज यहां भी बनाकर इन खूबसूरत अप्रतिम मनमोहक
अद्वितीय अद्भुत सुंदर दृश्यों को कैमरे में सदैव के लिए बंदिस्त कर लिया। अब सुबह के 7 बज चुके थे,
हमने ब्रश वगैरह किया। नाश्ता वगैरह बनते बनते 9 बज चुके थे। साढ़े नौ बजे ट्रैकिंग शुरू करनी थी,
हमने गणित लगाया के 3 बजे तक हम वापस आ चुके होंगे और आते ही पुनः ऋषिकेश निकल लेंगे।
और रात दस बजे तक पहुंच जाएंगे। लेकिन जैसा के आरंभ से मेरा हर गणित गड़बड़ाता आ रहा था
 तो यहां भी वही हुआ। ट्रैकिंग आरम्भ करने से पहले ट्रैकिंग शूज की आवश्यकता थी,
मुझे ग्यारह नम्बर के जूते लगते है जो  के मेजबान के पास उपलब्ध नही थे। साली जी के साइज के नए जूते
 मिल गए किन्तु वे उन्हें पहनने में आनाकानी कर रही थी क्योकि वे भारी और सेफ्टी शूज टाइप के थे।
वे अड़ी रही के अपने स्पोर्ट शूज पर ही जाएंगी। मैंने जबरदस्ती उनकी एक न सुनी और उन्हें ट्रैकिंग शूज पहना दिए।
वे अनमने मन ने मुंह बनाये देखती रही, श्रीमती जी ने प्यार से समझाया, मेरे पास कोई पर्याय नही था तो मैं
अपने स्पोर्ट शूज के ही भरोसे था, मैं मौसम को हल्के में ले रहा था जो आगे जाकर मेरी लापरवाही ही साबित हुई।
 खैर श्रीमती जी से विदा लेकर मैं और साली जी ट्रैकिंग के लिये रवाना हो गए, ट्रैकिंग लम्बी होने के कारण दो
बोतलें पानी की और खाने के लिए भारी सामान के बजाय एक डिब्बा ड्राई फ्रूट का ले लिया,
ड्राई फ्रूट मुझे सदैव ट्रैकिंग के लिये उपयुक्त लगते है, एक तो अनावश्यक बोझ नही होता दूजे कम
 मात्रा में ही अधिक पोषण मिल जाने के कारण ऊर्जा बनी रहती है। हमारी गाड़ी अब मार्ग पर थी
लेकिन डेढ़ किमी चलकर ड्राइवर ने आगे का खतरनाक रास्ता और जमी बर्फ देखकर चलने से मना कर दिया।
जबरदस्ती करने का सवाल ही नही उठता था , वह अपनी जगह सही था। हमने वही से ट्रैकिंग शुरू करने
का निर्णय लिया मेजबान हमारे गाइड की भूमिका में थे, वे आगे बढ़े और हम उनके पीछे। कुछ दूर एक
डेढ़ फीट की भुरभुरी बर्फ में चलने के बाद यही सुंदर और मनमोहक दिखती बर्फ भयंकर थकान का कारण
 बनने लगी। अभी हम कुछ ही दूर चले थे कि थकान होने लगी। मैंने पढ़ रखा था के यहां ऑक्सीजन
 लेवल सामान्य से कम है जिस कारण थकान होती ही है। साली जी थोड़ी थोड़ी दूरी पर जाकर बैठ जाती थी,
उनके बहाने मैं भी आराम कर लेता। लगभग दो किमी बर्फ की ऊंची नीची पगडंडियों पर लड़खड़ाते चलते
 आखिरकार हम तुंगनाथ प्रवेश द्वार पर पहुंचे। साली जी ने पूछा अभी और कितना बाकी है।
 तो मैंने कहां यहां से तो ट्रैकिंग आरंभ होती है। उनके चेहरे पर थकान अवश्य थी लेकिन उत्साह भी
स्पष्ट दिखलाई दे रहा था। गाइड ने हमे दो लाठियां थमा दी जो हमारे हिसाब से बेफिजूल सी थी।
वैष्णों देवी की यात्रा के दौरान ऐसी लाठियां किसी काम नही आने के कारण हमने फेंक दी थी तो
यहां भी वही लगा। किन्तु यही लाठियां इस ट्रैक में सबसे बड़ी मददगार बनने वाली थी। ब्लैक
 टी पीने के पश्चात हमने तुंगनाथ जी के प्रवेशद्वार पर मत्था टेका और हर हर महादेव का जयघोष किया।
 कुछ सेकंड्स का एक वीडियो और फोटोज खींचकर अब हम यात्रा ट्रैक पर पहला पग रख चुके थे।




1 टिप्पणी:

  1. रोचक। आखिर बाघ से मुलाकात हो ही गई आपकी। अगली कड़ी पढ़ने को उत्सुक हूँ। अब उसे पढ़ता हूँ।

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