सोमवार, 31 दिसंबर 2018

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तुंगनाथ-चोपता यात्रा-4 ( अंतिम भाग )

पिछले 3 भागो की श्रृंखला में मैंने ऋषिकेश से चोपता और चोपता से तुंगनाथ की 
ट्रैकिंग और उसमे आई कठिनाइयों का वर्णन किया, जिसमे बाघ का देखा जाना,
रिवर राफ्टिंग के पहले 

 जिसके पश्चात रात्रि ट्रैकिंग की योजना खारिज कर देना, माइनस तापमान,सड़क पर 
बर्फ जमी होने के कारण 3 किलोमीटर अधिक ट्रैक करना, ऑक्सीजन की कमी और एक
 से डेढ़ फीट बर्फ के कारण हुई थकान, खराब मौसम और कम समय के कारण तुंगनाथ जाकर भी 
चंद्रशिला की योजना खारिज करना, वापसी में दोनो कलाइयां और पीठ तुड़वा कर पस्त होना 
इत्यादि का सविस्तर वर्णन किया। जिसे आप तुंगनाथ-चोपता यात्रा-1तुंगनाथ-चोपता यात्रा-2 और 
तुंगनाथ-चोपता यात्रा-3 पर क्लिक करके पढ़ सकते है 
तुंगनाथ से वापस आते ही हमने अपने कैम्प से चेक आउट किया , वे रोकते समझाते रह गए की 
रात्रि में गाड़ियां देवप्रयाग से आगे नही जा पाएंगी इसके बावजूद हम नही माने और उनकी 
बेहतरीन सुविधा और सेवा के लिये सबके गले मिलकर धन्यवाद दिया। 
शाम होते ही फिर वही हाड़ गला देने वाली ठंड आरम्भ हो गई जो हमने आते समय महसूस की थी, 
कांपते हुए किसी प्रकार मैंने अपना रकसैक गाड़ी की डिक्की में रखा, गौरतलब है की दिल्ली में 
हमारे पास तीन बैग्स भरकर सामान थे, साली जी की एक ट्रॉली बैग, श्रीमती जी का बैग और
 मेरा 70 लीटर का रकसैक जो मैंने हाल ही में यात्रा के लिये ही खरीदा था। दिल्ली से हरिद्वार,ऋषिकेश
 और चोपता आने पर हमें तीनो बैग लाने पड़ते जो काफी असुविधाजनक होता। 
तो मैंने सबके दो-दो।एक्स्ट्रा कपड़े और जरूरत का साहित्य केवल अपने रकसैक में रखने के लिये कह 
दिया था जिससे केवल एक रकसैक में तीनों का काम हो जाता और कठिनाई भी नही होती।
हम दिल्ली के जिस होटल में ठहरे थे वही अपने बाकी दोनो बैग्स छोड़ दिये, 
उस होटल में मेरे साले साहब की पहचान थी जिस कारण बैग वहां सुरक्षित थे और
 हमारे जाने के पश्चात साले साहब बैग्स कलेक्ट करके अपने घर पर रख देते जो दिल्ली में ही है। 
खैर इस यूटिलाइजेशन का मुझे बड़ा लाभ हुआ, क्योकि केवल एक रकसैक कंधे पर टांगे घूमना 
कही ज्यादा सुविधाजनक और आरामदेह था बजाय तीन सूटकेस नुमा बैग लटकाए।

 यदि आपको कम समय मे अधिक और लम्बी यात्राएं करनी हो तो कोशिश कीजिये के 
आपके पास बोझ कम हो, फैशन के चक्कर मे पड़ने के बजाय केवल काम के और उपयोगी कपड़ों 
को ही तरजीह देना चाहिए, इससे आप पर अनावश्यक थकान और बोझ नही पड़ता और यात्रा सुगम होती है।
अब हम गाड़ी में थे, शाम के 6 बज रहे थे, लेकिन अंधेरा इतना घना हो चुका था मानो रात 
के बारह बज रहे हो, पहाड़ों में वैसे भी समय का अंदाजा नही लग पाता। मैं तो चोपता में आकर दिन 
और तारीख तक भूल गया था। ड्राइवर बार बार समझाते रहे के हमे रुक जाना चाहिए था,
 मैंने समझाया कोई बात नही, यदि चेक पोस्ट वाले देवप्रयाग पर रोक देंगे तो वही होटल में रुक जाएंगे 
और घाट पर भी चले जायेंगे। 
इसी बीच साले साहब का फोन आया के वे दिल्ली से हरिद्वार पहुंचने वाले है, वे इतने वर्षों से 
दिल्ली में है इसके बावजूद हरिद्वार,और ऋषिकेश से पूर्णतया अनजान है। 
मुझे हैरानी तब हुई जब पता चला के उन्हें हर की पौड़ी और राम झूला,लक्ष्मण झूला तक के नाम नही पता।
 खैर मैंने उन्हें हरिद्वार बस स्टैंड से ऋषिकेश के लिये बस पकड़ने का सुझाव दिया और लक्ष्मण झूला वाले
 इलाके में होटल बुक करने के लिये कहा।
दिल्ली से हरिद्वार आने का सबसे बुरा अनुभव रहा, एक तो हम 11 घण्टे में पहुंचे, 
दूसरे हरिद्वार में ऑटो वालो ने लूट मचा रखी थी, हम जहां उतरे थे वहां से हर की पौड़ी मात्र 3 किमी 
था लेकिन ऑटो वाले 700 से 1000 तक का मुंह फाड़ रहे थे, दूसरी परेशानी यह हुई के 
ऋषिकेश और हरिद्वार में ओला वगैरह नही चलती, बस मैप ही एक सहारा है। 
किसी प्रकार एक साइकल रिक्शा वाले अंकिल ने हमे मुख्य चौराहे तक पहुंचाने के 
लिये कह दिया जहा से किफायती दाम में ऑटो मिल जाती। व्वे बुजुर्ग थे तो मैं रिक्शा
 में बैठने के बजाय श्रीमती जी और साली जी को बिठा कर उनके पीछे पैदल ही निकल चला, 
रास्ते मे कई बार मैंने उनसे साइकिल चलाने का आग्रह किया लेकिन वे नही माने तो भाई हमने
 दो किमी उन्हें साइकिल पीछे से धकेल कर सहायता प्रदान की। वे रास्ते भर ऑटो और वैन वालो 
को गरियाते रहे के लूट मचा रखी है, धर्म की नगरी में अधर्मी यही तो है, श्रद्धालु एवं अनजानों को लूटते है,
 भगवान सब देख रहा है, केदारनाथ ऐसे ही नही बहा था, पाप यहां भी बढ़ रहा है, गंगा मैया
 ही अब सब ठीक करेंगी किसी दिन। 
खैर जहां उन्होंने रोका वहां से मोलभाव करने के पश्चात एक ऑटो वाला 150 में तैयार हो गया
 होटल तक जो गीता भवन के पास ही कही था। जब हम रास्ते मे निकले तब पाया के उसके चार्जेस वाजिब थे, 
मुख्य चौक से हमारे होटल तक का अंतर 7 किमी था। और पूरा रास्ता एकदम निर्मानुष्य भी था।
हरिद्वार का यह अनुभव अब तक मेरे जेहन में था। खैर अब हमारी कैब पूर्ण गति पर थी, 
संयोग अच्छा रहा के जाते समय कही रोड कटिंग और ट्रैफिक नही मिली और हम जस्ट फाटक बंद होते 
होते देवप्रयाग पहुंचे। फिर भी चेक पोस्ट वालों ने आगे बढ़ने देने से मना कर दिया, 
माँ गंगा, हरिद्वार, हर की पौड़ी 

ड्राइवर ने बहुत आग्रह किया वे नही माने तो मैं खुद गया और उनसे निवेदन किया हम काफी दूर से आ 
रहे और बहुत दूर जाना है, ऋषिकेश पहुंचना अत्यंत आवश्यक है, चोपता में अत्यधिक ठंड से तबियत 
भी खराब हो चुकी है तो हम यहां इस ठंड में नही रुक सकते, उस समय वाकई मुझे तीव्र बुखार हो चुका था,
 पता नही अफसर के मन मे क्या आया की उन्होंने गाड़ी नम्बर और ड्राइवर की पूर्ण जानकारी 
दर्ज करके हमे जाने दिया। 
अब गाड़ी सरपट थी, आते समय जहाँ हमे 11 घण्टे लगे थे, जाते समय हम 8-9 घण्टे में ही पहुंच गए थे,
 साले जी ने लक्ष्मण झूला के समीप ही होटल बुक कर लिया था, मुझे लोकेशन मिल चुकी थी 
तो कैब सीधे होटल तक ले गए और उनकी पेमेंट करने के पश्चात होटल में प्रवेश किया। 
साले जी अब साथ थे, मेरे मुंह से अत्यधिक थकान के कारण बोल न फुट रहे थे, 
सम्पूर्ण शरीर दर्द कर रहा था, बुखार के कारण आंखे मानो जल रही थी, कमरे में पहुंचकर मैंने 
बिना एक शब्द कहे बैग पटक दिया और जल्दी से कपड़े बदल कर बिना हाथ मुंह धोए ही बेड पर जा गिरा, 
साले जी मेरा ऐसा रूखा व्यवहार देखकर दुखी हो गए, मैंने बस इतना ही कहा के अभी बात
 करने की हालत में नही हु।
और उसके पश्चात मैं फौरन सो गया, अपनी 31 साल की जिंदगी में मुझे याद नही की मैं कब
 बिस्तर पर पड़ते ही एक मिनट के भीतर सो गया था, वो तो श्रीमती जी ने जबरन क्रोसिन खिलाने के
 लिये जगा दिया। अगली सुबह भी नौ बजे उठा तब थोड़ा सही लगा, बुखार उतर चुका था, साले जी से
 जी भर कर बात चीत की और उन्हें चोपता की थकान भरी यात्रा और अपने चोटिल होने की पूरी कहानी बताई,
 साथ ही साथ पुनः साली साहिबा को धन्यवाद दिया जो उन्होंने मेरी इतनी सहायता की जिसके बगैर मेरा
 वापस लौटना एक स्वप्न ही था। 
अब यहां आकर साली जी को एडवेंचर करने थे, वे रिवर राफ्टिंग के लिये उत्साहित थी। 
मेरे दोनो हाथ दुख रहे थे, एक कलाई में सूजन भी थी, तो मैं रिवर राफ्टिंग नही कर सकता था,
 वैसे मैं करना भी नही चाहता था। मुझे डर लगता था।
तब साली जी ने अपने भाई को इसके लिये तैयार किया, जब साली जी तैयार होने चली गई तो साले 
साहब ने पूछा ये रिवर राफ्टिंग में क्या होता है जीजा जी? मैंने उन्हें यूट्यूब पर वीडियोज दिखाए तो 
उनके होश फाख्ता हो गए। जब साली जी आई तो वे मिन्नते करने लगे की मत जाओ, बहुत खतरनाक है, 
पैसे भी दो और जान भी जोखिम में डालो यह कहा कि समझदारी है? वे अकेले ही जाने के लिए तैयार हो गई,
 उन्हें हर हाल में रिवर राफ्टिंग करनी ही थी।
अब भला उन्हें अकेले कैसे जाने देता तो मरता क्या न करता सोचकर मैं तैयार हो गया ।
फिर हमने नीचे एक एजेंसी से बात की, 500 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बात तय हुई, 
एजेंसी में विविध प्रकार के एडवेंचर स्पोर्ट्स के कैटलॉग और तस्वीरें लगी हुई थी।
साली जी वही देख रही थी, और मैं मना रहा था की भगवान करे
ये बस रिवर राफ्टिंग तक ही सीमित रहें, लेकिन वे बंजी जम्पिंग वाले कैटलॉग पर आकर रुक गई।
'बंजी जम्पिंग' भी करना है। उन्होंने कहा तो मेरे पसीने छूट गए।
साली साहिबा की जिद के चलते आखिरकार उनके साथ हमे भी उस चोटिल अवस्था मे रिवर राफ्टिंग के लिये तैयार होना पड़ा।  साले जी ने पहले ही हाथ खड़े कर दिए थे के उनसे न हो पायेगा, और श्रीमती जी का स्वास्थ्य उन्हें इस चीज की इजाजत नही देता था, तो एक एजेंसी द्वारा रिवर राफ्टिंग की बात तय हुई और पेमेंट कर दी गई।
 साले जी और उनकी बहन अर्थात श्रीमती जी ने हमारी अनुपस्थिति में लक्ष्मण झूला एवं राम झूला 
घुमने की योजना बनाई। मुझे और साली जी को राफ्टिंग में लगभग ढाई घण्टे लगने थे, वे बंजी 
जम्पिंग करने के लिये भी तैयार थी।
अब उन्हें मैं अपनी जिम्मेदारी पर लाया था तो उन्हें अकेले नही जाने दे सकता था, 
इसलिए उनके हर एडवेंचर में मेरा साथ रहना आवश्यक ही था। रिवर राफ्टिंग तक सही था 
लेकिन बंजी जम्पिंग का मूड देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए।
मैंने बहाने मारने आरम्भ कर दिए, यार 3500 ले रहे एक आदमी का बंजी जम्पिंग के लिये, 
ये तो पैसों का वेस्टेज है।
3500 भी दो और और पहाड़ से उल्टे लटक कर भी कूदो, यह कहां तक सही है?
वे बोली पहले राफ्टिंग करते है फिर तय करेंगे। तो हम राफ्टिंग के लिये एजेंसी द्वारा दी गई 
जिप्सी में निकल लिए, हमारा राफ्टिंग पॉइंट हमारे होटल से 16 किमी दूर था। इसी बीच जिप्सी 
में केवल महिलाएं ही दिखाई देने लगी, तब पता चला ये हमारी टीम में है। यानी इस राफ्टिंग में केवल एक 
मैं पुरुष सदस्य था। गाइड को यदि न गिना जाये तो।
कुछ देर बाद हम राफ्टिंग पॉइंट पर पहुंचे, हमारे समक्ष साफ स्वच्छ गंगा की लहरें थी, 
इतना स्वच्छ पानी वह भी बहती नदी का , मैंने और साली जी ने पहली बार ही देखा था।
तब तक जिप्सी पर से राफ्ट उतार दी गई, और हमे लाइफ जैकेट्स और हेलमेट्स पहना दीये गये। 
हमने वहां यादगार के लिये कुछ तस्वीरें खींची। 
गाइड ने हमे राफ्ट और पैडल के प्रयोग के विषय मे जानकारी प्रदान की और कुछ आवश्यक निर्देश भी दिए,
 जिसके अनुसार पूरी राफ्ट की जिम्मेदारी हमारी थी। हमे ही चलाना था और हमे ही गंतव्य तक पहुंचाना भी था। 
जब गाइड ने कहा के सबसे आगे वाले व्यक्ति पर सम्पूर्ण राफ्ट की जिम्मेदारी होगी और वही प्रमुख चालक होगा,
 तब मुझे पता चला के गाइड सबसे पीछे बैठ कर बस निर्देश देगा। अब तक मैं समझ रहा था राफ्ट वही चालएगा, 
तो मैंने ठान लिया के मैं तो मध्य में बैठूंगा।
लेकिन उस टीम में बस महिलाएं ही थी, केवल गाइड और मैं ही पुरुष थे, जिसमे से गाइड भाई 
पहले ही सबसे पीछे बैठने की बात कहके खिसक लिए। गाइड ने कहा की आप सबमे से सबसे मजबूत 
और प्रबल सदस्य आगे बैठ जाये।
तो सबकी सब महिलाओं ने एक साथ मेरी ओर ही देखा। एक ने तो कह भी दिया, आप ही
 सबसे मजबूत और पहलवान टाइप हो, हमारी जिम्मेदारी अब आपके ऊपर है।
मैंने सोचा के कहां फंस गया, एक तो यार मैं राफ्टिंग के लिये भी साली जी के कारण जबरदस्ती आया, 
और आया भी तो अब मुझे ही लीडर शिप करनी थी। 
साली जी ने छेड़ा भी, और बनो हीरो हाफ टी शर्ट पहन कर।
तभी मेरे सामने एक राफ्ट लहरों के मध्य कई फ़ीट तक उछली, जिसे देख कर हम सबकी ऊपर 
की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई।
साली जी ने कहा आप फिक्र ना करो, मैं आपके साथ आगे बैठती हु। तब थोड़ी हिम्मत आई और हमने हाई
 फाइव किया और हर हर गंगे कहकर राफ्ट में बताए निर्देशानुसार बैठ गए। धीरे धीरे हमारी राफ्ट किनारे से
 हट कर अब सीधे गंगा मैया की गोद मे थी। 
पानी तो अत्यधिक ठंडा था, और राफ्ट शुरू होते ही भारी लहरों के मध्य इस प्रकार हिचकोले खाई के
 एक संपूर्ण लहर राफ्ट के मध्य प्रवेश करके हम सबको पूर्णतया भिगो कर चली गई।
पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई, इसी प्रकार और भी अनेक लहरों से टकराकर राफ्ट आगे बढ़ी।
मैं अपनी पूरी शक्ति से पैडल चलाता था, किन्तु मेरी टीम की महिलाएं इस मामले में फिसड्डी साबित हुई, जब तक मैं चार बार चप्पू चला लेता तब तक उनका एक राउंड भी ठीक से नही हो पाता था।
हमारी राफ्ट इस बिगड़े तालमेल के कारण घूमने लगी। तब गाइड जी ने महिलाओं को एक लय से पैडल चलाने के निर्देश दिए, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
अब हुआ यह के पूर्ण शक्ति से पैडल चलाने के कारण मेरे कंधे दुखने लगे, पीछे वाली टीम से कोई सहायता प्राप्त नही हो रही थी, बस केवल साली जी थी जो पूरी शक्ति लगा रही थी, जिनकी वजह से मैं राफ्ट को दिशा देने में सफल हो रहा था।
शीघ्र ही मैं थक कर चूर हो गया। 
और उसी पल गाइड ने चप्पू रोकने के निर्देश दिए, अब हम सब शांत बैठे थे।
गंगा अब एकदम शांत थी, पहाड़ और जंगलों के मध्य इस निर्मल और स्वच्छ प्रवाह में बहना एक दिव्य अनुभूति सी थी। बीच बीच मे लहरों के कारण ठंडे जल की बूंदे हमे अवश्य भिगो जाती। गाइड ने इसी मध्य हमे बताया की जिसे पानी के मध्य कूदना हो वे राफ्ट की साइड में लगी रस्सियों को थाम कर कूद सकते है।
मैं तो कतई राजी नही था, लेकिन ग्रूप की दो एक लड़कियों ने इच्छा जताई और कूद गई। ये वही थी जो एक चप्पू चलाने में हांफ जाती थी और कूदने की बारी आई तो फौरन कूद गई।
साली जी ने भी पूछा मैं भी कुदू? जैसे मेरे कहने पर वे रुक ही जाती। मैंने हा कह दिया तो वे कूद पड़ी।
अब मुझे भी कूदना ही था, तो महादेव और गंगा मैया का नाम लेकर मैं भी कूद पड़ा।
कूदते ही मानो सीने से नीचे सम्पूर्ण शरीर एकदम से सुन्न हो गया। पानी अत्यधिक ठंडा था, जिस कारण निचला शरीर पूर्ण रूप से सुन्न सा होता प्रतीत हुआ। लेकिन यह मात्र कुछ सेकंड्स तक रहा, धीरे धीरे उस तापमान का आदि होने के बाद हमने खुद को राफ्ट के हवाले कर दिया। 
अब पानी मे छाती तक डुबे हम गंगा में बह रहे थे, मैं आंखे बंद कर इस अनुभव को समेट रहा था, शुरू में भले डर लगा लेकिन अब इसमें आनन्द आने लगा था। 
मन ही मन साली साहिबा को धन्यवाद दिया की उनकी जिद के ही कारण सही किन्तु कम से कम यह अनुभूति प्राप्त करने का अवसर तो मिला।
काफी देर तैरते रहने के पश्चात गाइड ने हमे पुनः राफ्ट में खींच लिया, अब भीतर का डर पूर्णतया गायब हो चुका था।
लहरे तेज होने लगी थी, राफ्ट उछलने लगी। लेकिन अब लहरों का डर खत्म हो गया था, और हमारे चप्पू तेज चलने लगे, कहने की बात नही के इसमे केवल मैं और मेरी पार्टनर ही सबसे अधिक मेहनत कर रहे थे। 
एक जगह आकर पुनः कूदने को कहा गया, साली जी पुनः कूद पड़ी लेकिन अब मेरी कूदने की इच्छा नही थी, मैं बस कुछ क्षण उस प्रवाह में शांत रहना चाहता था। कुछ देर पश्चात लक्ष्मण झूला दिखने लगा, अब हम निर्धारित तट की ओर बढ़ रहे थे।
राफ्टिंग समाप्त हो चुकी थी, करीब डेढ़ पौने दो घण्टे की राफ्टिंग वाकई में एक जबरदस्त और अद्भुत अनुभव था।
मैं यह भी भूल गया था की अभी एक दिन पहले तुंगनाथ ट्रैक के दौरान मेरी दोनो कलाइयां मुड़ चुकी थी।
ट्रैकिंग की पूरी थकान अब उतर चुकी थी।
इसी बीच साले जी का फोन आया, वे राम झूला घूम चुके थे मैंने आधे घण्टे में आने का आश्वासन दिया और जिप्सी में बैठ गया। 
कुछ ही देर में हम होटल में थे, जहां हमने कपड़े बदले और श्रीमती जी और साले साहब की प्रतीक्षा करने लगे।
हरिद्वार, हर की पौड़ी में
यह बात अच्छी हुई के साली साहिबा बंजी जम्पिंग के विषय मे एकदम से भूल ही गई, और मैं तो याद दिलाने वाला ही नही था।

वे लगभग आधे घण्टे में आये, तब योजना बनी की पहले लक्ष्मण झूला चलते है, कुछ खाते है और सीधे हरिद्वार चलते है, हर की पौड़ी पर गंगा आरती देखनी है।
हम अब लक्ष्मण झूला पर थे, सामने ही 13 मंजिला मंदिर था जो हमेशा तस्वीरों एवं फिल्मो में देखता आ रहा था। लेकिन कल की ट्रैकिंग और ट्रेवलिंग के बाद इतनी शक्ति नही थी की 13 मंजिला मंदिर चढ़ सके तो वही घाट पर घूमने के पश्चात हमने एक होटल में कुछ खाया। 
खाना तो वाहियात ही था, आधा मूड वही खराब हो गया। मुम्बई से निकलने के पश्चात बस चोपता में ही सही खाना मिला था, बाकी जगह तो काम चलाऊ कह सकते है।
खैर अब समय हो रहा था, 5 बज रहे थे और हमे जल्द से जल्द हरिद्वार पहुंचना था, ऋषिकेश के ऑटो वाले भी लूटने के मामले में हरिद्वार वालो से पीछे नही थे। 
हमे कोई 1000 कहता तो कोई 800, हमने कहा भाई आप जो किराया है वह लो, हम रिजर्व नही कर रहे पूरी ऑटो। आप और सवारी भी लीजिये। वे नया जानकर बेवकूफ बनाने का प्रयास करते रहे, लेकिन हम बेवकूफ तो थे नही।
आखिरकार होटल के थोड़ा आगे एक ऑटो स्टैंड था जहा से हर की पौड़ी रेगुलर जाती थी, वहां बात किये तो 400 कहने लगा, हमने कहा प्रति व्यक्ति किराया लेना है तो लो वरना जाने दो।
वरना आरती तो हम परमार्थ आश्रम की ही देख लेंगे।
आखिरकार ऑटो वाले ने मानक किराया बोला 60 रुपये प्रति व्यक्ति, जो कि 50 रुपये प्रति व्यक्ति होता है। ऑटो के भीतर किराए की सूची लगी हुई थी जहां हर की पौड़ी का किराया खुरच दिया गया था। लेकिन अब समय नही था तो हम बैठ गए, तकरीबन पौने या एक घण्टे के बाद हम हर की पौड़ी पहुंच चुके थे। हम गंगा घाट पर पहुंचे, मैंने श्रीमती जी, साली जी और साले जी को निर्देश दिए की घाट पर किसी प्रकार के कर्मकांड में ना पड़े। और ना ही किसी पंडे वगैरह के चक्कर मे पड़ें।
एक धागा या एक आरती भी सीधे 500 का चूना लगा सकती है। श्रद्धा मां गंगा में रखो कर्मकांडो में नही।
उन्हें पर्याप्त निर्देश दिए। और वही हुआ, हर कदम पर कोई ना कोई धागा बांधने वाले, आरती दिलवाने वाले, प्रसाद बांटने वाले मिलने लगे, चूंकि हम पहले ही सावधान थे इसलिये किसी के चक्कर मे नही पड़ें।
यहां आकर पता चला आरती समाप्त हो चुकी है, थोड़ी निराशा हुई लेकिन फिर यह सोचकर रह गया की आरती वगैरह तो बहाना है, असली श्रद्धा और भावना तो माँ गंगा का यह प्रवाह और इसका सानिध्य है, हम घाट पर काफी देर बैठे रहे। 
थोड़ा अफसोस अवश्य था लेकिन गंगा की शीतल लहरों ने जल्द ही सब भुला दिया। 
इसी मध्य श्रीमती जी की इच्छा हुई गंगा में दीप एवं फूल प्रवाहित करने की।
मैंने उन्हें समझाया माँ गंगा को इन सबकी आवश्यकता नही है, उसे स्वच्छ रखो यही पर्याप्त है, फूल पत्तियां दीये बहाकर हम उसे क्यो गंदा करें ? जो गंगा हमे हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग से इतनी सुंदर और स्वच्छ दिखती है, वह बनारस और प्रयागराज आकर इतनी मैली क्यो दिखती है, यही सब छोटे छोटे कर्मकांड वगैरह ही है जो उसे अस्वच्छ बनाते है, और यहां विभिन्न बोर्ड्स पर लिखा भी है, गंगा को स्वच्छ रखे वही उसकी सच्ची पूजा है। तो यही मान लो। 
फिर भी मैंने एक बार उनका मन रखने के लिये दिये लाने का विचार किया तो उन्होंने ही मना कर दिया।
काफी देर बैठने के पश्चात हमने मुख्य सड़क से अपने होटल की ओर एक ऑटो की और हरिद्वार से निकल लिये।
अगले दिन प्रातः हरिद्वार से दिल्ली के लिये ट्रेन थी तो ज्यादा।समय नही था, माँ गंगे से जब भी अवसर मिलेगा पुनः भेंट देने का निश्चय लेकर हमने विदा ली।
उसके बाद हम 3 दिन दिल्ली रहे, लेकिन हमारे जेहन में बस चोपता-तुंगनाथ-हरिद्वार-ऋषिकेश और उत्तराखंड के पहाड़ और ठंडी हंवाये ही थी। अब मुम्बई पहुंच चुका हूं,लेकिन अब भी महसूस होता है मानो मेरा कुछ हिस्सा वही छूट गया है।
भगवान महादेव और माँ गंगा को धन्यवाद देना चाहूंगा जिनके आशीर्वाद के कारण एक साल से अनेक बार बनते बिगड़ते मेरी यह योजना अंततः सफल हुई, इस योजना को सफल बनाने में मेरी श्रीमती जी, मेरी बच्ची अर्थात मेरी ट्रैकिंग और एडवेंचर पार्टनर साली जी, और साले जी का भरपूर योगदान है। 
अनेकों छोटे मोटे झगड़ो, मनमुटावों के बावजूद आखिरकार हम सब एक साथ थे।
एक साथ हमने अनेक अविस्मरणीय अनुभव किये। इस यात्रा ने कभी न मिट सकने वाली एक अमिट छाप हमारे मन मस्तिष्क में छोड़ दी। और हमारे रिश्तों में संबंधों में और अधिक प्रगाढ़ता और अपनापन बढ़ाया। ईश्वर हमारा साथ यू ही बनाये रखे जिससे हमें जल्द ही पुनः नई योजनाओं पर साथ कार्यरत होने का अवसर प्राप्त हो। साल का इससे बेहतर अंत नही हो सकता था मेरे लिए।

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