गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

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दिल्ली क्राइम : वेबसीरिज

वेबसिरिज के रूप में नेटफ्लिक्स ने 'दिल्ली क्राइम' नाम से एक उम्दा सीरीज बनाई है। यह पहली सीरीज है जिसे इतनी जल्दी समाप्त किया। निर्भया केस पर होने के कारण मैं इसे देखने से कतरा रहा था, मैं उस घटना का सजीव चित्रांकन देखने का साहस नही जुटा पा रहा था, किन्तु जब पता चला सीरीज उस घटना के पश्चात अपराधियों के पकड़ने की जद्दोजहद और इन्वेस्टिगेशन पर आधारित है, तब देखना आरम्भ किया और एकदम से बंध सा गया, उस घटना की भयावहता को अतिरंजकता से बचते हुए भी पर्याप्त गम्भीरता से दर्शाया गया है जो वाकई रोंगटे खड़े कर देता है। पुलिस की जांच और छोटे से छोटे सुराग के सहारे रात दिन दौड़ भाग करके अपराधियो तक पहुंचने की प्रक्रिया इतनी जबरदस्त है कि बिना किसी ड्रामे के भी आप दम साधे देखते रह जाते है। यह निस्संदेह ही इस साल की अब तक कि बेस्ट वेब सीरीज है यह कहना कोई अतिशयोक्ति नही होगी। फिल्मांकन और प्रस्तुतिकरण इतना चुस्त और रोमांचक है कि कब 7 एपिसोड्स समाप्त हो जाते है पता ही नही चलता, विक्टिम की पीड़ा, उससे जुड़े लोगों की बेबसी, पुलिस टीम की जांच, दिन रात अपने हालातों और परिस्थितियों से समझौता करते हुए असली अपराधियो तक पहुंचने के लिये बेचैनी से आप खुद ब खुद जुड़ जाते है, सीरीज के अंत तक आप खुद ब खुद पुलिस के प्रति अपनी नकारात्मक सोच में थोड़ा तो बदलाव अवश्य महसूस करते है । यह मत समझिये कि यह कोई डॉक्यूमेंट्री या नीरस ड्रामा है, नही कतई नही, यह एक तेज रफ्तार सीरीज है जिसके पहले एपिसोड से ही आप इसके अंत के लिये बेचैन हो उठते है।
बाकी इसका सशक्त पहलू इसके कलाकार भी है, हर छोटे से बड़े करेक्टर ने अपने चरित्र को इतनी सजीवता से जीया है कि लगता ही नही वे एक्टिंग कर रहे है, बिना किसी बनावटी या ओवर ड्रामेटिक दृश्यों के बगैर भी हर करेक्टर अपनी स्वतंत्र छाप छोड़ता नजर आता है।
वैसे वेबसिरिज ट्रेंड में आने से एक बात तो अच्छी हुई है और वह यह कि न जाने कितने ही भुला दिए गए और कमतर आंके गए कलाकारों को उनकी क्षमता दिखाने का एक सही प्लेटफॉर्म और अवसर प्राप्त हुआ है।
मैं रेटिंग वगैरह नही दे सकता, बस इतना कहूंगा मौका मिले तो देख लीजिये, निराश नही होंगे।
अंत मे मन मे कहीं एक प्रश्न अवश्य रह गया, इस भयानक कांड में सम्मिलित सारे अपराधी बेहद गरीब तबके और छोटे क्षेत्रों से संबंधित थे, इसके बावजूद उन्हें पकड़ने और चार्जशीट दायर करने में सारे पुलिस महकमे के दांतों तले पसीना आ गया, यदि इनके बजाय अपराधी रसूख और पैसेवाले होते तब क्या हालत होती ? इसके प्रमोशन में एक टैगलाइन प्रयुक्त की जाती है, केस जिसने सारे देश को बदल कर रख दिया।
लेकिन क्या वाकई कुछ बदला नजर आता है?

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