पिछली पोस्ट में चर्चा हुयी थी मेरे पसंदीदा कॉमिक्स चरित्र 'डोगा ' से मेरी पहली मुलाक़ात की
! इस पोस्ट में जिक्र होगा मेरी अपने हीरो ‘सुपर कमांडो ध्रुव ‘ से पहली मुलाक़ात का .
तब मुश्किल से चौदह पन्द्रह साल का रहा होऊंगा ( ठीक से याद नहीं ),
मै अपनी माँ के साथ अस्पताल गया हुवा था ,कुछ रूटीन चेक अप के लिए ,रास्ते में आते समय सडक के किनारे
एक पुस्तक की स्टाल पर नजर पड़ी ,जहा रंगबिरंगी और आकर्षक मुखपृष्ठ वाली पुस्तके रखी हुयी थी !
जिसे देखकर मन ललचाया ,मैंने माँ से जिद की ‘आई मुझे यह किताब ले दो न ‘
( ‘’माँ ‘ को मराठी में आई ही कहते है ) माँ ने मना किया ,लेकिन मेरे दो बार कहने पर ले दिया .
मै ख़ुशी से उछल ही पड़ा और किताबो के ढेर के सामने खड़ा हो गया ,और मैंने उपर रखी हुयी किताब झट से उठा ली ,
उसका नाम था ‘विडिओ विलेन ‘ ! सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स ,और उसके उठाने के पश्चात मैंने उसके
निचे और भी कई आकर्षक कॉमिक्स देखि ,लेकिन सोचा माँ गुस्सा करेगी इसलिए एक ही लि ,
मुझे उस वक्त पता नहीं था के वह कैसी कॉमिक्स है ,कौन नायक है ,क्या कहानी है ,
लेकिन कवर पर एक युवक को देखा जो एक गहरी खाई पर एक रस्सी पर खड़ा था और उसके गले में एक फंदा भी कसा हुवा था ,
उसके ठीक सामने ही हाथ में फरसा लिए एक लाल पोशाक में नकाबपोश खड़ा था उसी रस्सी पर !
मैंने उस नकाबपोश और उस युवक को देखकर ही अंदाजा लगा लिया के यह युवक ही नायक है कहानी का !
नकाबपोश कितना क्रूर लग रहा है ,और उसके गले में फंदा भी नहीं पड़ा है और हाथ में हथियार भी है !
इसका मतलब यह बुरा व्यक्ति है , वह कवर तो आप सभी फैन्स जानते है किसने बनाया था
लीजेंडरी आर्टिस्ट स्वर्गीय ‘प्रताप मलिक ‘ जी ने !
मैने घर पहुँचते ही कॉमिक्स उठायी और घर के बाहर चल दिया ,
और हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर एक मैदान था उसके किनारे पर कुछ बड़े बड़े पत्थर थे ,
दो पत्थरो ने एकदूसरे से जुड़कर कुर्सी की शक्ल ले ली थी ,मै वही आराम से अधलेटी अवस्था में कॉमिक्स पढने लगा ,
जब पढनी शुरू की तो बस बस पढ़ते ही गया और खत्म करके ही उठा ,
उस दिन सच में बहुत आनन्द आया ! बालमन प्रसन्न हो गया के मी पास ऐसी पुस्तक है ,
अनुपम सर जी के चित्रों ने मन को मोह लिया था ! और कथानक भी उसी हिसाब से रोमांचक ,
बस उसके बाद ध्रुव का ऐसा क्रेज जगा के किसी भी तरह से ध्रुव के कॉमिक्स के जुगाड़ में लगा रहने लगा ,
और ध्रुव के चक्कर में नागराज से भेंट हुयी ,फिर डोगा से भेंट हुयी
( डोगा से भेंट हुयी उसकी कॉमिक्स ‘खाकी और खद्दर ‘ से ,)
और हम कॉमिक्स मय होते चले गए ! उस समय तो इंटर नेट से कभी पाला ही नहीं पड़ा था और ना ही क्रेज था ,
टीवी पर भी सैकड़ो चैनल नहीं होते थे ,एक्का दुक्का चैनल उसमे भी हम बचो के मतलब के चुनिन्दा मगर सबसे बेहतरीन कार्यक्रम ,
बस यही हम बच्चो के मनोरंजन के साधन थे !
और अब इस मनोरंजन में कॉमिक्स भी जुड़ गयी और ऐसे जुडी के अब तक बरक़रार है !
ध्रुव में मुझे जो पसंद आया था वह था उसका बिना किसी सुपर पावर का होना ( बाद में भले ही कुछ मिल गए )
और उसकी सीधी सपाट मगर रोमांचक कहानिया ,ध्रुव की हर कॉमिक्स अपनेआप में बेजोड़ थी !
लेकिन जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई थी ,बहुत ज्यादा वह थी ‘मुझे मौत चाहिए ,वू –डू ,रुन्हो का शिकंजा ,उड़नतश्तरी के बंधक ,
( इन कॉमिक्स के बारे में मेरा मानना यह है के यदि कोई नया व्यक्ति भी ध्रुव की यह कॉमिक्स पढ़ ले तो वह ध्रुव का फैन हो जायेगा )
ओह्ह नाम गिनवाते गिनवाते मुझे ऐसा लग रहा है के मै शायद ध्रुव की नब्बे प्रतिशत कॉमिक्स का नाम लिख दूंगा ,
इसलिए रहने दीजिये भाई .
इसी बिच मै बड़ा हुवा ,समझदार हुवा और कॉमिक्स का शौक कही पीछे छूट गया !
तेरह साल हो गए कॉमिक्स की तरफ देखा भी नहीं ,ऐसे में फेसबुक से अपने ग्रुप से जुड़ा
और फिर से अंदर का बच्चा ललचाया जो नीली –पिली ड्रेस पहनने वाल सीधे बाल काढ़े लडके के कारनामो का दीवाना था ,
तो मैंने एकाध बिच की कहानिया पढ़ी ,तो देखा ध्रुव की जिन्दगी में आये हुए कुछ बदलावों को ,
तब लगा अरे यह क्या ? इतना सब कुछ कैसे हो गया ?
( ऐसा महसूस हुवा मानो जैसे हम किसी पुराने दोस्त के जीवन में आये अनपेक्षित बदलावों से विचलित हो जाते है ,
वही भावना आई ,उत्सुकता जगी )
और फिर वही उत्सुकता के कारण दोबारा कॉमिक्स के पागलपन ने आ घेरा और फिर तेरह साल बाद मै
अपने बचपन के सच्चे दोस्त से मिला ,जो मेरे साथ साथ बड़ा हुवा .
हम फैन्स का जूनून ही है के हम एक काल्पनिक पात्र को भी अपने जीवन का हिस्सा मानते है
और उसके सुख दुःख में हँसत रोते है ,
और उसकी कमांडो फ़ोर्स के तर्ज पर हम खुद को कैडेट और ध्रुव को ‘कैप्टेन ‘ कहकर अपना सम्मान व्यक्त करते है .
इसी उपलक्ष्य में हम सभी फैन्स ने वोटिंग के तहत ग्यारह मई और बारह मई को ‘’ध्रुव दिवस ‘’ के रूप में मनाया !
यह वोटिंग शोशल साईट फेसबुक के जरिये कई कॉमिक ग्रुप्स पर की गई ! और इसे बहुत बढ़िया प्रतिसाद भी मिला ,
और यह देखकर ख़ुशी हुयी के ‘कैडेट्स ‘ आज भी अपने ‘कैप्टेन ‘ को चाहते है ,हद से ज्यादा .
सैल्यूट कैप्टेन ,!
.
#कॉमिक्स_ट्रेंड_फिर_बढाए
! इस पोस्ट में जिक्र होगा मेरी अपने हीरो ‘सुपर कमांडो ध्रुव ‘ से पहली मुलाक़ात का .
तब मुश्किल से चौदह पन्द्रह साल का रहा होऊंगा ( ठीक से याद नहीं ),
मै अपनी माँ के साथ अस्पताल गया हुवा था ,कुछ रूटीन चेक अप के लिए ,रास्ते में आते समय सडक के किनारे
एक पुस्तक की स्टाल पर नजर पड़ी ,जहा रंगबिरंगी और आकर्षक मुखपृष्ठ वाली पुस्तके रखी हुयी थी !
जिसे देखकर मन ललचाया ,मैंने माँ से जिद की ‘आई मुझे यह किताब ले दो न ‘
( ‘’माँ ‘ को मराठी में आई ही कहते है ) माँ ने मना किया ,लेकिन मेरे दो बार कहने पर ले दिया .
मै ख़ुशी से उछल ही पड़ा और किताबो के ढेर के सामने खड़ा हो गया ,और मैंने उपर रखी हुयी किताब झट से उठा ली ,
उसका नाम था ‘विडिओ विलेन ‘ ! सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स ,और उसके उठाने के पश्चात मैंने उसके
निचे और भी कई आकर्षक कॉमिक्स देखि ,लेकिन सोचा माँ गुस्सा करेगी इसलिए एक ही लि ,
मुझे उस वक्त पता नहीं था के वह कैसी कॉमिक्स है ,कौन नायक है ,क्या कहानी है ,
लेकिन कवर पर एक युवक को देखा जो एक गहरी खाई पर एक रस्सी पर खड़ा था और उसके गले में एक फंदा भी कसा हुवा था ,
उसके ठीक सामने ही हाथ में फरसा लिए एक लाल पोशाक में नकाबपोश खड़ा था उसी रस्सी पर !
मैंने उस नकाबपोश और उस युवक को देखकर ही अंदाजा लगा लिया के यह युवक ही नायक है कहानी का !
नकाबपोश कितना क्रूर लग रहा है ,और उसके गले में फंदा भी नहीं पड़ा है और हाथ में हथियार भी है !
इसका मतलब यह बुरा व्यक्ति है , वह कवर तो आप सभी फैन्स जानते है किसने बनाया था
लीजेंडरी आर्टिस्ट स्वर्गीय ‘प्रताप मलिक ‘ जी ने !
मैने घर पहुँचते ही कॉमिक्स उठायी और घर के बाहर चल दिया ,
और हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर एक मैदान था उसके किनारे पर कुछ बड़े बड़े पत्थर थे ,
दो पत्थरो ने एकदूसरे से जुड़कर कुर्सी की शक्ल ले ली थी ,मै वही आराम से अधलेटी अवस्था में कॉमिक्स पढने लगा ,
जब पढनी शुरू की तो बस बस पढ़ते ही गया और खत्म करके ही उठा ,
उस दिन सच में बहुत आनन्द आया ! बालमन प्रसन्न हो गया के मी पास ऐसी पुस्तक है ,
अनुपम सर जी के चित्रों ने मन को मोह लिया था ! और कथानक भी उसी हिसाब से रोमांचक ,
बस उसके बाद ध्रुव का ऐसा क्रेज जगा के किसी भी तरह से ध्रुव के कॉमिक्स के जुगाड़ में लगा रहने लगा ,
और ध्रुव के चक्कर में नागराज से भेंट हुयी ,फिर डोगा से भेंट हुयी
( डोगा से भेंट हुयी उसकी कॉमिक्स ‘खाकी और खद्दर ‘ से ,)
और हम कॉमिक्स मय होते चले गए ! उस समय तो इंटर नेट से कभी पाला ही नहीं पड़ा था और ना ही क्रेज था ,
टीवी पर भी सैकड़ो चैनल नहीं होते थे ,एक्का दुक्का चैनल उसमे भी हम बचो के मतलब के चुनिन्दा मगर सबसे बेहतरीन कार्यक्रम ,
बस यही हम बच्चो के मनोरंजन के साधन थे !
और अब इस मनोरंजन में कॉमिक्स भी जुड़ गयी और ऐसे जुडी के अब तक बरक़रार है !
ध्रुव में मुझे जो पसंद आया था वह था उसका बिना किसी सुपर पावर का होना ( बाद में भले ही कुछ मिल गए )
और उसकी सीधी सपाट मगर रोमांचक कहानिया ,ध्रुव की हर कॉमिक्स अपनेआप में बेजोड़ थी !
लेकिन जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई थी ,बहुत ज्यादा वह थी ‘मुझे मौत चाहिए ,वू –डू ,रुन्हो का शिकंजा ,उड़नतश्तरी के बंधक ,
( इन कॉमिक्स के बारे में मेरा मानना यह है के यदि कोई नया व्यक्ति भी ध्रुव की यह कॉमिक्स पढ़ ले तो वह ध्रुव का फैन हो जायेगा )
ओह्ह नाम गिनवाते गिनवाते मुझे ऐसा लग रहा है के मै शायद ध्रुव की नब्बे प्रतिशत कॉमिक्स का नाम लिख दूंगा ,
इसलिए रहने दीजिये भाई .
इसी बिच मै बड़ा हुवा ,समझदार हुवा और कॉमिक्स का शौक कही पीछे छूट गया !
तेरह साल हो गए कॉमिक्स की तरफ देखा भी नहीं ,ऐसे में फेसबुक से अपने ग्रुप से जुड़ा
और फिर से अंदर का बच्चा ललचाया जो नीली –पिली ड्रेस पहनने वाल सीधे बाल काढ़े लडके के कारनामो का दीवाना था ,
तो मैंने एकाध बिच की कहानिया पढ़ी ,तो देखा ध्रुव की जिन्दगी में आये हुए कुछ बदलावों को ,
तब लगा अरे यह क्या ? इतना सब कुछ कैसे हो गया ?
( ऐसा महसूस हुवा मानो जैसे हम किसी पुराने दोस्त के जीवन में आये अनपेक्षित बदलावों से विचलित हो जाते है ,
वही भावना आई ,उत्सुकता जगी )
और फिर वही उत्सुकता के कारण दोबारा कॉमिक्स के पागलपन ने आ घेरा और फिर तेरह साल बाद मै
अपने बचपन के सच्चे दोस्त से मिला ,जो मेरे साथ साथ बड़ा हुवा .
हम फैन्स का जूनून ही है के हम एक काल्पनिक पात्र को भी अपने जीवन का हिस्सा मानते है
और उसके सुख दुःख में हँसत रोते है ,
और उसकी कमांडो फ़ोर्स के तर्ज पर हम खुद को कैडेट और ध्रुव को ‘कैप्टेन ‘ कहकर अपना सम्मान व्यक्त करते है .
इसी उपलक्ष्य में हम सभी फैन्स ने वोटिंग के तहत ग्यारह मई और बारह मई को ‘’ध्रुव दिवस ‘’ के रूप में मनाया !
यह वोटिंग शोशल साईट फेसबुक के जरिये कई कॉमिक ग्रुप्स पर की गई ! और इसे बहुत बढ़िया प्रतिसाद भी मिला ,
और यह देखकर ख़ुशी हुयी के ‘कैडेट्स ‘ आज भी अपने ‘कैप्टेन ‘ को चाहते है ,हद से ज्यादा .
सैल्यूट कैप्टेन ,!
.
#कॉमिक्स_ट्रेंड_फिर_बढाए
gajab dour tha wo bhi jab comic se jyada kuch achcha he nahi lagta tha
जवाब देंहटाएंये दीवानगी आज भी कम नहीं है ! इसका उदाहरण आप फेसबुक ग्रुप्स पर देख सकते है ! हां किन्तु अब वह बचपना नहीं रह गया ये अलग बात है .
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