इस महीने दो फिल्मे
आई जिनमे गोविंदा दोबारा दिखे तो
कुछ उम्मीद बंधी के वे
फिर अपना जलवा दोहराएंगे !किन्तु
‘किल दिल ‘ की तरह उनका किरदार भी इस
फिल्म में मात्र मुश्किल से पन्द्रह बीस मिनट
का रहा ,
फीर भी गोविंदा जितनी बार दिखे,उतनी बार चेहरे पर कुछ मुस्कान जरुर बिखेरी
!
लेकिन बात करते है फिल्म के असल नायक ‘सैफ अली खान ‘ की ,
क्योकि फिल्म उन्ही पर केन्द्रित
है !
‘यूडी’ ( सैफ ) ने इक
बेस्ट सेलर बुक लिखी है ,
जिसकी रोयल्टी से वह अपनी जिन्दगी मजे में गुजार रहा है !
उस एक पुस्तक के कारण उसे इतनी रोयल्टी मिली के उसने दोबारा कोई पुस्तक नहीं लिखी
,
और अपनी अय्याशियों में व्यस्त रहा ,
उसकी आँखे तब खुलती है जब एक नयी राईटर ‘आंचल
‘
(इलियाना डिक्रूज )बेस्ट सेलर का खिताब पाती है और यूडी की रोयल्टी बंद हो जाती है
,
अब यूडी कंगाल हो चूका है और उसे अब दोबारा कुछ लिखना है ,
लेकिन वह लिख पाने में खुद
को असमर्थ पाता है ,
ऐसे में उसका प्रकाशक उसके आस एक फिल्म का ऑफर लेकर आता है जो
‘अरमान’( गोविंदा ) के लिए बन रही है ! अरमान अपनी फिल्म को अलग अलग फिल्मो से
कहानिया
उठाकर बनाना चाहता है लेकिन ‘यूडी ‘
उसे कुछ हटके लिखने के लियी कहता है तो अरमान उसे
कुछ समय देता है
कहानी लिखने के लिए !
अब ‘यूडी ‘ आंचल से
नजदीकी बढाता है ताकि वह उससे प्रेरणा लेकर कुछ लिख सके ,
लेकीन होता इसके उल्टा है
! यूडी कभी किसी के साथ रिलेशन में नहीं रहा ,
उसके लिए रीश्ते सिर्फ कुछ दिनों के लिए
होते है कोई भावनात्मक लगाव नहीं !
किन्तु कूछ घटनाओ के पश्चात ‘आंचल ‘ और ‘यूडी ‘
नजदीक हो जाते है ( आजकल फिल्मो में ‘नजदीक’ का
अर्थ कुछ अलग ही है ) इसे बावजूद दोनों
रिश्ते को लेकर कन्फ्यूज है
( उबासी आने लगी है अब रिश्तो को लेकर ऐसी कन्फ्यूजन वाली
फिल्मो से ) फीर क्या होता है ,
यूडी और आंचल के रिश्ते को क्या मोड़ मिलता है ,यही बाकी
कहानी है
( अरमान की कहानी भूल ही जाईये )
यह थी फिल्म की कहानी
,फिल्म में गोविंदा ने एक जगह कहा है के ‘कहानी का फर्स्ट हाफ बेटर था
लेकिन सेकंड
स्लो ‘ वही बात यहाँ भी है ! सैफ अब ऐसी भूमिकाओ में पता नहीं क्यों खुद को दोहरा रहे
है ,
एक फ़्लर्ट इन्सान ,पैसे वाला ,शराब और पार्टी का शौक़ीन ,
कपड़ो की तरह लडकिया बदलनेवाला
,चालीस पचास की उम्र तक शादी न करनेवाला ,फीर एक दोस्त से मिलना ,
दोस्ती का प्यार
में बदलना ( जो पहले बेड से शुरू होकर फिर दिल में उतरता है ) ,
फिर रिश्ते को लेकर
कन्फ्यूजन ,लड़का स्वीकार करे तो लडकी कन्फ्यूज !
इन सबमे वही तो है जो
पिछली फिल्मो ‘लव आजकल ,कॉकटेल , आदि में है !
कुछ नया सा प्रतीत ही नहीं होता ,फिल्म
में ‘रणवीर शौरी ,कल्कि कोचलिन ,प्रीटी जिंटा ‘
छोटी छोटी भूमिकाओ में है और अच्छे
लगते है ,कल्कि थोड़ी ओवर लगी
किन्तु शायद उनका किरदार ही ऐसा था ! ‘गोविंदा ‘ को लेकर
अब यह लगने लगा है के
कही वह अब सिर्फ ‘मेहमान ‘ भूमिकाओं में ही न नजर आने लगे !
सैफ
के किरदार अब उम्र के हिसाब से मैच्योर लगने के बजाय बचकाने से प्रतीत होने लगे है
,
उन्हें दोहराव से बचना चाहिए ,एक ही तरह के किरदार हर फिल्म में करना उन्हें सिमित
ही
करेगा और कुछ नहीं ! फिल्म के संगीत से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती
,एकाध धीमे
गीत जरुर सुनने में अच्छे लगते है
लेकिन याद रखने के लिए खासा जोर देना पड़ता है दिमाग
पर ,
फिल्म में ऐसा कुछ नहीं
जिसे न देखा तो अफ़सोस हो ,
डेढ़ स्टार
देवेन पाण्डेय
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