मंगलवार, 11 नवंबर 2014

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फिल्म एक नजर में : दी बुक ऑफ़ एली ( 2010 )

फिल्म का कांसेप्ट काफी अनुठा है ! फिल्म की कहानी परमाणु हमलो से तबाह हो चुकी ऐसी धरती की है ,जो आज हर चीज को मोहताज है ,उस युद्ध को बीस साल बीत चुके है ! एक पूरी पीढ़ी और युग उस समय के साथ नष्ट हो गयी ,
अब बचे है सर नयी पीढ़ी जिसने युद्ध के पहले की दुनिया नहीं देखि ! वह हर उस चीज से अंनजान है जो उनके जन्म के पहले की है ! दुनिया के संसाधन खत्म हो चुके है ,विकिरणों से सूरज की तीव्र गर्मी सीधे धरती पर पहुँच रही है जिसके कारण बरसात भी नहीं होती ! लोग मामूली सी चीजो के लिए भी किसी की हटी कर देते है ! इंसानी जान सस्ती है रोटी के चंद टुकडो से ,ऐसे में एक बुढा जिसक नाम “एली ‘ है ,जो एक बंजारे जैसी जिन्दगी जी रहा है ,बहुत कम लोग बचे है जो उसकी उम्र के है और जिन्होंने धरती को पहले जैसा देखा है !उसके पास एक किताब है ,जिसकी वह हिफाजत कर रहा है ,वह थोडा सनकी लेकिन गजब का लड़ाका है ! तो वही दूसरी और एक छोटा सा क़स्बा है जहा एक महत्वकांक्षी व्यक्ति अपनी सत्ता चलाना चाहता है ,वह भी एली की उम्र का है और वह एक किताब की तलाश में है जिसके शब्दों का सहारा लेकर वह नयी दुनिया पर अपनी हुकुमत चाहता है ,वह लोगो को उस पुस्तक के शब्दों से काबू करना चाहता है ,और वही पुस्तक एली के पास है ,और वह है ‘बाईबल’ जो पृथ्वी पर बची एकमात्र बाईबल है ,उस युद्ध के समय दुनिया की सारी धार्मिक पुस्तको को नष्ट कर दिया गया है ,इसलिए युद्ध के पश्चात बचे लोगो के पास कोई मार्गदर्शन नहीं है ! संयोग से एली भी उसी कसबे में आता है ,जहा के शाषक को एली के पास पुस्तक होने का संदेह होता है ,वह उस पुस्तक को हथियाने के लिए वह की एक लडकी ‘सुमायरा ‘ का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है ,लेकिन एली उनके कब्जे से निकल जाता है और सुमायरा भी एली के साथ निकल जाती है ,अब शाषक उस पुस्तक को पाने की चाहत में एली के पीछे है और एली उस पुस्तक को बचाकर दूर कही ‘वेस्ट ‘ में ले जाना चाहता है जहा स उसका प्रसार कर सके !फिर क्या होता है यही आगे की कहानी है ! बड़ी ही दिलचस्प कहानी बुनी गयी है ,इस कहानी की विशेषता यह है के आप इसे किसी एक धर्म से जोड़ कर देखने के बजाय हर धर्म से जोड़ कर देख सकते है ! बाईबल की जगह पर एनी ग्रन्थ भी रख सकते है !मर्म वही रहेगा ,भटके एवं मार्गदर्शन रहित समाज को प्रेरणा एवं सही रह दिखाने का एकमात्र जरिया यह पुस्तके ही है ,एक पूरी पीढ़ी जो इन ग्रंथो के महत्व से अनजान है किस कदर बंजारों की भाँती भटक रही है ,इंसानियत कैसे लुप्त हो चुकी है ,इन सबका विस्तृत वर्णन किया गया है !नही नही ,यह कोई आर्ट फिल्म या धीमी बोरिंग फिल्म नहीं है ! यह एक्शन और थ्रिल से भरपूर फिल्म है जो कुछ सोचने पर मजबूर करती है ,फिल्म की कहानी और इन पुस्तको की महत्ता बहुत सामायिक है ,फिल्म की शुरुवात और फिल्म का अंत दोनों एकदम विपरीत है ,शुरुवात जहा हिंसा से होगी ,मानवता के विद्रूप स्वरूप से होगी तो वही अंत एक शांति का अहसास देता है जो एक खूंखार व्यक्ति को संत बना देता है ! जिसने ईश्वर का रास्ता अपनाया उसने सबकुछ खोकर भी संतोष पाया मोक्ष पाया ,आर जिसने ईश्वर की राह छोड़ी उसने सबकुछ पाकर भी सब खो दिया ,देखने लायक फिल्म है ,अवश्य देखे .चार स्टार देवेन पाण्डेय

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