शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

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फिल्म एक नजर में : घायल वंस अगेन .

काफी समय से सनी देओल की कोई सफल फिल्म नहीं आई थी ! जो आई भी उनका नाम तक किसी को याद नहीं ,जैसे कंगना रानावत और सनी की ‘आई लव एन वाय ‘’ जो काफी अरसे से डिब्बा बंद थी और जिसने बॉक्स ऑफिस पर पानी तक नहीं माँगा .
आलम यह था के सनी को फिल्मे मिलना ही बंद हो गयी और यह बात खुद सनी ने स्वीकारी ,और एक दमदार कलाकार हाशिये पर धकेल दिया गया ! अब सनी के पास खुद ही फिल्म बनाने के आलावा कोई और चारा नहीं था ,और उन्होंने रिस्क लिया ‘’घायल वंस अगेन ‘’ बना कर जो उनकी ‘’घायल ‘’ का सिक्वल ,( वैसे सही मायनों में सिक्वेल ही है जबरदस्ती लिंक जोड़ने की कोशिश नहीं की गयी है पिछली फिल्म से ) फिल्म अलग है और इसका ट्रीटमेंट पिछली घायल से अलग है तो दोनों की तुलना करना मूर्खता होगी ,सच्चाई यह है के सनी को एक हिट  की अदद जरुरत थी जो उन्हें अपनी जगह पुनःस्थापित कर सके .
कहानी : अजय मेहरा ( सनी देओल ) अपनी चौदह साल की सजा काट कर बाहर निकलता है और अपनी जिन्दगी को मकसद देते हुए ‘सत्यकाम ‘ नमक मिडिया पोर्टल चलाता है जिसमे सनसनी के नाम पर किसी भी मसालेदार खबर को प्रमुखता नहीं दी जाती .
अजय सच के लिए लड़ता है , और इसके लिए कीसी भी हद तक जाने के लिए तैय्यार है ! बलवंत राय की दुश्मनी के चलते वह अपने परिवार को खो चूका है और मेंटल पेशंट रह चूका है , और ‘रिहा ‘ (सोहा अली खान ) उसकी डॉक्टर है जो उसकी देखभाल करती है .
इसी बिच कुछ बच्चो के हाथ एसीपी ‘डिसूजा ‘ (ओम पूरी ) के कत्ल का वीडिओ लगता है ,जिसमे शहर के बिजनेस टायकून राज बंसल ( नरेंद्र झा ) का और उसके बेटे का हाथ है .
इस कत्ल को एक्सीडेंट की शक्ल देकर छुपा लिया जाता है ,किन्तु जब बंसल को पता चलता है के कत्ल के सुबूत इन लडको के पास है तो वह उनकी जान का प्यासा हो जाता है .
अब उन लडको की जान बचाने और बंसल को सलाखों के पीछे करवाने का जिम्मा अजय अपने सर ले लेता है . फिर क्या होता है यही आगे की कहानी है .
फिल्म का ट्रीटमेंट नया है कहानी भले ही नब्बे के दशक की लगती हो ! यहाँ सनी ने बदलाव भी किये है और तकनीक का डील खोल कर इस्तेमाल किया है , फिल्म का फर्स्ट हाफ थोडा धिमा है जो भूमिका बांधने में निकल जाता है , फिल्म तब रफ़्तार पकडती है जब अजय राज बंसल की भिडंत होती है ,और उसके बाद फिल्म किसी होलीवूड एक्शन फिल्म की तरह हैरत अंगेज चेज ,और स्टंट्स के साथ आगे बढती हुयी रफ्तार के साथ खत्म होती है .
फिल्म के एक्शन डिरेक्टर होलीवूड से है जिसका असर साफ़ दिखाई देता है , उन दृश्यों की तारीफ़ करनी होगी जिनमे अजय का पीछा बंसल का विदेशी सिक्योरिटी चीफ करता है ! चाहे वह मुंबई की ट्रैफिक भरी सडको का हो जिसमे अजय सैकड़ो गाडियों से लड़ते भिड़ते हैरतंगेज तरीके से बच निकलता है ,फीर लोकल ट्रेन से कार टकराने का दृश्य हो या चलती लोकल में फाईट का , हर दृश्य तालियाँ और सीटियों का हकदार बनता दिखता है और वही पुराना सनी देओल दिखता है जो अपने घूंसों से दुश्मन को सुन्न कर देता है .
क्लाईमैक्स में बजट की कमी के कारण एनिमेशन का स्तर दिखता है ,जिसमे हैलीकॉप्टर बनावटी दिखाई पड़ता है ! लेकिन इस खामी को नजरअंदाज करना ही सही है ,कुल मिलाकर फिल्म सनी के कंधो पढ़ी टिकी हुयी है , फिल्म को उम्मीद से बेहतर ओपनिंग मिली है जो सनी और उनके फैन्स के लिए ख़ुशी कीबात है ! और काफी सकारत्मक रिव्यू के साथ दर्शको का भी प्यार मिला है फिल्म को ,उम्मीद की जा सकती है के यह फिल्म सनी की एक अदद हिट की कामना पूर्ती करेगा .
 फिल्म देखने लायक है , भावनात्मक दृश्यों का अभाव रहा है और एक अच्छी बात यह के एक्शन फिल्म में यदि जबरदस्ती का रोमांस घुसा दिया जाये ( जैसा के अक्सर बॉलीवूड में होता है ) तो फिल्म का कबाड़ा होना तय है ,लेकिन यहाँ ऐसे चोंचलों से साफ़ बचा गया है ,और रोमांस नाम की चीज ढूंढे नहीं मिलेगी , और गाने भी फिल्म में नदारद है केवल एक गाने ‘लपक झपक ‘ को छोड़ कर ,जो संक्षेप में उन चार युवाओ का इंट्रो करवाने का प्रयास है ,जिससे फिल्म बेवजह नहीं खिचती .
इस उम्र में भी सनी को एक्शन करता देख अच्छे अच्छे एक्शन स्टार्स को जलन हो सकती है .
रिव्यू वगैरह के चक्कर में न पडते हुए फिल्म को इंजॉय कीजिये
साधे तीन स्टार

देवेन पाण्डेय 

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