शनिवार, 21 मार्च 2015

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फिल्म एक नजर में : दम लगा के हईशा .

फिल्म के पहले ट्रेलर ने ही उत्सुकता जगा दी थी , 
जिस तरह से एक साधारण परिवार और बेमेल विवाह से उभरे संबंध पर 
आधारित एक मनोरंजक कहानी का तानाबाना बुना गया वह बेहद मनोरंजक है ,
और कुछ सीख भी देता है ,जहा आजकल ‘टाईमपास’ टाईप लव स्टोरीज का चलन है, 
जिसमे नायक नायिका मामूली सी बात पर ‘ब्रेक अप ‘ 
जैसे पश्चिमी चोंचलों को अपना कर रिश्तो का मजाक बनाकर उन्हें तोड़ देते है
 जैसी फिल्मो का बोलबाला है, और हर दूसरी फिल्म झूठी आजादी और बोल्डनेस की
 दुहाई सी देती प्रतीत होती है और रिश्तो में फैंटसी को ही तरजीह देती है ,
ऐसे समय में रिश्तो के अनकहे मूल्यों को समझाती यह फिल्म बेहद सराहनीय प्रयास है .
कहानी एकदम सरल है और उतना ही सरल है इसका फिल्मांकन ,लेकिन दिल को छू जाता है !
कहानी : हरिद्वार में रहनेवाला दसवी फेल नवयुवक ‘प्रेम प्रकाश तिवारी ‘ ( आयुष्मान खुराणा )
अपने पिता की कैसेट की दूकान में अपने मनपसंद गायक ‘कुमार सानु ‘ 
के गीतों के सानिध्य में अपना जीवन गुजार रहा है , प्रेम अंग्रेजी में कमजोर है 
( किन्तु हिंदी गजब है ) जिस कारण वह दसवी पास नहीं कर पाया ,
ज़माना बदल रहा है और कैसेट के ट्रेंड लुप्त होने की कगार पर है ,घर की माली हालत भी खस्ता है ! 
इसलिए प्रेम के पिताजी ( संजय मिश्र ) प्रेम का विवाह अपने मित्र की बेटी ‘संध्या ‘
 ( भूमि पेडणेकर ) के साथ करवा देते है , उनका मानना है के घर में पढीलिखी नौकरीशुदा बहु 
आयेगी तो घर के हालात सुधरेंगे !
प्रेम को यह शादी नापसंद है क्योकि संध्या हद से ज्यादा मोटी है , 
सपनीले गीतों में खोये रहनेवाले प्रेम के लिए विवाह किसी सदमे से कम नहीं है ! 
किन्तु वो घरवालो को मना नहीं कर सकता ! 
( एक तो संस्कार ,दूजे बाबूजी के जूते के डर )
 संध्या प्रेम को पसंद करती है लेकिन अपने प्रेम की कडवाहट का उसे अहसास नहीं .
विवाह के पश्चात प्रेम को संध्या के साथ रहने में शर्मिंदगी महसूस होती है ,
 वह उसे अपने जानपहचान ,एवं मित्रो के सामने लाने में लज्जा अनुभव करता है ,
 और यह बात संध्या समझ जाती है ! एक तो मोटी पत्नी ऊपर से ज्यादा पढ़ी लिखी और काबिल ,
यह देखकर प्रेम कुंठाग्रस्त रहने लगता है ,जिसकी वजह से घर में ए दिन तकरार होने लगती है ,
और जल्द ही रिश्तो की कडवाहट सबके सामने आ जाती है !
 संध्या अपने रिश्ते को बचाने का प्रयास करती है किन्तु प्रेम को इस रिश्ते का बोझ नहीं संभालना 
,एक बार नशे में अपनी पत्नी को मित्रो के सामने जलील करने के फलस्वरूप संध्या प्रेम को
 तमाचा जड देती है और इस रिश्ते के अंत की नीव पड़ जाती है .
फिर तलाक की नौबत आ जाती है ,किन्तु फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक के पहले विवाहित दम्पति को 
साथ में छह महीने गुजारने को कहती है उसी के बाद तलक होगा ,
अब चूँकि तलाक की नौबत आ चुकी है ,इसलिए दोनों एक कमरे में रहते हुए भी अजनबी की तरह है ! 
लेकिन इस कदम से खुश होने के बजे प्रेम दिन बी दिन कुंठित होते जाता है , 
संध्या इन छह महीनो को पति पत्नी की तरह नहीं अपितु मित्र की तरह रहने को कहती है 
ताकि रिश्ते को खत्म करने में आसानी हो .
फिर क्या होता है ,यह रिश्ता किस करवट मुड़ता है ,यही बाकी कहानी है .
फिल्म के सभी कलाकार चाहे वे प्रेम की मित्र हो ,बुआ ,माँ ,पिताजी हो या उनके संघप्रमुख 
‘शाखा बाबु ‘ हो ( उनका असल नाम पता ही नहीं चला ) सभी ने सहज अभिनय किया है ,
मानो वे फिल्म के कलाकार न होकर रोजमर्रा के चरित्र हो जिन्हें हम आसपास देखते है ! 
संजय मिश्र अपनी भूमिका के साथ पूरी तरह से रच बस गए है ,एक टिपिकल उत्तर 
भारतीय बाप की भूमिका में वे असरदार है, जो बेटे से प्यार भले ही न दिखाए 
लेकिन चप्पल लेकर जरुर दौड़ा दे ,
भूमि पेडणेकर ने वाकई  कमाल का अभिनय किया है , 
लगा ही नहीं के कही आप किसी अभिनेत्री को देख रहे है ,
एकदम सहज एवं जिवंत अभिनय , पति को भले ही उससे प्यार हो या न हो किन्तु
 दर्शको को अवश्य हो जाता है ! आयुष्मान ने प्रेम प्रकाश ...क्षमा कीजियेगा प्रेम ‘प्रेम प्रकास ‘ 
की भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है ,चाहे वो उनकी हिंदी हो या देहाती टोन ,
पूरी तरह से हरिद्वार मय युवक ,अपनी जिन्दगी से हारा हुवा और दोस्तों की सफलता से कुढ़ता हुवा ! 
अपनी पत्नी से सकुचाता हुवा ,काफी अलग अलग शेड लिए हुए है यह किरदार जिसपर कभी हंसी आती है ,
कभी गुस्सा आता है ,तो कभी तरस आता है !
फिल्म का संगीत भी फिल्म के माहौल के हिसाब से बढ़िया है और याद रह्ने लायक है ,
अनु मलिक एवं कुमार सानु ने फिर समा बांधा है ! फिल्म की कहानी नब्बे के दशक की है
 इसलिए संगीत भी नब्बे की दशक का माहौल लिए हुए है ,’तू मेरी है प्रेम की भाषा ,दर्द करारा ‘ 
आदि गीत कुमार सानु की आवाज में है ,तो ‘मोह मोह के धागे ‘ एक रूमानी अहसास लिये हुये है 
जो दो अलग मेल फिमेल वर्जन में है और दोनों ही बेहतरीन है ,
कुल मिलाकर फिल्म कहानी ,निर्देशन ,फिल्मांकन में तो बढ़िया है ही किन्तु संगीत ने भी 
कहानी को सुंदर बना दिया है ,पूरी तरह से एक मनोरंजक और साफसुथरी फिल्म 
( अपवाद के लिए एकाध दृश्य छोड़कर ),फिल्म में ऐसा कुछ नहीं जिसके लिए रेटिंग कम दे सकू ,
साफ़ कहू तो ऐसी कोई कमी नहीं दिखी जिसका उल्लेख कर सकू
पांच स्टार

देवेन पाण्डेय 

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