रविवार, 15 मार्च 2015

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गहन खामोशी

'बिटिया ' सयानी होने लगी थी , अब थोड़ी सी फ़िक्र होने लगी थी !
बेटा भी तो बड़ा था दो साल ,किन्तु  बिटिया की चिंता थोड़ी अधिक थी !
ममता या प्रेम तो था ही किन्तु एक डर भी था जिससे हर बिटिया वाले का सामना
 यदा कदा होता ही रहता ही !
पड़ोस की सहेलिया सलाह देने लगी 'बिटिया बड़ी  हो गई है ,
ध्यान दिया करो थोडा,  कोई उंच नीच न होने पाए '
उसी दिन बिटिया को समझाया '' अब तुझे थोड़ी सावधानी बरतनी होगी ,
घर आने के लिए देरी मत किया कर ''
बिटिया ने पुछा 'क्यों माँ ?'
अब क्या कहू ?
'' अब बाहर जमाना ठीक नहीं रहा , लडको से खतरा है ,परेशान करेंगे  ''
कैसे बैसे संक्षिप्त में समझाने का प्रयास किया .
उसने तुरंत बड़े भाई का नाम लिया .
'फिर भैया को भी बोलिए न जल्दी आने के लिए ,प्रमिला को परेशान करता है हमेशा !
 क्या उससे लडकियों को खतरा नहीं ? ''

गहन खामोशी छा गई 

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