रविवार, 25 जनवरी 2015

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फ़िल्म एक नजर में : बेबी

"नीरज पाण्डेय" ने अपनी क्षमता "अ वेडनसडे" में ही दिखा दी थी और उनसे उम्मीदे अपनेआप बढ़ गयी जिसे उन्होंने "स्पेशल छब्बीस" में भी जारी रखा । स्पेशल छब्बीस में उनकी जुगलबंदी "अक्षय "के साथ पहली बार दिखी और खूब सराहना भी मिली । अब वे बॉलीवुड में ऐसे फ़िल्मकार के रूप में जाने लगे जो हमेशा अलग विषय पर फिल्में बनाते है, अक्षय भी हाल ही में कुछ अच्छी भूमिकाओं में दिखे जिनमे "स्पेशल छब्बीस,और हॉलिडे "प्रमुख है । हा फ़िल्म "बेबी" में जरूर "हॉलिडे" वाली बात मिलेगी जिसका दर्शको को इंतजार था ।
फ़िल्म की कहानी एक ख़ुफ़िया दल की है,जो सिर्फ अपनी ट्रायल अवधि में है। ट्रायल के 5 सालो में इनकी कामयाबी को आधार बना कर इस ख़ुफ़िया दल को आगे काम जारी रखने की अनुमति दी जायेगी ।
चूँकि दल शुरुवाती दिनों पर है,इसलिये इसे "बेबी" नाम दिया गया है । दल के चीफ है "फिरोज"(डैनी ), दल में चार एक्टिव मेम्बर्स है ,अजय (अक्षय ),शुक्ला ( अनुपम खेर ),और तापसी।
अजय को अपने एक मिशन के दौरान भारत में होनेवाले श्रृंखलाबद्ध विस्फोटो का सुराग मिलता है,जिसका मास्टरमाईंड पाकिस्तानी आतँकवादी मौलाना अहमद है,जिसके लिये भारतीय जेल में बंद "बिलाल"( के के मेनन ) सज्ज है,और वह जेल से फरार होकर सऊदी पहुँच जाता है,नेपाल में मिले सूत्रो की वजह से अजय और तापसी उनके ऑर्गनाइजर जावेद तक पहुँच जाते है, और वहा से उनका अगला मिशन है सऊदी में बिलाल तक पहुंचकर उसे खत्म करना । वे बिलाल तक पहुँच तो जाते है ,लेकिन वहाँ पहुंचकर उनके हाथ मौलाना अहमद भी लग जाता है। जिसकी वजह से। वे खुश भी होते है लेकिन उसे जिंदा भारत लाना किसी चुनौती से कम नहीं,फिर कैसे वे अपने मिशन को अंजाम देते है वही बाकी कहानी है । फ़िल्म शुरू से अंत तक अपनी रफ़्तार में है और कही भी बिखराव या बेफिजूल का ड्रामा नहीं है,रोमांस,गाने आदि को फ़िल्म से दूर रख कर अच्छा ही किया गया है । सीक्रेट मिशन,आतँकवाद ,ऐसे विषय आते ही एक्शन का नाम जेहन में तुरंत कौंध जाता है। लेकिन यहाँ नीरज ने बखूबी बैलेंस बनाये रखा और फ़िल्म को बिना एक्शन के मसाले में लपेटे फ़िल्म को विषय के अनुकूल बनाये रखा,फ़िल्म के नायक से ज्यादा एक्शन तो एक ही सीक्वेंस में "तापसी पन्नू" के हिस्से में आ गया जब वो जावेद को धुल चटा देती है और नायक सब कुछ होने के बाद सिवाय हैरान होने के और कुछ नहीं कर पाता ।
फ़िल्म एक दृश्य है जो हंसने पर विवश कर देता है जब मिनिस्टर के सेक्रेटरी (मुरली शर्मा ) शहीदों का अपमान करते हुए कहते है "लोग तो मरते ही रहते है" उसके इस वाक्य पर अक्षय बड़ी शांति से उसे एक तमाचा जड़ देते है । इस दृश्य को बहुत ही साहजिकता से फिल्माया है,लेकिन लाजवाब बन पड़ा है । डैनी काफी दिनों बाद अच्छे रोल में दिखे,अनुपम खेर स्पेशल छब्बीस के रंग में ही दिखे ,तापसी ने जरूर अपनी छाप छोड़ी छोटे रोल के बावजूद ,राणा दगुबटि नाममात्र के संवाद में रहे । 
फ़िल्म हाफ में "हॉलिडे" की याद दिलाती है और हाफ में "डी डे" की । लेकिन इसके बावजूद नीरज कही महसूस नहीं होने देते के आप कोई दोहराव देख रहे है । अक्षय ऐसे रोल्स में जमते है उन्हें जारी रहना चाहिये ,ऐसी फिल्मो की एक ही बात खराब है के यह सिर्फ एक भाग तक ही सीमित रह जाती है,जहा हर फूहड़ कचरा फिल्मो के सिक्वेल बनाये जाते है,वही ऐसी फिल्में एक ही में सिमट रह जाती है ।
इस सफ्ताह आप इस फ़िल्म को अवश्य देखिये निराश नहीं होंगे ,बस एक्शन फ़िल्म समझने की भूल मत कीजिएगा ।
चार स्टार ।
देवेन पाण्डेय

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