फ़िल्म एक नजर में : अग्ली
अनुराग कश्यप का नाम इंडस्ट्री में साहसिक फिल्मकारों में गिना जाता है,इनकी बनाई फिल्मो का एक अलग ही दर्शक वर्ग होता है , अनुराग कभी भी बेवजह के चालु मसालो के चक्कर में नहीं पड़े और पूर्ण रूप से कहानी के साथ न्याय किया है । "ब्लैक फ्राइडे, नो स्मोकिंग,गैंग्स ऑफ़ वासेपुर,गर्ल इन यलो बूट्स, शॉर्ट्स, जैसी अलग फिल्मो से इन्होंने एक मजबूत दर्शक वर्ग खड़ा किया है । इनकी फिल्में कभी प्रिडक्टिबल नहीं रही ,दर्शक फ़िल्म के शुरुवात से आगे की घटनाओ का अंदाजा नहीं लगा सकता ।
ईसी तरह की फ़िल्म है "अग्ली" जो एक बच्ची के अपहरण को आधार बना कर लिखी गयी है । कहानी का केंद्र अपहरण है, किन्तु कहानी में मौजूद हर शख्स कैसे बदलता है यह फ़िल्म का एक शशक्त पहलु है ।
कहानी की बात करते है ,राहुल एक स्ट्रगलर है जो हीरो बनने की चाह में है । पैसो की तंगी और खराब परिस्थितियो के चलते उसका तलाक हो चूका है। वह अपने मित्र "चैतन्य" के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए प्रयासरत है,राहुल की पत्नी ने दूसरी शादी की है,और उसका पति एक सख्त ऑफिसर है "शौमिक"( रोनित रॉय) । अपनी पत्नी से राहुल को एक बेटी है "कली" जिसका अपहरण हो जाता है, और "शौमिक" संदेह में राहुल और चैतन्य को प्रताड़ित करता है । शौमिक की उसकी बीवी से भी नहीं बनती,किन्तु फिर भी वह कलि की तलाश युद्धस्तर पर कर रहा है,कहानी में कई किरदार आते है राहुल,राहुल का दोस्त"चैतन्य", शौमिक,उसकी पत्नी ,उसका साला जिससे शौमिक परेशान है ।
अपहरणकर्ता की तालाश में हर चरित्र बदलते जाता है । हर किरदार एक नकारात्मक छवि लिये हुए है जो अवसर की ताक में लगा रहता है।
फिर क्या होता है? कौन अपहरण कर्ता निकलता है यह भी काफी उलझन भरे तरीके से प्रस्तुत किया गया है । क्लाइमेक्स वास्तविकता का क्रूर रूप दिखाती है, कहानी का अंत अनपेक्षित है और दर्शको को विचलित कर सकता है ।
फ़िल्म के किसी भी किरदार के संबंध एकदूसरे से साफ़ नहीं है,हर कोई स्वार्थी नजर आता है, अभिनय की बात करना वो भी अनुराग कश्यप की फ़िल्म में ? भाई वो तो पत्थरो से भी अभिनय करवा ले । शौमिक के किरदार में रोनित क्रूर रहे है ,अनुराग की ही फ़िल्म "उडान" के किरदार से दो कदम आगे नजर आते है । फ़िल्म में एक जगह दृश्य है जब राहुल और चैतन्य बेटी के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस सटेशन जाते है तब पुलिसिया पूछताछ से राहुल और चैतन्य कम दर्शक ज्यादा खीजते नजर आएंगे । अनुराग बारीक सी बारीक चीजो को भी महत्वपूर्ण बना देते है,कहानी धीमी होने के बावजूद कसावट लिये हुये है । कुछ जगहों पर गालियों का प्रयोग अत्यधिक हो गया है, वैसे भी फ़िल्म में राहुल और उसकी पत्नी के संबंधो को समझने के लिये एक अलग से 5 मिनट का प्रोलोग ऑनलाईन रिलीज किया गया है। यह भी एक अनूठा प्रयोग किया है अनुराग ने ,फ़िल्म से इतर कुछ दृश्यों को रिलीज करना जो फ़िल्म में नहीं है । यदि आपने इसे नहीं देखा तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता फ़िल्म देखते वक्त,यदि देखा है तो फ़िल्म को समझने में अतिरिक्त सहायता मिलेगी ।
फ़िल्म पूरी तरह से डार्क है,कही भी हल्के पल नहीं है । एक भी गाना नहीं है,इसके बावजूद फ़िल्म दो घण्टे नौ मिनट की है ।
अनुराग कश्यप के फैन्स जरूर पसंद करेंगे,मसाला की चाह रखनेवालों को निराशा होगी ।
तीन स्टार
अनुराग कश्यप का नाम इंडस्ट्री में साहसिक फिल्मकारों में गिना जाता है,इनकी बनाई फिल्मो का एक अलग ही दर्शक वर्ग होता है , अनुराग कभी भी बेवजह के चालु मसालो के चक्कर में नहीं पड़े और पूर्ण रूप से कहानी के साथ न्याय किया है । "ब्लैक फ्राइडे, नो स्मोकिंग,गैंग्स ऑफ़ वासेपुर,गर्ल इन यलो बूट्स, शॉर्ट्स, जैसी अलग फिल्मो से इन्होंने एक मजबूत दर्शक वर्ग खड़ा किया है । इनकी फिल्में कभी प्रिडक्टिबल नहीं रही ,दर्शक फ़िल्म के शुरुवात से आगे की घटनाओ का अंदाजा नहीं लगा सकता ।
ईसी तरह की फ़िल्म है "अग्ली" जो एक बच्ची के अपहरण को आधार बना कर लिखी गयी है । कहानी का केंद्र अपहरण है, किन्तु कहानी में मौजूद हर शख्स कैसे बदलता है यह फ़िल्म का एक शशक्त पहलु है ।
कहानी की बात करते है ,राहुल एक स्ट्रगलर है जो हीरो बनने की चाह में है । पैसो की तंगी और खराब परिस्थितियो के चलते उसका तलाक हो चूका है। वह अपने मित्र "चैतन्य" के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए प्रयासरत है,राहुल की पत्नी ने दूसरी शादी की है,और उसका पति एक सख्त ऑफिसर है "शौमिक"( रोनित रॉय) । अपनी पत्नी से राहुल को एक बेटी है "कली" जिसका अपहरण हो जाता है, और "शौमिक" संदेह में राहुल और चैतन्य को प्रताड़ित करता है । शौमिक की उसकी बीवी से भी नहीं बनती,किन्तु फिर भी वह कलि की तलाश युद्धस्तर पर कर रहा है,कहानी में कई किरदार आते है राहुल,राहुल का दोस्त"चैतन्य", शौमिक,उसकी पत्नी ,उसका साला जिससे शौमिक परेशान है ।
अपहरणकर्ता की तालाश में हर चरित्र बदलते जाता है । हर किरदार एक नकारात्मक छवि लिये हुए है जो अवसर की ताक में लगा रहता है।
फिर क्या होता है? कौन अपहरण कर्ता निकलता है यह भी काफी उलझन भरे तरीके से प्रस्तुत किया गया है । क्लाइमेक्स वास्तविकता का क्रूर रूप दिखाती है, कहानी का अंत अनपेक्षित है और दर्शको को विचलित कर सकता है ।
फ़िल्म के किसी भी किरदार के संबंध एकदूसरे से साफ़ नहीं है,हर कोई स्वार्थी नजर आता है, अभिनय की बात करना वो भी अनुराग कश्यप की फ़िल्म में ? भाई वो तो पत्थरो से भी अभिनय करवा ले । शौमिक के किरदार में रोनित क्रूर रहे है ,अनुराग की ही फ़िल्म "उडान" के किरदार से दो कदम आगे नजर आते है । फ़िल्म में एक जगह दृश्य है जब राहुल और चैतन्य बेटी के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस सटेशन जाते है तब पुलिसिया पूछताछ से राहुल और चैतन्य कम दर्शक ज्यादा खीजते नजर आएंगे । अनुराग बारीक सी बारीक चीजो को भी महत्वपूर्ण बना देते है,कहानी धीमी होने के बावजूद कसावट लिये हुये है । कुछ जगहों पर गालियों का प्रयोग अत्यधिक हो गया है, वैसे भी फ़िल्म में राहुल और उसकी पत्नी के संबंधो को समझने के लिये एक अलग से 5 मिनट का प्रोलोग ऑनलाईन रिलीज किया गया है। यह भी एक अनूठा प्रयोग किया है अनुराग ने ,फ़िल्म से इतर कुछ दृश्यों को रिलीज करना जो फ़िल्म में नहीं है । यदि आपने इसे नहीं देखा तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता फ़िल्म देखते वक्त,यदि देखा है तो फ़िल्म को समझने में अतिरिक्त सहायता मिलेगी ।
फ़िल्म पूरी तरह से डार्क है,कही भी हल्के पल नहीं है । एक भी गाना नहीं है,इसके बावजूद फ़िल्म दो घण्टे नौ मिनट की है ।
अनुराग कश्यप के फैन्स जरूर पसंद करेंगे,मसाला की चाह रखनेवालों को निराशा होगी ।
तीन स्टार
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