भारत कॉमिकस अभी भी बच्चो
की चीज मानी जाती है ,जबकि पाश्चात्य देशो में यह काफी उपर उठ चुकी है और वहा यह
संस्कृति का हिस्सा है l कॉमिक्स चरित्रों की लोकप्रियता ही है के हर साल अच्छी
खासी तादाद में सुपरहीरो फिल्मे सिल्वर स्क्रीन पर दस्तक देती है और सफलता के परचम
लहराती है ,
( अफ़सोस बॉलिवूड को अभी भी
प्यार मोहब्बत ,एन आर आई स्टोरीज से ही फुर्सत नहीं ) कॉमिक इंडस्ट्री में दो ही
कम्पनीज दिग्गज मानी जाती है , जिनमे से एक है ‘’मार्वल ‘’ और ‘’डीसी ‘’
दोनों का अपना अपना स्टाईल
है और दोनों के ही जबरदस्त फैन बेस है l और दोनों में प्रतिस्पर्धा भी होती रहती
है जिसमे मार्वल हमेशा बाजी मार लेता है ( कहानी के मामले में नहीं ) मार्वल की
मार्केटिंग जोरदार होती है और वे प्रचार के लिए जी जान लगा देते है ,उनकी कहानिया
भी अधिकतर लाईट ट्रीटमेंट लिए होती है l वही डीसी को यदि मार्केटिंग के तराजू पर
तौला जाये तो पलड़ा हमेशा मार्वल के पक्ष में ही भारी रहता है , डीसी मार्केटिंग
में चूक जाती है और उनकी हर फिल्म में अच्छा खासा गैप भी होता है l जब तक डीसी की
एक फिल्म आती है ,मार्वल अपनी तीन तीन रिलीज कर देता है .
खैर बात करते है डीसी
यूनिवर्स की फिल्म बैटमैन वर्सेज सुपरमैन
: डौन ऑफ़ जस्टिस की , जिसकी प्रतीक्षा हर कॉमिक्स फैन को अरसे से थी , कॉमिक्स में
कई बार साथ आ चुके बैटमैन और सुपरमैन को लाईव एक्शन में देखने की इच्छा हर कॉमिक
फैन के मन में थी l
और आज यह फिल्म रिलीज हुयी
, फिल्म की कहानी शुरू होती है ब्रूस वेयन के बचपन की झलक से ,जब उसके माता पिता
की मौत होती है और वह बैटमैन बनने की ओर अग्रसर होता है .
कहानी का लिंक डीसी की
पिछली फिल्म ‘’मैन ऑफ़ स्टील ‘’ से जुड़ा हुवा है l सुपरमैन ( हेनरी केविल ) के धरती
पर आने और उसके ग्रह वासियों के हमले से मेट्रोपोलिस शहर लगभग तबाह हो जाता है ,
जिसमे ब्रूस वेयन ( बेन एफ्लेक ) की कम्पनी की एक इकाई भी तबाह हो जाती है और कई
कर्मचारी मारे जाते है l अब वह सुपर मैन को एक बड़े खतरे के रूप में स्वीकार कर
चूका है , और अपने आप को सुपरमैन से भिडंत के लिए तैय्यार करता है , एक ओर सनकी
साईंटिस्ट लेक्स ल्युथर ( जेसे आयसनबर्ग )
भी सुपरमैन को सरकार के सामने एक शक्तिशाली खलनायक के रूप में प्रस्तुत करता है और
जनरल जोड़ ( जो मैन ऑफ़ स्टील में सुपरमैन के हाथो मारा गया था ) के शरीर पर कुछ
एक्सपेरिमेंट की इजाजत मांगता है ,ताकि वह सुपरमैन की कमजोरी तलाश सके .
दूसरी ओर बैटमैन को जुर्म
के खिलाफ लड़ते हुए बीस साल हो चुके है l अब वह बदल चूका है और पहले से कही ज्यादा
खूंखार हो गया है , अब वह अपराध से लड़ने के लिए कोई कायदे कानून या रहम नही अपनाता
l उसके अपराध से लड़ने का तरीका क्लर्क
केंट उर्फ़ सुपर मैन को पसंद नहीं और दोनों में टकराव की वजहे जन्म ले चुकी है
,जिसमे काफी हद तक लेक्स का भी हाथ है .
एक मोड़ पर आकर दोनों
एकदूसरे के विरुद्ध आमने सामने आ खड़े होते है l एक महाशक्तिशाली एलियन और एक
स्मार्टेस्ट डिटेक्टिव और क्राईम फाइटर ,फिर होती है भिडंत l जीते कोई भी हार
मानवता की ही होनी है , फिर क्या होता है यह फिल्म में ही देखना उत्तम रहेगा .
फिल्म का ट्रीटमेंट डार्क
है , जिस तरह की डीसी यूनिवर्स का हमेशा होता है l हेक फुल्के पल फिल्म में बिलकुल
भी नहीं है l फिल्म की कहानी मध्यांतर के पहले काफी धीमी है जो फिल्म का माईनस
पॉइंट है , जिस वजह से फिल्म जरुरत से ज्यादा लंबी भी हो गयी है , फिल्म मध्यांतर
के बाद गति पकडती ही और जिसके बाद एक्शन शुरू होता है तो अंत में खत्म होता है ! फिल्म
का क्लाईमैक्स अनपेक्षित है जो कतई हजम नहीं होता .
एक्टिंग की बात करे तो
हेनरी सुपरमैन की भूमिका में जम चुके है , फिल्म का प्लस पॉइंट है बेन एफ्लेक का
बैटमैन होना l आज तक बनी बैटमैन फिल्मो से यदि तुलना की जाये तो बैटमैन की पोशाक
केवल बेन एफ्लेक पर ही जंची है , निर्देशक जैक स्नाईडर का बनाया बैट मैन अब तक का सबसे
शक्तिशाली बैटमैन है जो सुपर मैन से भी टक्कर लेने की कुव्वत रखता है ( जबकि यह
सम्भव नहीं )
सुपर मैन और बैटमैन के
आलावा एक और महिला किरदार की भी दमदार इंट्री हुयी है ( वंडर वूमेन ) जिसे अंत में
सुपर मैन और बैट मैन के साथ एक टीम बन कर लड़ता देखना काफी अच्छा लगता है .
फिल्म में कुछ और डीसी
किरदारों का स्पष्ट हिंट मिलता है जो निस्संदेह डीसी की सुपरहीरो टीम ‘’जस्टिस लीग
‘’ का हिस्सा बनने वाले है l और यह एक कॉमिक फैन के लिए निस्संदेह सबसे बड़ी खबर है
.
ऎसी फिल्मो के दर्शक दो
वर्गो के होते है , एक वे जो कॉमिक्स पढ़ते है और इन चरित्रों को भलीभांति जानते है
l जिनके कोई भी कारनामे उन्हें हैरान नहीं करते ,
दूसरा वर्ग वह है जो इन
हीरोज को केवल फिल्मो से जानता है l उसके पहले का उन्हें कुछ नहीं पता ,पता भी हो
तो आधी अधूरी जानकारी होती है ,
कहने का मतलब यह है ,के
पहले वर्ग के दर्शको के लिए फिल्म का कोई भी तर्क या लॉजिक निराधार है और उन्हें
कोई फर्क नहीं पड़ता l वे केवल सुपरहीरो को इंजॉय करने आये है .
दूसरा वर्ग अपने आपको इन
सबसे असहज महसूस करता है ! उन्हें यह हजम नहीं होगा के बैटमैन सुपरमैन के मुकाबले
कैसे खड़ा हो सकता है ( क्योकि वे उससे केवल उतना ही परिचित है जितना फिल्मो में
देखा है ) !
कुल मिला कर फिल्म देखनेलायक
तो है ही l जहा बैटमैन और सुपरमैन एक साथ आये वहा इतना कारण ही पर्याप्त है देखने
के लिए .
साढ़े तीन स्टार .
देवेन पाण्डेय
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