शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

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'मांझी दी माउन्टन मैन : ‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘

बिहार के अतिपिछडे इलाके में जन्मे ‘दशरथ मांझी ‘ की सत्य कथा पर आधारित इस फिल्म के निर्माण होने की घोषणा होने पर उत्सुकता जगी थी के अब बॉलीवूड में कुछ तो सार्थक देखने को मिलेगा .
और फिल्म देखने के पश्चात यह बात सत्य प्रतीत हुयी ,वैसे भी बॉलीवूड की हवा आजकल कुछ बदली हुयी है ! काफी रचनात्मक प्रयास आ रहे है , किन्तु भेडचाल अभी भी जारी है ! स्टारडम के खेल में न जाने कितनी ही उल जलूल फिल्मो से बॉक्स ऑफिस भरा पड़ा रहता है ,एक खोजे तो सौ मिलेंगी ऐसी मनोरंजन के नाम पर कूड़ा फिल्मे , किन्तु कुछ अच्छी एवं साहसिक फिल्मो का नाम लिया जाए तो उंगलियों पर गिनने लायक ही मिलेंगी ! इस साल की सर्वाधिक चर्चित एवं सफल फिल्म भी बॉलीवूड की बजाय दक्षिण की रही ,जिसने बड़े बड़े स्टारों के गुमान को चूर करके एक नया इतिहास रच दिया ,
चूँकि मांझी और बाहुबली दोनों ही में ही जमींन आसमान का फर्क है ,
किन्तु यहाँ दोनों फिल्मे साहसिक प्रयोग के लिए ही चर्चित होंगी इसमें संदेह नहीं .मांझी के निर्माता है ‘केतन मेहता ‘ जिन्होंने ‘मंगल पाण्डेय ‘ से प्रसिद्धि बटोरी थी ,
काफी आलोचना भी झेली थी, इतिहास का गलत चित्रांकन एवं तथ्यों को तोड़मरोड़ कर 
पेश करने के मामले में .उनकी इस फिल्म की चर्चा तो बहुत हुयी किन्तु यह सफल न हो सकी ! 
उनके विवादास्पद प्रयोग जारी रहे और ‘रंगरसिया ‘ फिल्म के रूप में दोबारा वे नजर आये ,
जो के फिल्म के मूल विषय से ज्यादा फिल्म के अन्तरंग दृश्यों से अधिक चर्चा एवं विवादों में रही .इसी क्रम में आती है ‘मांझी ‘ ! 
मांझी के बारे में अधिकतर लोगो को शायद पता न हो , 
किन्तु इस फिल्म के प्रचार प्रसार के दौरान जरुर लोगो के मैन में इस व्यक्ति के प्रति 
उत्सुकता पैदा कर दी,जिसने अकेले एक पहाड़ को बाईस साल तक कड़ी मेहनत से तोड़ मार्ग बनाया .यह हमारे देश का दुर्भाग्य है के यहाँ ऐसे लोग सदैव अभावो में जीते है, 
जो सच में कुछ अच्छा करना चाहते है ! अभाव, गरीबी, ही इनका मुकद्दर है ,
 मांझी पर आमिर खान के कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते ‘ में भी एक विशेष एपिसोड था !किन्तु उससे क्या बदला ? कुछ भी नहीं , मांझी का परिवार उनकी मृत्योपरांत आज 
भी गरीबी रेखा के निचे जी रहा है, और किसी को उनकी सुध नहीं !मांझी जब युवा थे तब दबंगों एवं ऊँची जातियों के बिच पिसते रहे ,
अत्याचार और शोषण सहते रहे , 
मरने के बाद भी मांझी केवल फायदे के लिए ही याद किये जाते है नहीं 
तो किसी को क्या लेना देना .फिल्म की बात करते है ,यहाँ भी सत्य कहानी की नीरसता को महसूस करते हुए 
निर्माता निर्देशक कुछ बिनमतलब  के दृश्यों का छौंका लगाने की मज़बूरी के
 शिकार नजर आये .जो शायद बॉक्स ऑफिस की मज़बूरी भी कह सकते है ,यहाँ जब तक कुछ चटपटा न मिले
 तब तक कोई कुछ देखना नहीं चाहता !‘’दशरथ मांझी ‘( नवजुद्दीन सिद्दीकी ) एक पिछड़ी जाती का युवक है , 
जो एक दुर्गम प्रदेश में रहता है ,जहा कोई भी सुविधा नहीं है ! 
एकमात्र अस्पताल एवं सडक भी पहाड़ के पार है ,जिसे या तो चालीस 
किलोमीटर सडक से पार करे अथवा पहाड़ चढ़ कर .मांझी के पिता गाँव के दबंग मुखिया ( तिग्मांशु धुलिया ) के कर्जे के चलते बंधुवा मजदूरी पर विवश है , 
और तो और मांझी भी बंधुवा बनने की रह पर है किन्तु उसे यह मंजूर नहीं होता
 और वह घर छोड़ कर भाग जाता है .कुछ वर्षो पश्चात उसकी वापसी होती है ,और वह अपनी पत्नी ‘फगुनिया ‘ 
( राधिका आप्टे ) से मिलता है ! जिसके साथ उसका विवाह बाल्यकाल में ही हो जाता है .दोनों में प्रेम अटूट है ,अभावो की मार भी इस अहसास को कमजोर नहीं कर पाती ,किन्तु इनके प्रेम को नजर लग जाती है और फगुनिया पहाड़ से गिर जाती है ,
 समय पर इलाज के अभाव में फगुनिया की मृत्यु हो जाती है  
और मांझी विशिप्त सा हो जाता है .अब वह उस पहाड़ को ही फगुनिया की मृत्यु का कारण मानता है और जुट जाता है
अकेले उस पहाड़ को तोड़ने के लिए .शुरुवात में सभी उसे पागल समझते है ,नजरअंदाज कर देते है ! 
किन्तु शीघ्र ही उसके कार्य का असर दीखता है एवं दबंगों का दबाव भी बढ़ता है ,
 सरकारी मदद भी हडप ली जाती है ,किन्तु मांझी हार नहीं मानता और बिना 
किसी सरकारी मदद के अथक प्रयत्नों से पहाड़ तोड़ कर मार्ग बना देता है .मांझी के किरदार में नवजुद्दीन एकदम सही है ! 
उन्होंने बहुत जल्दी बोलीवूड में अपनी पैठ बना ली है ,आलम यह है के नवाजुद्दीन का भी 
एक अलग दर्शक वर्ग तैयार हो गया है ,जो उनके नाम पर खींचे चले आते है के 
कुछ बढ़िया देखने को मिलेगा .मांझी के किरदार में वेपुरी तरह से राम से गए है , उनकी एक्टिंग फिल्म की आत्मा है  ,
तो वही राधिका आप्टे भी नए नए रोल्स में दिख रही है ! 
यहाँ उन्होंने गलैमरविहीन महिला का किरदार अदा किया है ,
और वे पूरी तरह से उस किरदार में घुल जाती है ,गाँव के मुखिया के किरदार में है तिग्मांशु धुलिया जो स्वयम एक निर्देशक है !  
यहाँ वे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के रामाधिर सिंह  की याद दिलाते है .संगीत पक्ष की बात करे तो फिल्म में गीत संगीत के लिए कोई स्कोप था ही नहीं ,
इसलिए उम्मीद न ही रखे !एक फिल्म के रूप में ‘मांझी ‘ वाकई बढ़िया एवं उत्कृष्ट फिल्म है ,
जिसे सिनेमाप्रेमियो को अवश्य देखना चाहिए ,यहाँ स्टारडम भले ही नहीं है किन्तु कहानी है ,
बढ़िया अभिनय है और बढ़िया प्रस्तुती है .और अंत में फिल्म का एक संवाद जो इसकी कहानी स्वयम प्रस्तुत करता है ,
अब तक के बेहतरीन संवादों में से एक ,मांझी के शब्दों में कहे तो 
‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘'भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो।'चार स्टारदेवेन पाण्डेय 

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