फिल्म एक नजर में : बॉम्बे वेलवेट
‘अग्ली ‘ के बाद अनुराग कश्यप अपनी नई फिल्म लेकर आये है ,जो उनकी अब तक बनाई गई सभी फिल्मो से अलग है ! वैसे ‘बॉम्बे वेलवेट’ अनुराग का सपना रही है ,जिस पर उन्होंने वर्षो मेहनत की है , फिल्म देखते वक्त आपको वह मेहनत साफ़ नजर आती है ,उनकी लगन फिल्म में साफ़ झलकती है ! किन्तु सिर्फ फिल्मांकन तक ही ,कहानी के स्तर पर वह मेहनत नजर नहीं आती जो इसके लोकेशन ,साठ के दशक की मुंबई पर नजर आती है !
और यही इस फिल्म का कमजोर पक्ष है , यह अनुराग की अब तक की सबसे बड़ी बिग बजट फिल्म है ! और बड़े स्टार्स के साथ भी ,इससे पहले अनुराग कम बजट में एवं छोटी स्टार कास्ट के साठ फिल्म बनाते थे ,जिसमे कहानिया भी शशक्त होती थी एवं अभिनय भी !
बात करते है बॉम्बे वेलवेट की ,जिसकी कहानी को देखते हुए इसका नाम ‘वन्स अपन अ टाईम ईन मुम्बई 3 ‘ भी रखा जा सकता था ! फिल्म की कहानी की शुरुवात में दो बच्चे है जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान से मुंबई आते है , और एक बदनाम जगह रहकर जीवन यापन करते है , बलराज महत्वकांक्षी है ! वह जीवन में आगे बढ़ने के लिए किसी भी गलत तरीके को अपनाने से गुरेज नहीं करता , उम्र के साथ बलराज ( रणबीर ) का जूनून भी बढ़ता जाता है !
और ,इत्तेफाक से उसकी मुलाक़ात ‘कैजाद खंबाटा ‘ ( करन जोहर ) से होती है ,जो एक बिजनेस टायकून है ,और हर गलत धंधे करता है ! वह बलराज से प्रभावित है और उसका इस्तेमाल करता है , बलराज को खंबाटा ‘बॉम्बे वेलवेट’ नाम के क्लब का मालिक बना देता है ,किन्तु वह इस क्लब की आड़ में अपने गैरकानूनी धंधो को अंजाम देता है ! वह मुंबई बनने के शुरुवाती दिन है ,जब मुंबई सात द्वीपों का समूह हुवा करती थी ,जिसेपाटकर एक महानगर बनाने की योजना परवान चढ़ रही थी ! इस निर्माण में बिल्डर , मंत्री ,भ्रष्ट अफसर ,उद्योगपतिहर सही गलत तरीको से अपनी तिजोरी भर रहे है , खंबाटा भी मुंबई का सरताज बनने की चाह रखे हुए है ,और बलराज उसके लिए एक मामूली प्यादा है ! दूसरी और बलराज अपने प्यार ‘रोजी ‘(अनुष्का शर्मा ) को क्लब की सिंगर बना देता है ,किन्तु उसका भी एक राज है ,जिसे वह बलराज से छिपा रही है ! इधर बलराज की इच्छाये भी बढती जा रही है,
जिसके चलते खंबाटा से उसके रिश्ते में दरार आ जाती है , और रोजी के राज के कारण ‘खंबाटा ‘
उसकी जान का दुश्मन बन जाता है ,फिर बलराज और खंबाटा की लड़ाई का क्या अंजाम होता है ,यही बाकी कहानी है ! अब कहानी सुनकर तो अंदाजा लग ही गया होगा के यह कहानी बोलीवूड में न जाने कितनी बार सुनी सुनाई ,
देखि दिखाई है ! फिल्म में करन जोहर खंबाटा के रोल में खलनायक कम कॉमेडियन ज्यादा लगते है ,
फिल्म के बाकी कलाकारो ने बढ़िया अभिनय किया है ,केके मेनन को करने के लिए कुछ ख़ास नहीं था इसलिए वे वही करते नजर
आये जो अब तक करते आये है ,अब उनमे दोहराव आने लगे है ,हर फिल्म में एक से भाव भी अच्छे नहीं लगते ! फिल्म जरुरत से ज्यादा डार्क है , फिल्म की नींव भले ही मुंबई है किन्तु फिल्म के परिदृश्य मुम्बई के कम
और किसी अमरीकन गैंग्स्टर फिल्म की ज्यादा याद दिलाते है !
या फिर हो सकता है किसी फिल्म विशेष से प्रभावित हो ,फ़िल्मी जानकार यह बात देखते वक्त समझ भी जायेंगे ,
संगीत फिल्म के मुताबिक़ ही है ,कोई ऐसा गीत नहीं जिसे याद रखा जा सके ,हल्के पल न के बराबर !
वैसे फिल्म की बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट काफी डांवाडोल नजर आती है ,
जिससे फिल्म वितरको को घाटे का सौदा ही साबित हो सकती है ! अनुराग बेशक बोलीवूड के अलहदा निर्देशकों में से एक है ,
जुनूनी है , किन्तु कभी कभी यही जूनून घातक भी हो सकता है !
जिसका ताजा उदाहरण राम गोपाल वर्मा है जो एक समय बोलीवूड में सबसे अलग और उम्दा फिल्मकारों में गिने जाते थे ,
जीन्होने अपनी सनक में एक रौ में फिल्मे बनाई और काफी तारीफे बटोरी ,
किन्तु जल्द ही अति हो गई और अब उनकी फिल्मो से वितरक भी दूर भागते नजर आते है !
फ़िल्मी गलियारों में इस फिल्म को लेकर काफी नकारत्मकता देखि गई जिससे लगता है के कई लोग इस
फिल्म के नकारात्मक रिजल्ट से खुश है , हां ये उनके लिए ख़ुशी की बात हो सकती है ,
क्योकि उन्होंने कभी भी कुछ हटकर देने का प्रयत्न नहीं किया और जिन्होंने किया उसकी असफलता
स्वाभाविक रूप से उन्हें सुख देती हो ! राम गोपाल वर्मा भी ट्विटर पर फिल्म का मजाक बनाने से बाज नहीं आये जो स्वयम बोलीवूड में
अपनी फिल्मो के जरिये मजाक बन चुके है ! हद तो कमाल खान ने की , स्वयम तो उलजलूल सी ग्रेड फिल्मो में अभिनय शब्द को
शर्मा देनेवाला अभिनय करते है और अनुराग कश्यप को फिल्म बनाने का ढंग सिखाते फिरते है ! इस फिल्म के बहाने बोलीवूड के कुछ मसखरो की पहचान भी होती नजर आई ! उतार चढाव होते रहते है ,
अनुराग ने प्रयास किया ,किन्तु दांव नहीं चला ,
और वे उन फिल्मकारों में गिने जाते है जो अपनी असफलता से सीखते है न की बिफरते है ! ढाई स्टार देवेन पाण्डेय
जिसके चलते खंबाटा से उसके रिश्ते में दरार आ जाती है , और रोजी के राज के कारण ‘खंबाटा ‘
उसकी जान का दुश्मन बन जाता है ,फिर बलराज और खंबाटा की लड़ाई का क्या अंजाम होता है ,यही बाकी कहानी है ! अब कहानी सुनकर तो अंदाजा लग ही गया होगा के यह कहानी बोलीवूड में न जाने कितनी बार सुनी सुनाई ,
देखि दिखाई है ! फिल्म में करन जोहर खंबाटा के रोल में खलनायक कम कॉमेडियन ज्यादा लगते है ,
फिल्म के बाकी कलाकारो ने बढ़िया अभिनय किया है ,केके मेनन को करने के लिए कुछ ख़ास नहीं था इसलिए वे वही करते नजर
आये जो अब तक करते आये है ,अब उनमे दोहराव आने लगे है ,हर फिल्म में एक से भाव भी अच्छे नहीं लगते ! फिल्म जरुरत से ज्यादा डार्क है , फिल्म की नींव भले ही मुंबई है किन्तु फिल्म के परिदृश्य मुम्बई के कम
और किसी अमरीकन गैंग्स्टर फिल्म की ज्यादा याद दिलाते है !
या फिर हो सकता है किसी फिल्म विशेष से प्रभावित हो ,फ़िल्मी जानकार यह बात देखते वक्त समझ भी जायेंगे ,
संगीत फिल्म के मुताबिक़ ही है ,कोई ऐसा गीत नहीं जिसे याद रखा जा सके ,हल्के पल न के बराबर !
वैसे फिल्म की बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट काफी डांवाडोल नजर आती है ,
जिससे फिल्म वितरको को घाटे का सौदा ही साबित हो सकती है ! अनुराग बेशक बोलीवूड के अलहदा निर्देशकों में से एक है ,
जुनूनी है , किन्तु कभी कभी यही जूनून घातक भी हो सकता है !
जिसका ताजा उदाहरण राम गोपाल वर्मा है जो एक समय बोलीवूड में सबसे अलग और उम्दा फिल्मकारों में गिने जाते थे ,
जीन्होने अपनी सनक में एक रौ में फिल्मे बनाई और काफी तारीफे बटोरी ,
किन्तु जल्द ही अति हो गई और अब उनकी फिल्मो से वितरक भी दूर भागते नजर आते है !
फ़िल्मी गलियारों में इस फिल्म को लेकर काफी नकारत्मकता देखि गई जिससे लगता है के कई लोग इस
फिल्म के नकारात्मक रिजल्ट से खुश है , हां ये उनके लिए ख़ुशी की बात हो सकती है ,
क्योकि उन्होंने कभी भी कुछ हटकर देने का प्रयत्न नहीं किया और जिन्होंने किया उसकी असफलता
स्वाभाविक रूप से उन्हें सुख देती हो ! राम गोपाल वर्मा भी ट्विटर पर फिल्म का मजाक बनाने से बाज नहीं आये जो स्वयम बोलीवूड में
अपनी फिल्मो के जरिये मजाक बन चुके है ! हद तो कमाल खान ने की , स्वयम तो उलजलूल सी ग्रेड फिल्मो में अभिनय शब्द को
शर्मा देनेवाला अभिनय करते है और अनुराग कश्यप को फिल्म बनाने का ढंग सिखाते फिरते है ! इस फिल्म के बहाने बोलीवूड के कुछ मसखरो की पहचान भी होती नजर आई ! उतार चढाव होते रहते है ,
अनुराग ने प्रयास किया ,किन्तु दांव नहीं चला ,
और वे उन फिल्मकारों में गिने जाते है जो अपनी असफलता से सीखते है न की बिफरते है ! ढाई स्टार देवेन पाण्डेय
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