हम अब सोनीपत से उपन्यासों की ताजातरीन गर्मागर्म प्रतियाँ लेकर घर पहुँच चुके थे। वहा पहुँचते ही दुबारा अभीराज को आवाज दी। आखिर सामान भी तो उठवाना था ना। अभिराज और आदित्य भाई के होनहार बेटे सिद्धार्थ किताबो के बक्से उठाये। जी मैंने भी उठाये और अपनी साइज के अनुपात में दुगुना वजन ही उठाया, न भाई बेईमानी वाला काम नहीं।
अब सब पैकेट्स घर पर पहुँच चुके थे। सुबह दिल्ली पहुँचने के बाद से काफी भागदौड़ हो चुकी थी। घर आते आते साढ़े आठ बज गए। अब सभी हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो चुके थे। भूख तगड़ी लगी थी। फिर ध्यान आया के यार मै और शुभानन्द जी तो कल से नहाए ही नहीं है। मिथिलेश को कहा तो उसने कह दिया कल सुबह नहा लेना मै भी पहले दिन नही नहाया था,ठंड ही इतनी थी। चूँकि ठंड में हम हाइवे का लंबा सफर करके आये हुए थे इसलिए ठंड के मारे मेरी दुबारा हिमत न हुई के शुभानन्द जी को कहू नहाने के लिए। अब हम सभी एक साथ बैठे हुए थे। भाभी जी लजीज व्यंजन बनाये थे जो इतना स्वादिष्ट था के हमने गले तक ठूंस लिया। फिर आदित्य जी का शुभानन्द जी के प्रति प्यार उमड़ा और उन्होंने अपने हाथो से उनको निवाला खिलाया अब इसको देखकर ट्रेंड बना और सभी ने एकदूसरे को खिलाना शुरू कर दिया। असल मजा तब आया जब मैंने अभिराज को मिर्ची ही खिला दी और बेचारा बंधू प्रेम में खा भी गया। फिर जब लगा के अब खाना हद से ज्यादा खा चुके उसी समय भाभी जी ने गाजर का हलवा ला दिया, अब पहले तो खाने का मन ही न किया। लेकिन फिर भी मैंने खानापूर्ति के लिए थोडा सा लिया और अभिराज ने भी वही दोहराया जबकि उसका भी मन भर चूका था। अब हलवा इतना ज्यादा स्वादिष्ट बना था के मैंने दो तीन बार मांग के खा लिया और अभिराज जो शायद संकोच कर रहा था उसने भी मुझे देखकर हिम्मत करते हुए दुबारा लिया और देखते ही देखते आधा हलवा हम दोनों ही चट कर गए। खाने के बाड़ अब कल की योजना बनानी थी। सभी एकजुट हुए काम शुरू हुवा प्लानिंग बनी। सबको उनके उनके हिस्से का रोल दे दिया गया। और यही अमित जी के कवी होने की बात भी पता चली जब उन्होंने दो बहुत ही बेहतरीन कविताएं सुनाई। अब जब सब कुछ हो गया तब विश्लेष्ण शुरू हो गए साहित्य पर,आदित्य भाई ने बकलोल में प्रयुक्त कुछ अनावश्यक शब्दों पर चर्चा शुरू की और महफ़िल जम गई। मजा आने लगा था, अब चर्चा ने बहस का स्वरूप ले लिया तो भाभी जी ने आदित्य भाई को सो जाने का आदेश किया और उस आदेश का पालन भी हुवा। और इस तरह हम चौथे विश्वयुद्ध को बचा गए जो संभावित था।
सब निपटाकर रात २ बजे सोना हुवा और सुभ जल्दी सभी उठ कर रेडी भी हो गए। आदित्य भाई पुरे जोश में थे और सबको लापरवाहियो पर घुड़क रहे थे। जो भी सुस्त दिखता उसे डांट अवश्य पडती,मै,मिथिलेश और शुभानन्द जी भी उनकी डांट का शिकार हुए। खैर छोले भठूरे का तगड़ा नाश्ता करके हम सभी अब आयोजन स्थल की ओर बढ़ गए। मोहित जी का फोन आया पता चला के वे आयोजन स्थल पर पहुँच चुके है। हम तीनो सबसे पहले आगे निकले। और मोहित जी से जाकर मिले। मोहित जी से यह मेरी दूसरी मुलाक़ात थी शुभानन्द जी की पहली और मिथिलेश शायद दो तीन बार मिल चुका था। शुभानन्द जी अब तक हमारी संस्था में केवल मुझे ही सबसे तगड़ा मानते आये थे किन्तु मोहित जी को देखकर उनका वहम टूट गया।
अब साढ़े दस होने को थे मोहित भाई से कोई औपचारिकता करनी ही नहीं थी। वे तो अपने ही है। अब मैंने और मिथ ने बैनर वगैरह लाने का जिम्मा लिया और निकल लिए। शुभानन्द जी और मोहित जी ने स्थल की कमान सम्भाली।
जब हम प्रिंटिंग वाले के पास पहुंचे तो वह बंद दिखा, अब परेशानी के बल मिथिलेश के और मेरे माथे पर दिखने लगे के तभी प्रिंटिंग वाला आया और उसने दकान खोलकर बैनर निकाला और बोला तैयार करने में कुछ देर लगेगी। अब कोई और रास्ता था ही नहीं, ग्यारह बजने को थे फिर बीस पच्चीस मिनट में जब बैनर बना तो उसकी हाईट और साइज देखकर हैरान हो गया इतना बड़ा लेकर कैसे जायेंगे? मिथिलेश ने और मैंने किसी तरह से बैनर को ई रिक्शा पर टांगा और ऐसे ही आयोजन स्थल की ओर बढ़ गए। जब आयोजन स्थल पहुंचे तो वहा एक लडकी को देखकर चौंक गए। अबे मिथिलेश अपने पाठको में लडकियाँ भी है क्या? या ये कही और आई है? मिथिलेश की जौहरी नजरो ने लडकी को आयोजन स्थल के बैनर की तस्वीर खींचते देख लिया और बोल उठा हां आयोजन के लिए ही आई है। फिर मै बिना किसी भाव के उतरा और सीधे बैनर उतार कर लाद लिया और हम अंदर पहुँच गए। वहा पहुंचकर हमने बैनर को बैक स्टेज पर फिट करने का पूरा प्रयास किया किन्तु असफल रहे। तभी सबसे पहले कुलविंदर सोना सिंग भाई जी पहुंचे। हम सभी उनसे गर्मजोशी से मिले तो उन्होंने बैनर फिट करने के लिए बैनर को तिरछा करने को कहा। उनके सुझाव पर अमल करते ही बैनर फिट हो गया। उसके बाद एक स्टैंडी पर पोस्टर लगाने में जो माथापच्ची हुई वो देखने लायक थी। तब तक शम्भु भाई अपने साजोसामान के साथ पहुँच चुके थे। उन्हें कार्यक्रम के सारे क्षणों को कैमरे में कैद करने का जिम्मा दिया था। मै उनसे मिला उनके साथ ही साथ अलाहाबाद अंशु धुसिया भाई भी आये थे। अंशु भाई बड़े जोशीले और खतरनाक आवाज के स्वामी थे। इनसे भी पहली बार मिलना हुवा।
मैंने प्रथम बार कैनवस शूज पहने हुए थे जो समतल होने के कारण मुझे थोडा परेशान से कर रहे थे और मैंने पैरों को घिसटते हुए मूनवाल्क करने की नाकाम कोशिश की। शम्भु भाई देख रहे थे तो मैंने उनसे पूछा “ मूनवाक” करके दिखाऊ?
उन्हें वाकई यह सच लगा और उन्होंने हैरानी से पूछा भी “ आपको आता है?” मै हंसते हुए कहा के बकलोली कर रहा हु भाई।
अब सब कुछ व्यस्थित हो गया था,मंच कुर्सिया माइक,साउंड सब चेक हो गया। लोग आने लगे। फिर अभिराज ने उस समय तक कार्यक्रम में आई एकमात्र कन्या से परिचय करवाया उनका नाम तन्वी था। मै वैसे तो बड़ा बकबकिया रहू किन्तु महिलाओं को देखते ही शर्म का पुतला बन जाता हु और मै चुपके से वहा से असहज होते हुए खिसक लिया। अब सभी पाठक, श्रोता पहुँच गए थे और मंच की जिम्मेदारी मोहित जी और मिथिलेश ने संभाल ली। सभी मेहमानों का स्वागत आरंभ हुवा, मै भी जिससे मिलता उन्हें गले लगा लेता।
क्रमश:
अब सब पैकेट्स घर पर पहुँच चुके थे। सुबह दिल्ली पहुँचने के बाद से काफी भागदौड़ हो चुकी थी। घर आते आते साढ़े आठ बज गए। अब सभी हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो चुके थे। भूख तगड़ी लगी थी। फिर ध्यान आया के यार मै और शुभानन्द जी तो कल से नहाए ही नहीं है। मिथिलेश को कहा तो उसने कह दिया कल सुबह नहा लेना मै भी पहले दिन नही नहाया था,ठंड ही इतनी थी। चूँकि ठंड में हम हाइवे का लंबा सफर करके आये हुए थे इसलिए ठंड के मारे मेरी दुबारा हिमत न हुई के शुभानन्द जी को कहू नहाने के लिए। अब हम सभी एक साथ बैठे हुए थे। भाभी जी लजीज व्यंजन बनाये थे जो इतना स्वादिष्ट था के हमने गले तक ठूंस लिया। फिर आदित्य जी का शुभानन्द जी के प्रति प्यार उमड़ा और उन्होंने अपने हाथो से उनको निवाला खिलाया अब इसको देखकर ट्रेंड बना और सभी ने एकदूसरे को खिलाना शुरू कर दिया। असल मजा तब आया जब मैंने अभिराज को मिर्ची ही खिला दी और बेचारा बंधू प्रेम में खा भी गया। फिर जब लगा के अब खाना हद से ज्यादा खा चुके उसी समय भाभी जी ने गाजर का हलवा ला दिया, अब पहले तो खाने का मन ही न किया। लेकिन फिर भी मैंने खानापूर्ति के लिए थोडा सा लिया और अभिराज ने भी वही दोहराया जबकि उसका भी मन भर चूका था। अब हलवा इतना ज्यादा स्वादिष्ट बना था के मैंने दो तीन बार मांग के खा लिया और अभिराज जो शायद संकोच कर रहा था उसने भी मुझे देखकर हिम्मत करते हुए दुबारा लिया और देखते ही देखते आधा हलवा हम दोनों ही चट कर गए। खाने के बाड़ अब कल की योजना बनानी थी। सभी एकजुट हुए काम शुरू हुवा प्लानिंग बनी। सबको उनके उनके हिस्से का रोल दे दिया गया। और यही अमित जी के कवी होने की बात भी पता चली जब उन्होंने दो बहुत ही बेहतरीन कविताएं सुनाई। अब जब सब कुछ हो गया तब विश्लेष्ण शुरू हो गए साहित्य पर,आदित्य भाई ने बकलोल में प्रयुक्त कुछ अनावश्यक शब्दों पर चर्चा शुरू की और महफ़िल जम गई। मजा आने लगा था, अब चर्चा ने बहस का स्वरूप ले लिया तो भाभी जी ने आदित्य भाई को सो जाने का आदेश किया और उस आदेश का पालन भी हुवा। और इस तरह हम चौथे विश्वयुद्ध को बचा गए जो संभावित था।
सब निपटाकर रात २ बजे सोना हुवा और सुभ जल्दी सभी उठ कर रेडी भी हो गए। आदित्य भाई पुरे जोश में थे और सबको लापरवाहियो पर घुड़क रहे थे। जो भी सुस्त दिखता उसे डांट अवश्य पडती,मै,मिथिलेश और शुभानन्द जी भी उनकी डांट का शिकार हुए। खैर छोले भठूरे का तगड़ा नाश्ता करके हम सभी अब आयोजन स्थल की ओर बढ़ गए। मोहित जी का फोन आया पता चला के वे आयोजन स्थल पर पहुँच चुके है। हम तीनो सबसे पहले आगे निकले। और मोहित जी से जाकर मिले। मोहित जी से यह मेरी दूसरी मुलाक़ात थी शुभानन्द जी की पहली और मिथिलेश शायद दो तीन बार मिल चुका था। शुभानन्द जी अब तक हमारी संस्था में केवल मुझे ही सबसे तगड़ा मानते आये थे किन्तु मोहित जी को देखकर उनका वहम टूट गया।
अब साढ़े दस होने को थे मोहित भाई से कोई औपचारिकता करनी ही नहीं थी। वे तो अपने ही है। अब मैंने और मिथ ने बैनर वगैरह लाने का जिम्मा लिया और निकल लिए। शुभानन्द जी और मोहित जी ने स्थल की कमान सम्भाली।
जब हम प्रिंटिंग वाले के पास पहुंचे तो वह बंद दिखा, अब परेशानी के बल मिथिलेश के और मेरे माथे पर दिखने लगे के तभी प्रिंटिंग वाला आया और उसने दकान खोलकर बैनर निकाला और बोला तैयार करने में कुछ देर लगेगी। अब कोई और रास्ता था ही नहीं, ग्यारह बजने को थे फिर बीस पच्चीस मिनट में जब बैनर बना तो उसकी हाईट और साइज देखकर हैरान हो गया इतना बड़ा लेकर कैसे जायेंगे? मिथिलेश ने और मैंने किसी तरह से बैनर को ई रिक्शा पर टांगा और ऐसे ही आयोजन स्थल की ओर बढ़ गए। जब आयोजन स्थल पहुंचे तो वहा एक लडकी को देखकर चौंक गए। अबे मिथिलेश अपने पाठको में लडकियाँ भी है क्या? या ये कही और आई है? मिथिलेश की जौहरी नजरो ने लडकी को आयोजन स्थल के बैनर की तस्वीर खींचते देख लिया और बोल उठा हां आयोजन के लिए ही आई है। फिर मै बिना किसी भाव के उतरा और सीधे बैनर उतार कर लाद लिया और हम अंदर पहुँच गए। वहा पहुंचकर हमने बैनर को बैक स्टेज पर फिट करने का पूरा प्रयास किया किन्तु असफल रहे। तभी सबसे पहले कुलविंदर सोना सिंग भाई जी पहुंचे। हम सभी उनसे गर्मजोशी से मिले तो उन्होंने बैनर फिट करने के लिए बैनर को तिरछा करने को कहा। उनके सुझाव पर अमल करते ही बैनर फिट हो गया। उसके बाद एक स्टैंडी पर पोस्टर लगाने में जो माथापच्ची हुई वो देखने लायक थी। तब तक शम्भु भाई अपने साजोसामान के साथ पहुँच चुके थे। उन्हें कार्यक्रम के सारे क्षणों को कैमरे में कैद करने का जिम्मा दिया था। मै उनसे मिला उनके साथ ही साथ अलाहाबाद अंशु धुसिया भाई भी आये थे। अंशु भाई बड़े जोशीले और खतरनाक आवाज के स्वामी थे। इनसे भी पहली बार मिलना हुवा।
मैंने प्रथम बार कैनवस शूज पहने हुए थे जो समतल होने के कारण मुझे थोडा परेशान से कर रहे थे और मैंने पैरों को घिसटते हुए मूनवाल्क करने की नाकाम कोशिश की। शम्भु भाई देख रहे थे तो मैंने उनसे पूछा “ मूनवाक” करके दिखाऊ?
उन्हें वाकई यह सच लगा और उन्होंने हैरानी से पूछा भी “ आपको आता है?” मै हंसते हुए कहा के बकलोली कर रहा हु भाई।
अब सब कुछ व्यस्थित हो गया था,मंच कुर्सिया माइक,साउंड सब चेक हो गया। लोग आने लगे। फिर अभिराज ने उस समय तक कार्यक्रम में आई एकमात्र कन्या से परिचय करवाया उनका नाम तन्वी था। मै वैसे तो बड़ा बकबकिया रहू किन्तु महिलाओं को देखते ही शर्म का पुतला बन जाता हु और मै चुपके से वहा से असहज होते हुए खिसक लिया। अब सभी पाठक, श्रोता पहुँच गए थे और मंच की जिम्मेदारी मोहित जी और मिथिलेश ने संभाल ली। सभी मेहमानों का स्वागत आरंभ हुवा, मै भी जिससे मिलता उन्हें गले लगा लेता।
क्रमश:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें