शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

Pin It

बातें,किताबें,मुलाकातें भाग 2


दिल्ली में पहला दिनपिछली पोस्ट में जिक्र था के किस तरह से मुंबई से दिल्ली 

आने की योजना पर ग्रहण लगा किन्तु फिर भी हम पहुँच ही गए

बातें,किताबें,मुलाकातें भाग l 
हम इवेंट हॉल का जायजा लेने पहुंचे 
 अब चूँकि आदित्य जी से मिल चुके थे, उनकी गर्मजोशी और अपनापन भी देख चुके थे। तो दिल से अब संकोच भी समाप्त हो गया। मिथिलेश जी ने अमित श्रीवास्तव और अभिराज भाई से परिचय कराया। मिथिलेश ने कहा भी के जैकेट पहन लीजिये ठंड बहुत है। किन्तु मैंने मना कर दिया, उपर से उन्होंने मुझे सैंडल पहने देख लिया। 
सभी ने एक साथ तस्वीरे ली 
“देवेन भाई यह तो न चल पाएगी ठंड में। घर चलो पता चलेगा जब जुते पहनने होंगे।” मिथिलेश ने कहा तो मै मुस्कुरा दिया। तब पता चला के अभिराज इस पूरी मुलाक़ात की विडीयोग्राफी कर रहा था, किन्तु आदित्य भाई इतनी तेज रफ्तार से मिलने के लिए भागे थे के कैमरे ने उन्हें कैप्चर ही नहीं किया था। खैर! हम घर पहुंचे तो आदित्य जी ने हमे एक कमरे में बिठाया, मै और शुभानन्द जी अभिराज और अमित जी के साथ सोफे पर बैठे थे की भाभी जी आ गई। इन्होने भी सबका स्वागत बड़े जोशो खरोश से किया और उन्होंने भी मेरी पोलो टी शर्ट देखकर डांट लगा दी के “ठंड लग जायेगी, जैकेट पहन लो।” और वाकई में आदित्य जी के घर का तापमान बाहर के तापमान के मुकाबले कही ज्यादा ठंडा था। लेकिन मैंने फिर भी मना कर दिया। फिर चाय नाश्ता हुवा, भाभी जी ने लड्डू लाये थे और वे लड्डू मुझे इतने स्वादिष्ट लगे के सारा संकोच भुला कर मैंने तीन चार लड्डू तो ठूंस ही लिए। अब इसके पश्चात हमें हमारा रुकने का कमरा दिखाया गया। वह कमरा हम जैसे नवलेखको एवं पाठको के लिए कमरा न होकर एक स्वर्ग जैसा था। वहा दो अलमारिया भर कर उपन्यासों का अद्भुत संग्रह भरा पड़ा था। जिसे देखकर आँखे फट फटने को उतारू हो गई, किन्तु उपन्यासों के संग्रह से ज्यादा मेरा ध्यान खिंचा कॉमिक्स के संग्रह ने। मैंने उतावलेपन में सारी कॉमिक्स उलट पुलट कर देख डाली, एक से एक रेयर और दुर्लभ कॉमिक्स देख कर मन ललचा गया। अमित जी ने कहा भी के तुझे जो पसंद आये वो ले जा, सब अपने भाइयो के लिए ही है। अब ये तो वो बात हुई के आप महीनो के भूखो के सामने छप्पन भोग परोस दो। और मैंने यह बात उनसे कही भी। किन्तु मैंने कोई कॉमिक्स नहीं ली क्योकि एक संग्रहकर्ता किस तरह अपने संग्रह में एक एक पुस्तक जोड़ता है,कितनी शिद्दत से एक एक पुस्तक के लिए भागदौड़ करता है वो सब मै जानता था। और इतनी आसानी से उनके संग्रह से मै बिना मेहनत कुछ ले जाऊ यह मुझे सही नहीं लगा। फिर हम सबने अपने अपने बैग्स रखे और उसके बाद सबसे अच्छे से मिले। भाभी जी ने गर्मागर्म स्वादिष्ट चाय और नाश्ता कराया तो रही सही झिझक भी पूर्णतया खत्म हो गई। उनके व्यवहार और अपनेपन को देखकर मै भूल ही गया के मै होटल में रुकनेवाला था। अब चूँकि सब निपट चूका था, और कल इवेंट था और तैय्यारी करने के लिए केवल हम चार पांच लोग ही थे इसलिए सब काम निपटाने थे आज के आज। अब मै और शुभानन्द जी इवेंट हॉल देखना चाहते थे,लेकिन पहले हमे माइक और साउंड का बंदोबस्त करने जाना था तो हम निकल लिए। और मै फिर टी शर्ट और सैंडल पर रवाना हो गया। सभी जाकर माइक और साउंड वाले से बात करके और स्टेज का बंदोबस्त करके घर लौट आये। अब ठंड लगने लगी थी। मुझे भी मेरे हाथो एवं कान पर ठंड से गलन का अहसास होने लगा था। तो घर से निकलने से पहले मैंने जैकेट और मोज़े पहन लिए, जूते न पहने क्योकि मुझे वो काफी असुविधाजनक महसूस हो रहा था। उसी तरह हम सभी इवेंट वाले हॉल में पहुँचे और हॉल का जायजा लिया, हालांकि हॉल की तस्वीरे पहले ही आदित्य जी और मिथिलेश व्हाट्स अप पर भेज चुके थे। किन्तु असल में हॉल काफी बड़ा और अच्छा लगा। हर लिहाज से यह उत्तम जगह लगी। फिर हमने जगह देखकर हर चीज के लिए सही जगह तय की, माइक कहा होगा,स्टेज कैसे लगेगा, पाठक कहा बैठेंगे,बैनर्स कहा लगेंगे और स्टैंडी कहा लगायेंगे। पुस्तके कहा होंगी। पुस्तके सम्भालने की जिमेदारी अभिराज को दे दी गई। उसने सहर्ष यह जिम्मेदारी स्वीकार कर ली। फिर हम घर पहुंचे, बैनर्स,पोस्टर्स अब तक प्रिंट नही हुए थे और शाम के ४ बजने को थे। मिथिलेश लगातार निशांत से सम्पर्क में था। निशांत ही सारे बैनर्स,पोस्टर्स की डिजायनिंग कर रहा था। इतने सारे आर्टिस्ट,लेखको को एक बैनर में समेटने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी। निशांत भी बड़े ही शांत तरीके से सब संभाल रहा था। वह मौजूद न होते हुए भी अपने हिस्से का काम बखूबी संभाल रहा था। हडबडी में पता चलता किसी लेखक की तस्वीर छूट गई है तो कभी पता चलता किसी लेखक की तस्वीर ही नहीं है किसी के पास। इसके बावजूद शाम तक डिजाइन फाइनल हो गया। बाकी इन कामो के लिए मेहनत हम कर रहे थे और इस मेहनत के लिए पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध करवाने का कार्य आदित्य भाई और डॉली भाभी संभाल रहे थे। भाभी जी हर एकाध घंटे पर चाय या कुछ न कुछ खाने पिने की वस्तु लेकर पहुँच जाती और इस तरह घुलमिल जाती के किसी को पता ही नही चलता के हमारे बिच में कोई ऐसा भी है जिससे हम पहली बार मिल रहे है ।फिर डिजायनिंग फाइनल हुई और हम पांचो प्रिंटिंग के लिए निकल पड़े, अब हवा में ठंडक बढ़ चुकी थी तो मैंने भी सैंडल हटा कर जूते पहनने उचित समझा। और हम कुछ ही देर की पैदल यात्रा के पश्चात बैनर वाले के पास पहुंचे। वहा उसे कुछ हिदायते दी गयी तो पता चला के प्रिंट सुबह से पहले ना मिलनेवाले। और सुबह ग्यारह बजे से ही लोगो का आना जाना शुरू हो जाने वाला था। अब थोड़ी फ़िक्र हुई। उसी समय शुभानन्द जी को पता चला के रेप्लिका प्रेस से कल के लिए जो किताबे रिप्रिंट होकर आज आनेवाली थी वो आज नही आ पाएंगी। नए सेट की पुस्तके तो पहुँच ही चुकी थी किन्तु रिप्रिंट की आवश्यकता भी थी। फिर शुभानन्द जी और मैंने तय किया के हम अभी के अभी सोनीपत स्थित रेप्लिका प्रेस जाकर रिप्रिन्ट्स कलेक्ट करेंगे। तो हमने लगे हाथो कैब बुक कर ली,दस मिनट में कैब पहुंची और हम सवार हुए तो अमित भाई आये और हमे जाते देखकर कहा।“मै भी साथ चलूँगा।”मिथिलेश जी ने पूछा “कहा ?”उनका जवाब आया” मुझे नही पता लेकिन चलूँगा।” उनके इस भोलेपन पर हमे बड़ी हंसी आई और उन्हें समझा दिया गया के कैब में हम ३ आदमी और ड्राइवर है, आते समय पुस्तको के बक्से भी होंगे तो आप यही पर रहकर तैय्यारी कीजिये हम आते है।”अमित जी थोड़े से निराश दिखे लेकिन अपने आदमी थे तो वापस आकर मनाना कोई मुश्किल ना लगा। और हमारी सवारी सोनीपत की ओर कुंच कर गई जो हरियाणा में थी।वहा का अनुभव भी बड़ा दिलचस्प रहा, बाड़ में हम खुश हुए के अच्छा हवा उन्होंने पुस्तके नहीं भेजी।

क्रमश :  x
x

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सम्पर्क करे ( Contact us )

नाम

ईमेल *

संदेश *