शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

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बातें,किताबें, मुलाकातें भाग 1

सूरज पॉकेट बुक्स के संस्थापक शुभानन्द जी और मै मुंबई से राजधानी में 
दिल्ली में २७ जनवरी ३० जनवरी तक बिताया समय जीवन का एक अविस्मरणीय समय रहा, जिसने बहुत सी प्यारी यादो का गुलदस्ता सा दियाl और बहुत से मित्र भी, जिनसे पहली बार मिलकर भी ऐसा प्रतीत ही नही हुवा के पहली बार मिल रहे हैl इन यादो को शब्दों में उतारने का प्रयास कर रहा हु, किन्तु इतनी सारी चीजों को एक ही बार में लिखना मुश्किल है, इसलिए इसे कुछ कड़ीयो में पोस्ट कर रहा हुl

दिल्ली के लिए प्रस्थान. 1



सूरज पॉकेट बुक्स की ओर से आयोजित कार्यक्रम “बाते किताबे मुलाकातें” के लिए अचानक से दिल्ली जाने की योजना बनीl मै अभी हाल ही में दो महीने पहले ही दिल्ली से लौटा था, किन्तु अब दुबारा आनन फानन में मिथिलेश ने योजना बना ली और फोन भी कर दिया के देवेन भाई और शुभानन्द जी आपको आना हैl
अब जल्दबाजी में फ्लाईट की टिकट भी बुक हो गईl चूँकि यह मेरी पहली फ्लाईट यात्रा होती इसलिए भी रोमांचित थाl दिल्ली में रहेंगे कहा? यह प्रश्न था, तो इसके लिए मैंने दिल्ली में मौजूद अपने सूत्रों से होटल में रहने की योजना बनाई जिसे शुभानन्द एवं मिथिलेश ने सीधे नकार दियाl वे आदित्य वत्स जी के घर रुकने की योजना बना चुके थेl आदित्य जी से मेरा सामना एक उपन्यास सम्बंधित ग्रुप में हुवा थाl यहाँ सामना इसलिए लिखना पड़ा क्योकि जिस तरह से हमारी तनातनी और बहस हुई थी, उसे मुलाक़ात तो हरगिज नही कहा जा सकता थाl किसी बात पर हमारी बहस हुई थीl और मैंने अपने मन में आदित्य जी की एक नकारात्मक छवि गढ़ ली और इनसे पर्याप्त दुरी बनाने लगाl अब जब इन्ही के यहाँ रुकने की योजना बनी थी तो मुझे झिझक हुई और मैंने कहा के मै होटल में रुकुंगा आप लोग वहा रुक जाइएगाl
शुभानन्द जी और मै नई दिल्ली स्टेशन पर 
फिर पता नहीं क्या हुवा,शायद मेरी झिझक आदित्य जी ने भांप ली और इनबॉक्स में मैसेज करके नम्बर लिया और फोन कियाl फोन पर हुई बातो से हमारी आपसी गलतफहमियां दूर हो गई किन्तु फिर भी मन की शंका न जा रही थी और मेरा वहा रुकने का निर्णय अब भी डावांडोल ही थाl खैर! २६ जनवरी का वह दिन भी आ गया जब हमे दिल्ली के लिए निकलना थाl शाम को ८ बजे फ्लाईट थी, शुभानन्द जी और मैंने रास्ते में मिलने की योजना बना लीl जितना याद हो सका उतना जरुरी सामान भी पैक कर लिया, तब तक ग्यारह बजे शुभानन्द जी ने मैसेज किया के कोहरे के कारण फ्लाईट रद्द हो गयीl अब प्रश्न सामने था के क्या करे? २८ को इवेंट था उससे पहले पहुंचना बेहद जरुरी थाl शुभानन्द जी ने तुरंत उसी दिन की राजधानी का टिकट निकाल लियाl खैर! जहा दो घंटे में दिल्ली पहुंचना था वहा १५ घंटे का सफ़र हो गया, दूसरी फ्लाईट बुक करने का जोखिम भी नही उठा सकते थे के कही वह भी कैंसिल न हो जायेl यह भी अच्छा ही हुवा, क्योकि इससे पहले मै शुभानन्द जी से एक ही बार मिला थाl लेकिन उस समय हम एकदूसरे को अच्छे से नही जान पाए थे तो एक साथ १५ घंटे के सफ़र में एकदूसरे से वाकिफ होने का बढिया अवसर भी मिल गया थाl
मै एक घंटे पहले ही स्टेशन पहुँच गयाl शुभानन्द जी तिलक नगर से बैठ चुके थे और मुझे बोरीवली सुविधाजनक था इसलिए मै बोरीवली स्टेशन पहुँच गयाl साढ़े पांच बजे ट्रेन आई और शुभानन्द जी दरवाजे पर ही खड़े मिलेl बड़ी ही गर्मजोशी से हम दोनों मिले और अपना अपना आसन ग्रहण कियाl
फिर जो बातों का सिलसिला शुरू हुवा तो खत्म होने का नाम ही ना लियाl नाश्ता हो गया, खाना हो गया लेकिन हमारी बाते खत्म ही न हो रही थी यहाँ तक की पूरी बोगी सो गईl आखिरकार हमारे सहयात्री बुजुर्ग ने हमसे हाथ जोड़ लिए के बेटा अब बस भी करोl तब कही जाकर हम रुके और सो गएl
मिथिलेश बार बार मैसेज कर कर के अपडेट्स दे रहा थाl बता रहा था के काफी ठंड पड़ रही है, जैकेट्स वगैरह पहन लो,तैय्यारी कर लोl फिर अगले दिन ट्रेन एक घंटे लेट हुई और हम पौने ग्यारह बजे नई दिल्ली पहुंचेl शुभानन्द जी ने जैकेट पहन लिया था किन्तु मै अब भी केवल पोलो टी शर्ट में ही थाl मुझे ठंडी हवाए महसूस हुई लेकिन इतनी भी नही के जैकेट पहन लूl हमने कैब बुक की, मिथिलेश ने लाइव लोकेशन भेजी जिसके सहारे हमने गलत रास्ता पकड़ लियाl
गंतव्य की ओर प्रस्थान 
मिथिलेश ने हमारी भेजी हुई तस्वीरे देखि और मुझे टी शर्ट में देखकर कहा के पाण्डेयजी आपको भले ही वहा ठंड न लग रही हो,लेकिन आदित्य जी के घर आकर आपको अहसास होगा ठंड काl मैंने बात हंसी में उड़ा थीl अब हम सही जगह पहुँच तो गए थे किन्तु घर का पता ना मिल पा रहा थाl मिथिलेश को फोन किया तो वह भी पूरी टीम लेकर हमारी खोज में चल पड़ाl हमने कैब वाले को भी हैरान होते देख पैसे देकर चलता कर दिया और बैग लेकर बताई हुई गली की ओर बढ़ गए तब वहा कुछ ही दुरी पर मिथिलेश दिखा, आदित्य जी उनके साथ थेl मिथिलेश से दो बार मिल चुका हु तो उसे न पहचानने का प्रश्न ही नही उठता थाl आदित्य जी की भी शक्लो सुरत ऐसी थी के उन्हें भी एक ही बार में पहचान लियाl अब आदित्य जी की नजरे हम पर पड़ी और वे तीव्र गति से दौड़ते हुए आगे बढ़े, मै घबरा कर पीछे हट गया के कही टकरा कर गिरा न देl वे दौड़ते हुए ही आये और शुभानन्द जी से गले मिले और हमें भी लपेटे में ले लियाl बड़ी ही गर्मजोशी एवं अपनेपन से उन्होंने हमारा स्वागत कियाl तब तक मिथिलेश ने हमारा परिचय अभिराज ठाकुर एवं अमित श्रीवास्तव जी से भी करा दिया थाl मै सभी से गले मिला और फिर सबने मिलकर हमारा सामान उठा लिया और बाते करते हुए हम आदित्य जी के घर की ओर बढ़ गए......

क्रमश: 

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