निर्देशक : निशिकांत
कामत
निर्माता : जेनेलिया
देशमुख ,झी टाकिज ,जितेन्द्र ठाकरे
कहानी : साजिद
नडियादवाला
संगीत : अजय अतुल
रितेश देशमुख ने
मराठी फिल्म निर्माण में अपने कदम रखे थे उनकी फिल्म ( मराठी )
‘बालक पालक ‘ से !
जो के काफी संवेदनशील विषय पर केन्द्रित थी ,
और उसकी सफलता ने मराठी फिल्मो के
इतिहास को ही बदल कर रख दिया !
पैतीस करोड़ से अधिक की कमाई करनेवाली पहली मराठी
फिल्म का तमगा इस फिल्म ने पा लिया ,
अपने अनोखे विषय और
मोहक प्रस्तुती के कारण ,खैर इस फिल्म की चर्चा अगली पोस्ट में करूँगा .
फिलहाल आते है
‘रितेश देशमुख ‘ की होम प्रोड्क्शन की दूसरी फिल्म ‘लय भारी ‘ पर !
जो के टोटल
मसाला फिल्म है ,जिसमे कुछ है तो सिर्फ एंटरटेनमेंट ,
हिंदी फिल्म के
लिहाज से देखे तो इस फिल्म में आपको कुछ अलग नहीं दिखेगा ,
किन्तु मराठी फिल्म के
लिहाज से इसमें काफी कुछ पहली बार देखने को मिला है !
फिल्म की कहानी : प्रताप
निम्बालकर ( उदय टिकेकर ) और उनकी पत्नी सुमित्रा ( तन्वी आजमी )
निसंतान है !
प्रताप गाँव के रसूखदार व्यक्ति है ,जो हमेशा दिनों के हित के लिए लड़ते है ,
एक
बार सुमित्रा देवी को एक मंदिर में सिर्फ इसलिए पूजा करने के लिए मना कर
दिया जाता
है क्योकि वह बाँझ है .
इससे वह आहत होकर भगवान
‘विट्ठल ‘ की शरण में ‘पंढरपुर ‘ जाती है !
और मन्नत मांगती है के यदि भगवान
विट्ठल उसे संतान देदे तो वो अपना प्रथम पुत्र भगवान
विट्ठल को समर्पित कर देगी .
कुछ समय पश्चात सुमित्रा गर्भवती होती है ,और वह
अपने इस मन्नत के बारे में पति को बताती है !
जिससे ‘प्रताप ‘ नाराज हो जाता है और
लन्दन चला जाता है .
सुमित्रा के पुत्र
का जन्म होता है ,और वह प्रताप को बताती है के उसका पुत्र उसके ही पास है !
प्रताप
ख़ुशी ख़ुशी लौट आता है .
वे पुत्र का नाम ‘प्रिंस
‘ रखते है ,जो विदेश ससे पढाई करके वापस आता है !
‘प्रिंस ‘ ( रितेश देशमुख ) के
वापस आने से प्रताप का भाई और उसका पुत्र खासे नाराज है ,
क्योकि प्रताप उनके गलत
कामो में हमेशा रोड़ा बनता आ रहा है ,’प्रिंस ‘ का चचेरा भाई ‘संग्राम ‘
( शरद
केलकर ) उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहता ! जमीं विवाद के चलते एक साजिश के तहत ‘प्रताप
‘
की रहस्यमयी मृत्यु हो जाती है जिसमे संग्राम और उसके पिता का हाथ है ,
किन्तु सुमित्रा और
प्रिंस इस बात से अनजान है, और प्रताप के कार्यो को आगे बढ़ाना चाहते है.
लेकिन इसी बिच
प्रिंस के सामने उसके चाचा और संग्राम की हकीकत खुल जाती है .
जिसके कारण ‘संग्राम
‘ प्रिंस की हत्या कर देता है .
प्रिंस की हत्या के
पश्चात जाली कागजात बना कर संग्राम सुमित्रा की साड़ी सम्पत्ति हडप लेता है !
और
उसे बेघर कर देता है ,
पहले पति और फिर
जवान बेटे की मृत्यु से सुमित्रा दुखी हो जाती है !
और वह फिर भगवान विट्ठल के
दरबार यानी पंढरपुर पहुँच जाती है ,जहा उसकी मुलाक़ात होती है
‘माउली ‘ ( रितेश
देशमुख दोहरी भूमिका में ) से !
‘माउली ‘ बहुत ही उग्र स्वभाव का है ,और निडर भी
! वह हर किसी से भीड़ जाता है ,
और एक ईंट भट्टी चलाता है .तब सुमित्रा उसके सामने वर्षो
पुराना राज उजागर करती है ‘माउली ‘के सामने ,
के वह सुमित्रा और प्रताप का बेटा है
! दरअसल सुमित्रा को जुड़वाँ पुत्र हुए थे ,
और अपने भगवान ‘विट्ठल ‘ को दिए गए वचन
के कारण उसने जुड़वाँ पुत्रो की बात छिपा कर ए
क पुत्र ‘विट्ठल ‘ के मंदिर में ही
छोड़ दिया था .
तब ‘माउली ‘अनाथ ही
बड़ा हुवा है ! मंदिर के पुजारी ने उसे पाला ,और जब उसने माँ के बारे में पु
छा तो
उसे बता दिया के तु इस मंदिर में ‘विट्ठल ‘ के चरणों में मिला था .
तब ‘माउली ‘ विट्ठल
को ही अपनी माता और पिता मान लेता है ! वह गलत काम अवश्य करता है
किन्तु ‘विट्ठल ‘
से डरता है .
सुमित्रा से अपने
रिश्ते के बारे में पता चलने पर वह सुमित्रा से नफरत करने लगता है !
किन्तु वह
उसकी मदद के लिए तैयार हो जाता है और सुमित्रा के साथ गाँव आ जाता है .
अब संग्राम सेर है
तो ‘माउली ‘ सवा सेर ! ‘माउली ‘ संग्राम को नाको चने चबवा देता है ,अपनी हरकतों से
,
और फिर शुरू होती है
जंग सच्चाई और बुराई की ,निस्संदेह जीत सच्चाई की ही होनी है .
लेकिन कैसे ? यह
देखना मजेदार है .
फिल्म भावनाओ और
एक्शन का मिला जुला संगम है ! फिल्म की कहानी आपको जरुर बोलीवूड
की नब्बे के दशक
की याद दिलाती होगी किन्तु यह मराठी फिल्मो में एक नए प्रयोग की तरह है ,
और देखना
अच्छा भी लगता है ,रितेश देशमुख पहले हाफ में ( प्रिंस के अभिनय में ) बुझे बुझे
से
लगे किन्तु फिल्म के दुसरे हिस्से में जब वह ‘माउली ‘ बन कर उभरते है ,तब से
फिल्म गति पकडती
है तो अंत तक बांधे रखती है .
फिल्म के बैकग्राउंड
संगीत का ‘माउली ‘ के चरित्र को विस्तार देने में बड़ा योगदान है !
जब भी ‘माउली ‘ने
एक्शन के लिए ईंट उठायी है तब तब दर्शक रोमांच से भर उठता है .
और वही संग्राम के
रोल में ‘शरद केलकर ‘ अपनी पूरी क्रूरता के साथ आये है ,बाकी ‘सलमान खान ‘
द्वारा
किया गया ‘कैमियो ‘ भी फिल्म को हल्का फुल्का बनाने में योगदान देता है !
सलमान को
मराठी बोलते देखकर दर्शक अपनी हंसी पर काबु नहीं रख पाता .
फिल्म के एक्शन
दृश्य फिल्म की जान है ! मराठी फिल्मो के लिए यह प्रथम है जब किसी फिल्म मे इस
तरह
के एक्शन देखने को मिले हो .
संगीत पक्ष की बात
करे तो सिर्फ एक ही गीत अपना प्रभाव छोड़ता है ‘माउली ,माउली ‘
उसके अलावा शीर्षक
गीत निष्प्रभावी रहा है ,जिस तरह से शीर्षक गीत की उम्मीद की जाती है
उसकी कसौटी
पर यह गीत खरा नहीं उतरता ! हां इस गीत में ‘जेनेलिया देशमुख ‘ भी कुछ पलो के
लिए
नजर आती है जो देखना अच्छा लगता है .
रितेश देशमुख की
शायद यह पहली फिल्म है जिसने उन्होंने एंग्री यंग मेन टाईप की एक्शन पैक्ड भूमिका
की है ! चाहे वह मराठी फिल्म हो या हिंदी.
पहली ही मराठी फिल्म
से ‘रितेश ‘ छा गए है ! बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने तहलका मचा दिया
और सुपर हिट की
श्रेणी में आ चुकी है ,’’बालक पालक’’ के बाद मराठी में सर्वाधिक कमाई करनेवाली यह
दूसरी
फिल्म है ( एकतीस करोड़ के उपर )
कुल मिला कर यह एक
मनोरंजक फिल्म है ! हां फिल्म में ढेर सारी कमियाँ भी दिखती है ,
जिन्हें आसानी से
दूर किया जा सकता था ,किन्तु यदि इस बात पर ध्यान न दे तो ही बेहतर .
तीन स्टार
देवेन पाण्डेय
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 18 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीष भाई
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