मोबाइल पर नेट ऑन करते ही 'व्हाट्सएप ' पर एक मैसेज आया !
''राहुल पाण्डेय ' तु चंद दिनों के दोस्तों को बर्थ डे विश कर रहा है !
लेकिन बचपन के दोस्त का जन्मदिन याद नहीं ''
पहले तो मै चिंहुक गया के कौन है ये ! फिर देखा तो मेरे बचपन का सहपाठी था .
मैंने समझाया 'अरे भाई मै किसी के जन्मदिन याद थोड़े ही रखता हु !
यह तो फेसबुक है जो सूचित कर देता है ''
उनकी नाराजगी कम नहीं हुयी ''सबके जन्मदिन सूचित कर दिए सिर्फ मेरा नोटीफिकिशन नहीं मिला ?'
मैंने रिप्लाई दिया ' अरे भाई मै हमेशा ओनलाईन नहीं रहता !
जब भी रहता हु किसी के जन्मदिवस की सुचना देखता हु तो उसे बधाई दे देता हु ,
तुम्हारी शायद दिखी नहीं '
'अच्छा वो सब बहाने रहने दे ! मै याद हु के नहीं ? हम बचपन में 'कुत्ते' के 'घर ' बनाया करते थे '
'कुत्ते के घर ?' इस लफ्ज ने बरबस ही मुस्कान ला दी चेहरे पर .
मन यादो में खो गया बचपन की ! जब फेसबुक ,व्हाट्स एप ,ऑरकुट से नहीं बल्कि 'दिल '
से दोस्त बना करते थे .
बचपन से ही प्राणियों के प्रति मुझे बहुत प्रेम था ,हमारे घर के बगल में मिटटी का टीला था
करीब चार फीट का ! वहा एक कुतिया ने बच्चे दिए थे , एकदम नन्हे नन्हे बच्चे ,कुई कुई की
आवाज से माँ को त्रस्त करते हुए ,उस कुतिया का नाम हमने रखा था ''रानी ''!
हमारा बालमन उन मासूम से सफ़ेद, काले रुई के फाहो जैसे बच्चो को छूने को मचलने लगता !
अब चूँकि उनका कोई घर नहीं था ,तो हमारे मन में आया के उनके लिए कोई घर बनाया जाय,
जिसमे बच्चे रह सके ! उन दिनों 'शिव जयंती ' पर हम बच्चे 'शिवाजी महराज '
के किले के प्रतिरूप बनाया करते थे ,तो हमने सोचा के वैसा ही कुछ इन बच्चो के लिए भी किया जाए ! बरसात का महीना था 'रानी ' अपने बच्चो के लिए उसी मिटटी के टीले में एक गुफानुमा गड्ढा बनाकर
उसी में रहती थी ! किन्तु बरसात का पानी अंदर जाता था ,
जिससे बच्चो को और रानी को तकलीफ होती थी ,तो हमने उस गुफा को और
चौड़ी करने का निर्णय लिया ! और मैंने उस गुफा को खोद खोद के हमारे जैसे दो बच्चे बैठ जाए
इतना गहरा बना दिया ,और उसके मुख पर एक प्लास्टिक की बोरी सेदरवाजा बना दिया,
जिससे पानी की बौछार भी बच्चो को न लगे !
घर बनने के बाद उसके आसपास नाले भी बनाये गए ताकि पानी वहा ठहर न सके !
और घर के प्रवेश द्वार को मिटटी से लिप पोत के ढलुवा बना दिया ताकि पानी अंदर न जा सके ,
इतनी मेहनत के बाद हमने उन बच्चो को दूध ,और माँ को रोटियाँ खिलाई और उन्हें अंदर सुला दिया !
और उस रात जमकर बरसात हुई ,हम सुबह स्कुल जाने से पहले बच्चो को देखने के लिए पहुंचे,
और यह देखकर राहत की साँस ली के घर के अंदर बच्चे एकदम सुरक्षित है !
पानी की एक बूँद भी नहीं गई थी ,कुछ दिन दिन बच्चे घर के भीतर रहे के एकदिन ,
वहा पर होनेवाले एक निर्माण कार्य के लिए उस टीले को तोड़ दिया गया .
मैंने स्कुल में अपने मित्रो को बताया था इन बच्चो के बारे में !
तो मेरे उसी मित्र ने उन पिल्लो को देखने की इच्छा जताई और हम साथ साथ आ गए !
लेकिन देखकर दुःख हुवा के बच्चो के लिए घर नहीं रहा !
तो हमने फैसला लिया के हम इनके लिए नया गहर बनायेंगे और पहले से मजबूत बनायेंगे ,
तो वहा हमने एक कोने में झाड़ झंखाड़ और कूड़ा करकट साफ़ किया !
और उस गंदे हिस्से को मिटटी से पाट कर एकदम साफ़ सुथरा बना दिया ,
और उसके बाद शुरू हुई मेरी और मेरे मित्रो की कवायद ! और हमने टूटे फूटे ईंटे जुटाये
और मिटटी के गाढे मिश्रण से उन्हें दीवार जैसा स्वरूप देना शुरू किया !
और हमने एक मकान जैसा निर्माण बनाया ,जिसमे बच्चे और उसकी माँ रह सके !
बनने के बाद 'रानी ' उसमे जाने के लिए हिचकिचाती थी ,तो हमने उसके बच्चो को अंदर रख दिया
और उसने बच्चो को अंदर देख स्वयम भी प्रवेश किया और बैठ गई आराम से जुबान हिलाते हुए .
और हमने ख़ुशी से किलकारी मारी ! अब मेरा मित्र और मै स्कुल के बाद सीधे वहा आते और उन बच्चो के साथ खेलते ,किन्तु बच्चे बड़े शरारती हो गए थे .
रात्री में वे अक्सर घर से बाहर निकल आया करते थे ! जिससे उनको खतरा था अन्य जीवो से ,
तो हमने अगले दिन इसका भी इलाज खोज निकाला और उस घर के आसपास बाउंड्री बना डाली ,
और इस बार हमने ईंटो को जोड़ने के लिए मिटटी के बजाय वहा हो रहे निर्माण का सीमेंट
इस्तेमाल किया और दीवारे पक्की बना दी .
इसके बाद हमें विचार आया के क्यों न पुरे घर को ही सीमेंट से जोड़ दिया जाए ?
तो हमने अगले दिन स्कुल से आते ही काम शुरू कर दिया ! और काफी मेहनत के बाद एक
पक्का निर्माण किया ,दीवारे गिरे नहीं इसके लिए हमने दो ईंटो की दीवारे बनायी ,
और निर्माण में खोदे जाने 'नीव ' से प्रेरणा लेकरबकायद नीव भी बनायी और आधी ईंटे
जमीं के भीतर और फिर उसके ऊपर दूसरी ईंटे !
इस तरह से सीमेंट के मजबूत जोड़ से एक सुंदर गहर तैयार हो गया जो उस
इलाके के लोगो के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया !
एक बार उस जमींन का मालिक वहा आया और उसने वह छोटा सा घर देखा ,
हमें लगा के अब यह घर भी गया ! किन्तु उसने जब घर के भीतर नन्हे बच्चो को देखा
तो उसने मजदूरो से कह दिया के इस घर को मत तोडना इसमें बच्चे है .
हम खुश हो गए और उसने हमें उन बच्चो के बड़े होने तक घर नहीं तोड़ने की बात कही और
चला गया .
समय के साथ बच्चे बड़े हो गए और मकान निर्माण की जरुरत के चलते टूट गया ! वैसे भी
बच्चे अब मकान में रह नहीं सकते थे क्योकि वे बड़े हो चुके थे .
लेकिन इसके बावजुद उस मकान का टूटना हमारे लिए दुखद था ! वह 'कुत्ते का घर ' नहीं था !
वह हमारी 'यादो का घर ' था
आखिर वो हमने बनाया था जी जान से उन बच्चो के लिए .
अचानक मोबाईल के मैसेज ने यादो का सिलसिला तोडा !
मैसेज था '' अरे वो कुत्ते मुझे याद करते है के नहीं ? या तेरी तरह वो भी भुल गए ''
मैंने कहा ' वो बच्चे अपनी उम्र पूरी करके अगली पीढ़िया देकर खत्म हो चुके भाई ''
'' हां नहीं तो तु फिर घर बनाता ''
मै सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया ! मुस्कुराते हुए थोडा गीलापन आँखों में महसुस किया .
''राहुल पाण्डेय ' तु चंद दिनों के दोस्तों को बर्थ डे विश कर रहा है !
लेकिन बचपन के दोस्त का जन्मदिन याद नहीं ''
पहले तो मै चिंहुक गया के कौन है ये ! फिर देखा तो मेरे बचपन का सहपाठी था .
मैंने समझाया 'अरे भाई मै किसी के जन्मदिन याद थोड़े ही रखता हु !
यह तो फेसबुक है जो सूचित कर देता है ''
उनकी नाराजगी कम नहीं हुयी ''सबके जन्मदिन सूचित कर दिए सिर्फ मेरा नोटीफिकिशन नहीं मिला ?'
कैप्शन जोड़ें |
जब भी रहता हु किसी के जन्मदिवस की सुचना देखता हु तो उसे बधाई दे देता हु ,
तुम्हारी शायद दिखी नहीं '
'अच्छा वो सब बहाने रहने दे ! मै याद हु के नहीं ? हम बचपन में 'कुत्ते' के 'घर ' बनाया करते थे '
'कुत्ते के घर ?' इस लफ्ज ने बरबस ही मुस्कान ला दी चेहरे पर .
मन यादो में खो गया बचपन की ! जब फेसबुक ,व्हाट्स एप ,ऑरकुट से नहीं बल्कि 'दिल '
से दोस्त बना करते थे .
बचपन से ही प्राणियों के प्रति मुझे बहुत प्रेम था ,हमारे घर के बगल में मिटटी का टीला था
करीब चार फीट का ! वहा एक कुतिया ने बच्चे दिए थे , एकदम नन्हे नन्हे बच्चे ,कुई कुई की
आवाज से माँ को त्रस्त करते हुए ,उस कुतिया का नाम हमने रखा था ''रानी ''!
हमारा बालमन उन मासूम से सफ़ेद, काले रुई के फाहो जैसे बच्चो को छूने को मचलने लगता !
अब चूँकि उनका कोई घर नहीं था ,तो हमारे मन में आया के उनके लिए कोई घर बनाया जाय,
जिसमे बच्चे रह सके ! उन दिनों 'शिव जयंती ' पर हम बच्चे 'शिवाजी महराज '
के किले के प्रतिरूप बनाया करते थे ,तो हमने सोचा के वैसा ही कुछ इन बच्चो के लिए भी किया जाए ! बरसात का महीना था 'रानी ' अपने बच्चो के लिए उसी मिटटी के टीले में एक गुफानुमा गड्ढा बनाकर
उसी में रहती थी ! किन्तु बरसात का पानी अंदर जाता था ,
जिससे बच्चो को और रानी को तकलीफ होती थी ,तो हमने उस गुफा को और
चौड़ी करने का निर्णय लिया ! और मैंने उस गुफा को खोद खोद के हमारे जैसे दो बच्चे बैठ जाए
इतना गहरा बना दिया ,और उसके मुख पर एक प्लास्टिक की बोरी सेदरवाजा बना दिया,
जिससे पानी की बौछार भी बच्चो को न लगे !
घर बनने के बाद उसके आसपास नाले भी बनाये गए ताकि पानी वहा ठहर न सके !
और घर के प्रवेश द्वार को मिटटी से लिप पोत के ढलुवा बना दिया ताकि पानी अंदर न जा सके ,
इतनी मेहनत के बाद हमने उन बच्चो को दूध ,और माँ को रोटियाँ खिलाई और उन्हें अंदर सुला दिया !
और उस रात जमकर बरसात हुई ,हम सुबह स्कुल जाने से पहले बच्चो को देखने के लिए पहुंचे,
और यह देखकर राहत की साँस ली के घर के अंदर बच्चे एकदम सुरक्षित है !
पानी की एक बूँद भी नहीं गई थी ,कुछ दिन दिन बच्चे घर के भीतर रहे के एकदिन ,
वहा पर होनेवाले एक निर्माण कार्य के लिए उस टीले को तोड़ दिया गया .
मैंने स्कुल में अपने मित्रो को बताया था इन बच्चो के बारे में !
तो मेरे उसी मित्र ने उन पिल्लो को देखने की इच्छा जताई और हम साथ साथ आ गए !
लेकिन देखकर दुःख हुवा के बच्चो के लिए घर नहीं रहा !
तो हमने फैसला लिया के हम इनके लिए नया गहर बनायेंगे और पहले से मजबूत बनायेंगे ,
तो वहा हमने एक कोने में झाड़ झंखाड़ और कूड़ा करकट साफ़ किया !
और उस गंदे हिस्से को मिटटी से पाट कर एकदम साफ़ सुथरा बना दिया ,
और उसके बाद शुरू हुई मेरी और मेरे मित्रो की कवायद ! और हमने टूटे फूटे ईंटे जुटाये
और मिटटी के गाढे मिश्रण से उन्हें दीवार जैसा स्वरूप देना शुरू किया !
और हमने एक मकान जैसा निर्माण बनाया ,जिसमे बच्चे और उसकी माँ रह सके !
बनने के बाद 'रानी ' उसमे जाने के लिए हिचकिचाती थी ,तो हमने उसके बच्चो को अंदर रख दिया
और उसने बच्चो को अंदर देख स्वयम भी प्रवेश किया और बैठ गई आराम से जुबान हिलाते हुए .
और हमने ख़ुशी से किलकारी मारी ! अब मेरा मित्र और मै स्कुल के बाद सीधे वहा आते और उन बच्चो के साथ खेलते ,किन्तु बच्चे बड़े शरारती हो गए थे .
रात्री में वे अक्सर घर से बाहर निकल आया करते थे ! जिससे उनको खतरा था अन्य जीवो से ,
तो हमने अगले दिन इसका भी इलाज खोज निकाला और उस घर के आसपास बाउंड्री बना डाली ,
और इस बार हमने ईंटो को जोड़ने के लिए मिटटी के बजाय वहा हो रहे निर्माण का सीमेंट
इस्तेमाल किया और दीवारे पक्की बना दी .
इसके बाद हमें विचार आया के क्यों न पुरे घर को ही सीमेंट से जोड़ दिया जाए ?
तो हमने अगले दिन स्कुल से आते ही काम शुरू कर दिया ! और काफी मेहनत के बाद एक
पक्का निर्माण किया ,दीवारे गिरे नहीं इसके लिए हमने दो ईंटो की दीवारे बनायी ,
और निर्माण में खोदे जाने 'नीव ' से प्रेरणा लेकरबकायद नीव भी बनायी और आधी ईंटे
जमीं के भीतर और फिर उसके ऊपर दूसरी ईंटे !
इस तरह से सीमेंट के मजबूत जोड़ से एक सुंदर गहर तैयार हो गया जो उस
इलाके के लोगो के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया !
एक बार उस जमींन का मालिक वहा आया और उसने वह छोटा सा घर देखा ,
हमें लगा के अब यह घर भी गया ! किन्तु उसने जब घर के भीतर नन्हे बच्चो को देखा
तो उसने मजदूरो से कह दिया के इस घर को मत तोडना इसमें बच्चे है .
हम खुश हो गए और उसने हमें उन बच्चो के बड़े होने तक घर नहीं तोड़ने की बात कही और
चला गया .
समय के साथ बच्चे बड़े हो गए और मकान निर्माण की जरुरत के चलते टूट गया ! वैसे भी
बच्चे अब मकान में रह नहीं सकते थे क्योकि वे बड़े हो चुके थे .
लेकिन इसके बावजुद उस मकान का टूटना हमारे लिए दुखद था ! वह 'कुत्ते का घर ' नहीं था !
वह हमारी 'यादो का घर ' था
आखिर वो हमने बनाया था जी जान से उन बच्चो के लिए .
अचानक मोबाईल के मैसेज ने यादो का सिलसिला तोडा !
मैसेज था '' अरे वो कुत्ते मुझे याद करते है के नहीं ? या तेरी तरह वो भी भुल गए ''
मैंने कहा ' वो बच्चे अपनी उम्र पूरी करके अगली पीढ़िया देकर खत्म हो चुके भाई ''
'' हां नहीं तो तु फिर घर बनाता ''
मै सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया ! मुस्कुराते हुए थोडा गीलापन आँखों में महसुस किया .
Sweet, innocent and emotional memories of childhood, why cant we live it again....
जवाब देंहटाएंO dear reminds me of something....
सच कहा आपने ! बचपन वाकई बड़ा मासुम होता है
हटाएंबढ़िया लेखन ! मज़ा आ गया पढ़कर , देवेन भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बहुत धन्यवाद आशीष भाई
हटाएंकल 03/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
इस सम्मान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद यशवंत जी
हटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंहमने भी बचपन में कुत्तों के बच्चों केलिए बहुत घर बनाये हैं... बचपन की याद दिल दी आपने
जनकार प्रसन्नता हुई के हमारी यादो ने आपकी स्मृतिया भी कर दी !
हटाएंधन्यवाद
वाह ओटनी अच्छी कहानी बचपन के दिन कितने मासूम होते थे. बेहद ख़ूबसूरती से आपने उन दिनों को हम सब तक पहुचाया है, बहुत ही अच्छा। मन ko छू गए शब्द और भाव
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता जी ! बचपन तो सभी का मासूम ही रहा है ,न उसमे बनवाट होती थी और न ही स्वार्थ ,होता था तो सिर्फ प्रेम
हटाएंबहुत रोचक और भावपूर्ण लेखन...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश जी
हटाएंमै सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया ! मुस्कुराते हुए थोडा गीलापन आँखों में महसुस किया . -.. आत्मीय बोध कराती सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंएक संवेदनशील इंसान वही होता है जो प्राणियों की फिक्र कर अपना फ़र्ज़ निभाता है ..
आपके शब्दों के लिए धन्यवाद कविता जी ! ईश्वर की कृपा से हमें अबोध प्राणियों के संग रहने कई अवसर प्राप्त हुए है ,जो सुखदायी तो होते ही है किन्तु अंतिम क्षण जब वे हमसे विदा होते है वे बहुत दुखदायी होते है .
हटाएंकिन्तु ईश्वर का धन्यवाद जो उन्होंने हमें इन निस्वार्थ प्रेमी जीवो का सानिध्य दिया .
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
आपके इन शब्दों ने हमारे लिए प्रेरणा का कार्य किया है ! बहुत अच्छा लगा आपके विचार जानकर .
हटाएंअपना सहयोग एवं प्रेम बनाए रखिये ,धन्यवाद
बहुत खूब , ख़त्म किये बिना नहीं छोड़ सका ! बधाई संवेदनशील मन के लिए …….
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सतीश जी आपका इन शब्दों के लिए .
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