मेरा कॉमिक्स प्रेम तो ‘सुपर कमांडो ध्रुव ‘ से ही शुरू हो गया था !
किन्तु उन दिनों कॉमिक्स के बैक कवर के पिछले हिस्से में कॉमिक्स के अन्य हीरोज
की कॉमिक लिस्ट दी जाती थी जोकि उपलब्ध होती थीं! उस लिस्ट में चार हीरोज के ब्लैक एंड व्हाईट चित्र बने होते थे, जिसमें होता था बांकेलाल, भोकाल, परमाणु और डोगा!
तो भाई इन सभी चरित्रों में से हमें आकर्षित किया उस अजीब से... चेहरे वाले बन्दे ने!
जिसके हाथ में एक बड़ी से गन जमीन का सहारा लेकर टिकी होती थी. उस अजीब से चेहरे के प्रति अजीब सा आकर्षण हो गया था! यह बात और की उसके चेहरे को देखकर हमें उस समय कोई कुत्ता याद नहीं आया,
और उसने मास्क पहना है यह भी नहीं जान पाया, हमें लगा इसकी शक्ल ही ऐसी होगी!
तो हमें वह नायक कम और खलनायक ज्यादा प्रतीत हुआ और उस समय तक मैंने कभी डोगा की कोई और ऐड देखी भी नहीं थी और लगभग सभी पात्रों से परिचय हो चुका था. संयोग से हम जब कॉमिक स्टाल पर गए और तभी हमें यह कॉमिक दिखी!
जिसे डोगा की सीरिज में एक माईलस्टोन का दर्जा प्राप्त है ,जिसके कवर पर ‘धीरज वर्मा ‘ जी का बनाया डोगा था (इस कॉमिक के कवर पर बनाया गया डोगा उनका अब तक सबसे बेस्ट और आकर्षक डोगा लगा जिसने मुझे उस कॉमिक को खरीदने पर मजबूर कर दिया) और मैंने वह ‘विशेषांक‘ सोलह रूपये में खरीद लिया,
ट्रेडिंग कार्ड भी मुफ्त मिला! मेरा पहला ट्रेडिंग कार्ड. और वह समय बरसात का था,
मैंने कॉमिक खरीदी (जोकि अपने पैसे बचा बचा कर जमा किये थे) अपनी चड्डी में बनी जेब में रोल करके रखी और घर चल पड़ा! भूख तो थी ही नहीं लेकिन फिर भी खाना खिलाये बगैर माँ नहीं मानने वाली थी.
जल्दी जल्दी निपटा कर मै घर के अपने कोने में पहुंचा,जहा मैंने कुछ पुरानी चादरों को तान कर अपना ‘तम्बू ‘ बना रखा था, बरसात के दिन थे! बाहर बरसात जोरों पर थी, नम वातावरण ठंड भरे माहौल में कम्बल ओढ़े कॉमिक्स पढने का मजा ही अलग था. बस मैंने वह हाहाकारी कॉमिक्स खोली जिसका नाम था ‘खाकी और खद्दर‘
! उफ़! जो एक बार कहानी पढनी शुरू की तो बस पढ़ता ही चला गया,यहाँ पहली बार पता चला कि डोगा इंसान है कोई जानवर जैसा अतिमानव नहीं, उसका मास्क देखकर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी भी आई!
कहानी उस परिवेश की कहानी थी जो आज भी सामयिक है, राजनीति का गुंडाकरण!
पिसती आम जनता, इमानदार पुलिसियों की विवशता इस भ्रष्ट शाशन पर और डोगा के न आने की शपथ, हर पेज पर जुल्मो सितम देखकर खून उबलने लगा कि अब तो आ डोगा,
अब तो इंतिहा हो गई आजा, संवाद दर संवाद वजूद पर चोट करती कहानी में जब
आखिरकार सूरज ने डोगा का मास्क धारण किया तो मैंने जोर से किलकारी मारी... तो माँ ने डांट दिया पागल है क्य!?
चुप बैठ नहीं तो लप्पड़ लगाउंगी. मैं फिर चुप हो गया और कॉमिक्स में खो गया!
हां मार डोगा इसे और मार इस ‘पंड्या‘ का थोबड़ा तोड़ डाल ‘लॉयन‘ के साथ बहुत सही किया!
प्रेमसिंह को भी मारना ऐसे ही. और बस कॉमिक्स खत्म होते होते ‘डोगा‘ मेरा फेवरेट बन चुका था!
फिर उसके बाद मैंने डोगा की कॉमिक्स लेने के लिए चक्कर काटने शुरू कर दिए! एक से बढकर एक कहानियां मिलने लगीं जो जमीनी हकीकत से वास्ता रखती थीं. डोगा की बेहतरीन कॉमिक्स के नाम मै गिना नहीं सकता! मन को झकझोरने वाली कहानियों का सिलसिला जो शुरू हुआ तो थमा नहीं, मृत्युदाता, खून का खतरा, खुनी पहेलियां, तिरंगा, 786, वर्दी वाला डोगा,
चार किलोमीटर आगे, दो फौलाद,बोम्बे डाईंग, बटलर और भी ना जाने कितनी कॉमिक्स
जिनके नाम लिखना शुरू करूं तो शब्द कम पड़ जाएं, उन्ही दिनों ‘कारगिल‘ की जंग हुई थी, जिसके उपलक्ष में देशप्रेम से ओतप्रोत (वैसे डोगा की सभी कॉमिक्स देशप्रेम से ओतप्रोत ही होती थीं )
कॉमिक्स मिली ‘घुसपैठिया‘! एक बहुत ही भावनात्मक कहानी जिसने अंत तक बांधे रखा,
इतना सजीव चित्रांकन के आँखे फटी की फटी रह जाएं. डोगा की कॉमिक्स के
जो सजीव चित्रंण इस दौर में ‘मनु‘ जी ने किये थे वह सभी उम्दा थे !
खासकर भावनात्मक दृश्यों का चित्रांकन! गजब, गजब, गजब होता था,
डोगा को जैसी उम्दा कहानियां मिली ‘भरत जी और वाही जी‘ की बदौलत,
उतना ही उम्दा और सटीक चित्रांकन मिला और उतना ही शानदार रंग संयोजन.
डोगा के बारे में एक ख़ास बात जो थी वह यह के मेरे पिता जी को मेरे कॉमिक्स पढने से सख्त चिढ थी
(यह बात सभी कॉमिक फैन्स में कॉमन है) उन्हीं दिनों मैं डोगा की नयी कॉमिक्स लाया था
‘चार किलोमीटर आगे‘ कॉमिक्स में एक्शन की कमी थी किन्तु भावनाओं का तूफ़ान था उसमें!
एक नवजात कन्या शिशु की ह्त्या का केस सुलझाने में जुटा डोगा.
रात के खाने में जब पिता जी ने माँ के सामने उस कॉमिक्स का जिक्र किया तो मै हक्का बक्का रह गया,
वह माँ को उस कॉमिक की कहानी सुना रहे थे, कॉमिक्स से सख्त चिढ रखनेवाले पिताजी जब किसी कॉमिक्स की तारीफ़ करने लगे तो क्या बताऊं कि मुझे कितनी ख़ुशी हुयी.
उसके बाद जब भी पिताजी खाली समय में लेटते तो मुझे कहते कुछ कॉमिक्स देने के लिए!
मैं अन्य हीरोज की कॉमिक्स देता तो बिगड़ पड़ते ‘अरे! यह नमूनों की मत दे डोगा की दे खाली.
तो भाई यह है डोगा का जलवा, बरसों बाद जब मैं कॉमिक्स से फिर जुडा तब मुझे डोगा की ‘बोर्न इन ब्लड‘ सीरिज में फिर वही वही स्वाद मिला,
वही कहानी मिली और मैं दोबारा अपने हीरो से जुड़ गया. यह है डोगा को लेकर मेरा अनुभव.
किन्तु उन दिनों कॉमिक्स के बैक कवर के पिछले हिस्से में कॉमिक्स के अन्य हीरोज
की कॉमिक लिस्ट दी जाती थी जोकि उपलब्ध होती थीं! उस लिस्ट में चार हीरोज के ब्लैक एंड व्हाईट चित्र बने होते थे, जिसमें होता था बांकेलाल, भोकाल, परमाणु और डोगा!
तो भाई इन सभी चरित्रों में से हमें आकर्षित किया उस अजीब से... चेहरे वाले बन्दे ने!
जिसके हाथ में एक बड़ी से गन जमीन का सहारा लेकर टिकी होती थी. उस अजीब से चेहरे के प्रति अजीब सा आकर्षण हो गया था! यह बात और की उसके चेहरे को देखकर हमें उस समय कोई कुत्ता याद नहीं आया,
और उसने मास्क पहना है यह भी नहीं जान पाया, हमें लगा इसकी शक्ल ही ऐसी होगी!
तो हमें वह नायक कम और खलनायक ज्यादा प्रतीत हुआ और उस समय तक मैंने कभी डोगा की कोई और ऐड देखी भी नहीं थी और लगभग सभी पात्रों से परिचय हो चुका था. संयोग से हम जब कॉमिक स्टाल पर गए और तभी हमें यह कॉमिक दिखी!
जिसे डोगा की सीरिज में एक माईलस्टोन का दर्जा प्राप्त है ,जिसके कवर पर ‘धीरज वर्मा ‘ जी का बनाया डोगा था (इस कॉमिक के कवर पर बनाया गया डोगा उनका अब तक सबसे बेस्ट और आकर्षक डोगा लगा जिसने मुझे उस कॉमिक को खरीदने पर मजबूर कर दिया) और मैंने वह ‘विशेषांक‘ सोलह रूपये में खरीद लिया,
ट्रेडिंग कार्ड भी मुफ्त मिला! मेरा पहला ट्रेडिंग कार्ड. और वह समय बरसात का था,
मैंने कॉमिक खरीदी (जोकि अपने पैसे बचा बचा कर जमा किये थे) अपनी चड्डी में बनी जेब में रोल करके रखी और घर चल पड़ा! भूख तो थी ही नहीं लेकिन फिर भी खाना खिलाये बगैर माँ नहीं मानने वाली थी.
जल्दी जल्दी निपटा कर मै घर के अपने कोने में पहुंचा,जहा मैंने कुछ पुरानी चादरों को तान कर अपना ‘तम्बू ‘ बना रखा था, बरसात के दिन थे! बाहर बरसात जोरों पर थी, नम वातावरण ठंड भरे माहौल में कम्बल ओढ़े कॉमिक्स पढने का मजा ही अलग था. बस मैंने वह हाहाकारी कॉमिक्स खोली जिसका नाम था ‘खाकी और खद्दर‘
! उफ़! जो एक बार कहानी पढनी शुरू की तो बस पढ़ता ही चला गया,यहाँ पहली बार पता चला कि डोगा इंसान है कोई जानवर जैसा अतिमानव नहीं, उसका मास्क देखकर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी भी आई!
कहानी उस परिवेश की कहानी थी जो आज भी सामयिक है, राजनीति का गुंडाकरण!
पिसती आम जनता, इमानदार पुलिसियों की विवशता इस भ्रष्ट शाशन पर और डोगा के न आने की शपथ, हर पेज पर जुल्मो सितम देखकर खून उबलने लगा कि अब तो आ डोगा,
अब तो इंतिहा हो गई आजा, संवाद दर संवाद वजूद पर चोट करती कहानी में जब
आखिरकार सूरज ने डोगा का मास्क धारण किया तो मैंने जोर से किलकारी मारी... तो माँ ने डांट दिया पागल है क्य!?
चुप बैठ नहीं तो लप्पड़ लगाउंगी. मैं फिर चुप हो गया और कॉमिक्स में खो गया!
हां मार डोगा इसे और मार इस ‘पंड्या‘ का थोबड़ा तोड़ डाल ‘लॉयन‘ के साथ बहुत सही किया!
प्रेमसिंह को भी मारना ऐसे ही. और बस कॉमिक्स खत्म होते होते ‘डोगा‘ मेरा फेवरेट बन चुका था!
फिर उसके बाद मैंने डोगा की कॉमिक्स लेने के लिए चक्कर काटने शुरू कर दिए! एक से बढकर एक कहानियां मिलने लगीं जो जमीनी हकीकत से वास्ता रखती थीं. डोगा की बेहतरीन कॉमिक्स के नाम मै गिना नहीं सकता! मन को झकझोरने वाली कहानियों का सिलसिला जो शुरू हुआ तो थमा नहीं, मृत्युदाता, खून का खतरा, खुनी पहेलियां, तिरंगा, 786, वर्दी वाला डोगा,
चार किलोमीटर आगे, दो फौलाद,बोम्बे डाईंग, बटलर और भी ना जाने कितनी कॉमिक्स
जिनके नाम लिखना शुरू करूं तो शब्द कम पड़ जाएं, उन्ही दिनों ‘कारगिल‘ की जंग हुई थी, जिसके उपलक्ष में देशप्रेम से ओतप्रोत (वैसे डोगा की सभी कॉमिक्स देशप्रेम से ओतप्रोत ही होती थीं )
कॉमिक्स मिली ‘घुसपैठिया‘! एक बहुत ही भावनात्मक कहानी जिसने अंत तक बांधे रखा,
इतना सजीव चित्रांकन के आँखे फटी की फटी रह जाएं. डोगा की कॉमिक्स के
जो सजीव चित्रंण इस दौर में ‘मनु‘ जी ने किये थे वह सभी उम्दा थे !
खासकर भावनात्मक दृश्यों का चित्रांकन! गजब, गजब, गजब होता था,
डोगा को जैसी उम्दा कहानियां मिली ‘भरत जी और वाही जी‘ की बदौलत,
उतना ही उम्दा और सटीक चित्रांकन मिला और उतना ही शानदार रंग संयोजन.
डोगा के बारे में एक ख़ास बात जो थी वह यह के मेरे पिता जी को मेरे कॉमिक्स पढने से सख्त चिढ थी
(यह बात सभी कॉमिक फैन्स में कॉमन है) उन्हीं दिनों मैं डोगा की नयी कॉमिक्स लाया था
‘चार किलोमीटर आगे‘ कॉमिक्स में एक्शन की कमी थी किन्तु भावनाओं का तूफ़ान था उसमें!
एक नवजात कन्या शिशु की ह्त्या का केस सुलझाने में जुटा डोगा.
रात के खाने में जब पिता जी ने माँ के सामने उस कॉमिक्स का जिक्र किया तो मै हक्का बक्का रह गया,
वह माँ को उस कॉमिक की कहानी सुना रहे थे, कॉमिक्स से सख्त चिढ रखनेवाले पिताजी जब किसी कॉमिक्स की तारीफ़ करने लगे तो क्या बताऊं कि मुझे कितनी ख़ुशी हुयी.
उसके बाद जब भी पिताजी खाली समय में लेटते तो मुझे कहते कुछ कॉमिक्स देने के लिए!
मैं अन्य हीरोज की कॉमिक्स देता तो बिगड़ पड़ते ‘अरे! यह नमूनों की मत दे डोगा की दे खाली.
तो भाई यह है डोगा का जलवा, बरसों बाद जब मैं कॉमिक्स से फिर जुडा तब मुझे डोगा की ‘बोर्न इन ब्लड‘ सीरिज में फिर वही वही स्वाद मिला,
वही कहानी मिली और मैं दोबारा अपने हीरो से जुड़ गया. यह है डोगा को लेकर मेरा अनुभव.
डोगा के प्रति आपका भावनात्मक लगाव अच्छा लगा।डोगा वास्तव मेँ हि एक ऐसा पात्र है जो सभी को प्रभावित करता है।
जवाब देंहटाएंआपसे और उम्मीद है कि आगे इससे भी अच्छा पढने को मिलता रहेगा।
आप जब भी किसी पात्र कि बात करेँ तो उसकी comics की जानकारी,अच्छे संवाद,प्रेरक वाक्य इत्यादि को देकर आलेख को थोङा तथ्यात्मक बनायेँ।
धन्यवाद.
...
मेरा BLOG
www.yuvaam.blogspot.com
धन्यवाद गुरप्रीत जी ! आपके सुझाव को अवश्य सम्मिलित करने का प्रयत्न करूँगा !
हटाएंरही आलेख को तथ्यात्मक बनाने की बात ,तो गुरप्रीत जी यहाँ बस मैंने इस काल्पनिक पात्र के प्रति अपने लगाव एवं प्रेम का वर्णन किया है ! इसलिए तथ्यों को दरकिनार कर दिया है ! इस पर प्रकाश डालने एवं सुझाव देने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद