द्वार खोलो भगवन द्वार खोलो
कल यु ही किसी काम से ‘ घाटकोपर ‘ तक जाने का अवसर प्राप्त हुवा ,
ठाणे से घाटकोपर स्लो लोकल से बीस-पच्चीस मिनट ( आधा घंटा ही समझ लो ) लगते है !
हमारी ट्रेन जैसे ही ‘मुलुंड ‘ पहुंची वैसे ही भीडभाड भरी बोगी में और भीड़ हो गई ,
सब अपने अपने में मशगुल थे कोई खिड़की से देख रहा था ,कोई अखबार पढ़ रहा था !
चूँकि मुझे न तो मोबाईल में गेम खेलने का शौक है, और न ही भीड़भाड़ में गाने सुनने अथवा चैटिंग करने का ,
तो हम यु ही बोगी में यहाँ वहा देख रहे है ( कोई शिकार मिले और की बोर्ड खडखड़ाने का मौका मिले ) तभी कही से किसी के बडे ही दयनीय स्वर ने ध्यान खिंचा , मराठी में कोई भजन गा रहा था.
‘’ देहाची तिजोरी भक्ति साच ठेवा ! उघड दार देवा आता उघड दार देवा ‘’
अर्थात ( शरीर की तिजोरी में भक्ति संचय कीजे ! द्वार खोलो भगवन द्वार खोलो)
हमने देखा एक व्यक्ति जिसने आँखे मुंदी हुई है वह एक सफ़ेद छड़ी के सहारे टटोल टटोल के चल रहा है !
और भजन गाये जा रहा है , मर्मान्तक स्वर था उसका यात्रिगण में से कुछ यात्री उसे चिल्लर पकड़ा दे रहे थे, और वह टटोल टटोल कर आगे बढ़ता रहा ! मेरे पास से गुजरा तो मुझे भी संकोच हुवा और मैंने पर्स में से पांच का सिक्का निकाला और उसकी हथेली में थमा दिया , वह आगे बढ़ा गाना निरंतर था ! यात्रीगण भी दयाभाव दिखा रहे थे ( हां उनकी संख्या कम ही थी ) ! तब तक अगला स्टेशन आ गया ,और अगली बोगी में जाने का प्रयास करता अंध व्यक्ति पल भर को ठहर गया, और बड़ी तेजी से छड़ी को टटोलते टटोलते बोगी से बाहर निकलने का प्रयत्न करने लगा, लोगो ने ध्यान नहीं दिया ,लेकिन उसकी तेजी मुझे खटकी और मै देखने लगा ! वह बोगी के दरवाजे तक तो टटोल-टटोल के बड़ी तेजी से पहुंचा, लेकिन जब निचे उतरने को हुवा तब मैंने उसकी आँखों को खुलते देखा .
अबे ये क्या ????? ये तो अँधा नहीं है ! मेरे मुंह से हल्के से यह निकला, लेकिन बगल में बैठे हेडफोन ठुंसे बन्दों को कोई फर्क नहीं पड़ा ( एक अँधा बन रहा था तो ये बहरे बन रहे थे )
और हम ???
हम मूर्ख बन गए थे ! लेकिन हमें अफ़सोस नहीं हुवा क्योकि हमने तो अपना कर्म किया अच्छा समझ के अब सामनेवाला ऐसा निकले तो हमारा दोष नहीं .
लेकिन कुछ भी हो भाई मूर्ख बनने का अहसास वाकई में बड़ी खीज पैदा करता है .
युवा और कुल ड्यूड्स के कानो में हेडफोन्स ठुंसे हुए थे ,जो हेडफोन्स से महरूम थे, वे फोन पर बड़ी तेजी से टाईप कर रहे थे ! अगल बगल में कौन आ रहा है कौन जा रहा है, इसकी तनिक भी फ़िक्र नहीं! मजाल जो आंखे उठा कर देख ले .
bada he mazedaar kissa tha
जवाब देंहटाएंaur us vyakti ne gajab ka kirdaar nibhaya akhir wo film nagri me jo tha
हाहाहा बिलकुल सही कहा भीष्म जी ! यहाँ तक के यदि कोई व्यक्ति उस अंध ( बहुरूपिये ) की और पैसे बढाता तो भी वह अपना हाथ आगे नहीं बढाता था किन्तु ठिठका रहता जरुर .
हटाएंसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - १३ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीष भाई इस सम्मान के लिए
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबधायी हो।
धन्यवाद सर जी !
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