मेरी यह रचना जनवरी २०१४ में मुंबई से प्रकाशित एक पत्रिका
'सुरभि सलोनी ' में दो कड़ीयो में
प्रकाशित हो चुकी है ! साभार उस कहानी को मै अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हु .
 |
'सुरभि सलोनी ' में प्रकाशित पेज |
' क्या
यार अमित कम ऑन यार यही तो उम्र है मजे करने की और तू इसी उम्र में इतनी टेंशन
लेकर बैठा है ? ' प्रशांत ने अपने
दोस्त 'अमित ' से कहा !
अमित : नहीं यार मै टेंशन नहीं ले रहा , मुझे बस जरा सी फ़िक्र है .
'डोंट वरी यार स्टडीज के बाद की फ़िक्र मत कर , अब तक मै तेरा साथ
देता आया हु ,
आगे भी मै तेरे साथ हु ! कैरियर की फ़िक्र मत कर
भाई सब तेरा ही तो है !
पापा का बिजनेस आखिर मुझे ही तो सम्भालना है !'
प्रशांत
ने अमित को आश्वश्त करते हुये कहा .
'कितना करेगा यार तू ? मम्मी -पापा की मौत के बाद एक तू ही तो है
जिसने
मुझे सम्भाला है ! कॉलेज की फीस ,पढाई का खर्चा ,सभी तो तूने ही किया
है !
इतने अहसान है तेरे मुझ पर , अब और इतना अहसान मत लाद मुझपर के बोझ इतना हो
जाय के सारी जिन्दगी तेरा दोस्त खड़ा ना हो सके '
'चुप कर साले , क्या बकवास लगा रखी है, अहसान -अहसान ! यह
लफ्ज़ इस्तेमाल करके अपनी दोस्ती को गाली मत दे ! और यार मै अकेले भला क्या कर सकता
हु जब तू मेरे साथ नहीं होगा ? इसलिये फ़िक्र छोड़ और अपना कैरियर मेरे साथ शुरू
कर पापा के बिजनेस में हाथ बंटा कर समझे ? '
'नहीं यार मै अब अपने पैरो पर खड़ा होना चाहता हु , कुछ ऐसा
करना चाहता हु के मुझे अपने वजूद के होने पर फक्र हो सके '
' ओके भाई कर लियो फक्र अपने वजूद पर ! अब चल ज़रा कैंटीन चलते है
'नमिता '
आई होगी
यार '
'नमिता ' का नाम लेते हुये उसके चेहरे पर आती चमक साफ़
दिखी थी
!
दोनों कैंटीन की और चल पड़े ,
प्रशांत एक बिजनेस टायकून का बेटा था ,लेकिन पैसो का घमंड कभी उसे छु भी नहीं
पाया ,
अमित एक मध्यमवर्गीय परिवार से था ! वही कहानी जो अक्सर मध्यमवर्गीय परिवार के साथ
दोहराई जाती रही है ,
अमित का परिवार भी औरो की तरह बड़ी मुश्किल से अपने एकलौते बेटे की पढाई का खर्चा
उठा रहा था !
हमारा बेटा हमारी तरह अभावो में ना जिये इसलिये उसके माँ बाप ने उसे शहर के रईसों
का कॉलेज समझे जानेवाले कॉलेज में एडमिशन दिलाया था !
नया एडमिशन था सो रैगिंग तय थी , और उसका भय भी हर
स्टूडेंट की तरह अमित को था !
लेकिन रैगिंग के दौरान ही उसकी मुलाक़ात प्रशांत से हुई ! प्रशांत ने उसे इस नये
माहौल में अभ्यस्त होने में काफी मदद की !
और धीरे धीरे दोनों की दोस्ती परवान चढने लगी !
इसी बिच भारी बरसात के कारण पहाड़ धंसने से अमित ने अपने घर के साथ साथ अपने परिवार
को भी खो दिया !
अब वह नितांत अकेला था ! भविष्य अंधकारमय था , लेकिन प्रशांत ने
उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा ! हर कदम पर प्रशांत अमित के आगे ही खड़ा नजर आया !
उनकी दोस्ती एक मिसाल बन चुकी थी सारे कॉलेज में !
अमित ने अपने परिवार के साथ साथ कई मासूमो को मरते देखा था ! अपने
माँ बाप की लाशो को वह सिर्फ अपने घर के मलबे की वजह से ही पहचान पाया था ! इस
हादसे ने उसे अन्दर तक हिला दिया था ! इसी घटना ने
जिन्दगी के लिये उसकी सोच बदल कर रख दी थी !
वह सामाजिक कार्यो में ज्यादा रुचि लेने लगा था ! कई 'एन जी ओ ' से वह
जुड़ा हुवा था !
अपने स्तर पर जो हो सके वह वह सब करता था इस समाज के लिये !
प्रशांत को उसका इस तरह से दुसरो के लिये जीना पसंद नहीं था !
वह
चाहता था अमित उसके बिजनेस में हाथ बँटाये ,ना की समाजसेवा करे
!
' अबे यार तू भी ना क्या जरुरत है तुझे समाजसेवा करने की ? तेरे
आगे सारी जिन्दगी पड़ी है भाई ! अरे तेरे आगे अभी तो सारी दुनिया झुक कर सलाम
बोलेगी , बहुत सह लिया तूने अब तेरे खुश रहने के दिन आये है तो तू पागल बन रहा
है ! इन सबमे कुछ नहीं रखा ! यह सब सिर्फ किताबो में अच्छा लगता है असल में नहीं !
लेकिन अमित पर इसका कोई असर नहीं हुवा !
' देख दोस्त , मुझे इस काम में ख़ुशी होती है ! मुझे किसी की
सलामी नहीं चाहिये बस किसी की मदद करके जो दुवाए मिल जाती है मेरे लिये वही काफी
है ! अपने लिये तो सभी जीते है दोस्त , दुसरे के लिये कभी जीकर देखो !
यह
बिजनेस मेरे बस का नहीं है , और यार सारी जिन्दगी तो मै तेरे
सहारे नहीं रह सकता न ?
मुझे
पता है तुझे अपने दोस्त को आगे बढ़ता देख ख़ुशी होगी , लेकिन मै इसके लिये
नहीं बना ,' प्रशांत उसे मनाने की हर कोशिश करता लेकिन सब बेकार !
कॉलेज का आखिरी दिन भी आ गया , आज प्रशांत काफी खुश था क्योकि उसने 'नमिता '
के आगे
भी अपने प्यार का इजहार कर दिया था , जिसे नमिता ने एक्सेप्ट कर लिया था !
वह अपनी ख़ुशी बाँटने के लिये अमित को ढूंढ रहा था !
'क्या
हुवा प्रशांत , किसे ढूंढ रहे हो ' नमिता ने उसे परशान
देख कर पुछा !
' नमिता , मै अमित को ढूंढ रहा हु , पागल कही का पता
नहीं कहा चला गया ' प्रशांत के शब्दों से उसकी परेशानी साफ़ झलक रही
थी !
' उसे कॉल कर के पूछ लो ना ' नमिता के कहते ही प्रशांत ने अमित का
नम्बर डायल किया !
'ओफ्फो स्विच ऑफ है उसका फोन '
'साले को कहते भी नहीं बनता, कही जाना है तो बताकर जाये , उसके घर ही जाना होगा ,नमिता मै थोड़ी देर में आता हु उस से मिलकर '
'प्रशांत .......' नमिता की बात अधूरी ही रह गई क्योकि प्रशांत इतनी तेजी से भगा था के पल भर में नजरो से ओझल हो गया
!
दरवाजे पर दस्तक दी , दरवाजा अमित ने ही खोला था !
' क्या कर रहा है तू यहाँ
? मै वहा पागलो की तरह तुझे ढूंढ रहा हु और तू यहाँ .........'' गुस्से से बिफरते प्रशांत की नजरे
बेड पर मौजूद सूटकेस पर पड़ी
,जिसमे कपडे सलीके से रखे हुये थे
!
'य यह क्या है अमित ? ' अमित अपना सर झुकाये खड़ा था !
'अमित बता मुझे ,यह कहा जाने की तैय्यारी कर रहा है तू
? ' बिफरते हुये प्रशांत ने कहा !
' मुझे पता था प्रशांत तू मुझे जाने नहीं देगा इसलिये मै चुपके से निकला जाना चाहता था ' अमित ने कहा !
' लेकिन कहा जा रहा है ? क्यों ?
अमित ने एक लिफाफा अपनी जेब से निकाल कर प्रशांत की ओर बढ़ा दिया .
प्रशांत ने बेसब्री से लिफाफा खोला और उसमे से निकले हुये 'कागज़ ' को एक ही सांस में पूरा पढ़ डाला !
इतनी बड़ी बात तूने मुझ से छिपाई ? दोस्त कहता है ना मुझे
? और मुझे इस लायक भी नहीं समझा के मुझे यह बता सके ?
क्यों कर रहा है तू ऐसा
? क्या कमी रह गई यार अपनी दोस्ती में ? अरे पगले किस बात की कमी है तुझे यहाँ ?
क्यों तुझे यही काम करना है
, मेरे साथ चल आज ही बिजनेस ज्वाइन कर बस , मै तुझे कही नहीं जाने दूंगा
प्रशांत ने निर्णायक स्वर में कहा !
' इसलिये मै तुझे इस विषय में कुछ भी बताना नहीं चाहता था
! मुझे पता था तू मुझे जाने नहीं देगा !
तेरे सहारे मै कामयाब तो हो जाऊँगा मेरे दोस्त ,लेकिन वह जिन्दगी उधार की जिन्दगी होगी
,लोग हमेशा यही कहेंगे के वह देखो अमित जिसने प्रशांत को सीढ़ी बनाकर कामयाबी पाई , इस 'बुलंदी का बोझ ' मै नहीं सह पाऊंगा यार '
अमित के शब्दों में दर्द उतर आया था .
'बहुत बड़ी बात कह दी तूने भाई
, एक झटके में अपने दोस्त को खुद से अलग कर दिया , अरे यार जो मेरा है उस पर तेरा भी बराबर का हक़ है , मै तुझे जानता हु मेरे सामने तो कम से कम यह झूठे बहाने मत बना !
हम तो चाहते ही यही है के हमारी पहचान हमारी दोस्ती से हो
, तो इसमें लोग कहा से आ गये
?'
सच तो यह है के समाज सेवा का भूत तेरे सिर चढ़ा है , इसके आगे हमारी दोस्ती तुझे नजर नहीं आती
,ठीक है तू जाना चाहता है तो चला जा मै होता कौन हु तुझे रोकनेवाला ? लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना दोस्त , माना के मुझे अपने पैसो का घमंड नहीं है लेकिन यह बात भी सच है के दुनिया में पैसा जिसके पास है लोगो पर उसका राज है ' तेरी समाजसेवा तुझे सिर्फ दो वक्त की रोटी ही दे सकती है ! कर ले अपने मन की कर ले ,लें तुझे आना तो मेरे पास ही है !
जब तेरा समाजसेवा का यह भूत तेरे सर से उतर जाये तो आ जाना मेरे पास , मेरी दोस्ती तब भी वैसी ही रहेगी जैसी अब है '
प्रशांत ने अपने मन की पीड़ा अपने शब्दों से उजागर की !
' मुझे माफ़ करना दोस्त , और हां आज तो तू नमिता को प्रपोज करनेवाला था क्या हुवा उसका
? ' अपनी लरजती आँखों को उस से चुराते हुये अमित ने कहा !
' चुप कर साले बात मत बदल अब '
'' मै तेरे यह बहाने अच्छी तराह से जानता हु , अब बाते मत बना ,जब जाना
ही है तो यह सब जानकर क्या करेगा तू ? '
प्रशांत रोषपूर्ण शब्दों में बोला तो अमित के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट फ़ैल
गई .
और वह एकटक प्रशांत की और देखने लगा ,मुस्कराहट कायम थी !
उसे ऐसे अपने पास देखते हुये देख कर प्रशांत सकपका गया ,
'अबे ऐसे क्या देख रहा है यार , हां बाबा उसने हां
कर दी ,,,,अब खुश।।???'
प्रशांत का इतना कहना था के अमित ने उसे जोर से गले लगा लिया .
'अबे क्या कर रहा है यार ..लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ? छोड़
मुझे '
प्रशांत बोला ,लेकिन अमित पर इसका कोई असर नहीं हुवा ,
'अरे लोगो को बोलना है तो बोलने दे , आख़िरकार तुझे तेरा
प्यार मिल ही गया .,इस बात की मुझे कितनी ख़ुशी है यह तू नहीं समझ
सकता ' अमित ने कहा .
'हां जैसे तेरे जाने की कितनी तकलीफ है मुझे, यह तू नहीं समझ सकता
' प्रशांत का गुस्सा कम नहीं हुवा था .
'देख यार बस कर अब बचपना मत कर और चुपचाप मेरे साथ चल , तूने
इतनी मेहनत की है ,दिन रात पढाई की है क्या सिर्फ इसी दिन के लिये ?
'
प्रशांत उसे समझाने कोई मौका नहीं छोड़ रहा था ,
' प्रशांत इसमें मेरी ख़ुशी है यार , अपनों के लिये तो सभी
जीते है , लेकिन दुसरो के लिये जीने में अलग ही मजा है ,तो अब समझाना छोड़ और
ख़ुशी ख़ुशी मुझे विदा कर ताकि मुझे अपने फैसले पर दुःख न हो '
' ओके अब सोच ही लिया है तो मै क्या कर सकता हु ,
'
सॉरी
यार मुझे अभी निकलना है , मेरी ट्रेन है आधे घंटे में '
'क्या ? अबे तू ..........' आगे कुछ बोलते ना
बना प्रशांत को तो खीज कर उसने एक जोरदार मुक्का अमित के चेहरे पर दे मारा ,
' आह ,,,माफ़ कर दे यार ,मुझे तुझे पहले ही
बता देना चाहिए था ,' मुक्का वाकई काफी जोर का पड़ा था उसे .
प्रशांत को अपनी गलती का अहसास हुवा और उसने झट से अपने दोस्त को गले लगा लिया ,
उसकी
आँखों से जो सैलाब अब तक रुका हुवा था वह अब फुट पड़ा ,
' तू कितना मतलबी है कमीने ,स्वार्थी है तू ,तुझे सिर्फ अपनी
ख़ुशी पड़ी है ,मेरी तकलीफ की परवाह नहीं तुझे ' फफक पड़ा
प्रशांत
अमित ने
खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था ,वह जानता था के अगर उसकी आंख से एक भी आंसू
निकला तो वह कमजोर पड़ जायेगा ,नहीं जा पायेगा !
' बस भाई ,अब रोयेगा तो मै नहीं जा पाऊंगा ,और यार
मै कही दूसरी दुनिया में नहीं जा
रहा ,आता रहूंगा साल दरसाल ,हां
शादी में तो आना ही है ना तेरी ?
'चुप कर
साले वरना एक घूंसा और जड़ दूंगा , शादी में तो आना ही होगा तुझे वरना मै नहीं करनेवाला शादी ,अच्छा
चल तुझे ट्रेन तक छोड़ कर आता हु ,'
प्रशांत अपनेआप
को
सम्भालते हुये बोला ,वह यह
समझ चूका था के अमित अब अपने फैसले पर अडिग है ,
एकदम सही
वक्त पर अमित और प्रशांत स्टेशन पहुंचे थे ,उनके आते ही ट्रेन भी आ गई थी .
'देखा
आज भगवान भी मेरे साथ नहीं है ,चाँद मिनट भी नहीं दे सकता था मुझे , ट्रेन भी तुरंत आ गई चल
जल्दी बैठ अंदर ,और पहुँच
कर कॉल करियो वरना समझ लेना ,' प्रशांत बोला ,
'ठीक है
अब मै चलता
हु यार, फिर
मिलेंगे ' अमित
ने कहा और दोनों यार एकदूसरे के गले मिले ,
.गाडी रफ़्तार पकड़ चुकी थी ,और
ट्रेन नजरो से ओझल हो चुकी थी ,
प्रशांत ने अपनी आँखे पोंछी जो गीली हो चुकी थी .....
( जारी है अगले भाग में )