रविवार, 29 जून 2014
फिल्म समीक्षा : एक विलेन
कलाकार
: सिद्धार्थ मल्होत्रा, रितेश देशमुख, श्रद्धा कपूर ,
रेमो फर्नाडींज, शाद रंधावा,
निर्देशक : मोहित सूरी
निर्माता
: शोभा कपूर

गुरु एक बेहद क्रूर एवं हत्यारा व्यक्ति है, जो हरदम आवेश में रहता है !
ऐसे में ‘आयशा ‘ ( श्रद्धा कपुर )
उसकी काली अँधेरी दुनिया में एक रौशनी की किरण बन कर आती है ! आयशा लोगो को खुश
देखना पसंद करती है ,
जिसके लिए वह कई अटपटे कारनामे करती रहती है !
अपने ऐसे ही एक कारनामे में वह गुरु को जबरन शामिल कर लेती है ,
तो गुरु उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करता है ,
अपने ऐसे ही एक कारनामे में वह गुरु को जबरन शामिल कर लेती है ,
तो गुरु उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करता है ,
लेकिन आयशा को एक लाईलाज बिमारी है ( कौन सी ,
यह बताना निर्देशक ने जरुरी नहीं समझा )
इस से गुरु को उसके प्रति हमदर्दी हो जाती है और वो आयशा के सपने पूरे
करने में उसका साथ देने लगता है ,
और यह हमदर्दी धीरे धीरे मोहब्बत में तब्दील हो जाती है .
आयशा और गुरु शादी कर लेते है !
दूसरी ओर एक साधारण सी टेलीफोन कम्पनी में मैकेनिक के तौर पर काम करनेवाला राकेश
यह बताना निर्देशक ने जरुरी नहीं समझा )
इस से गुरु को उसके प्रति हमदर्दी हो जाती है और वो आयशा के सपने पूरे
करने में उसका साथ देने लगता है ,
और यह हमदर्दी धीरे धीरे मोहब्बत में तब्दील हो जाती है .
आयशा और गुरु शादी कर लेते है !
दूसरी ओर एक साधारण सी टेलीफोन कम्पनी में मैकेनिक के तौर पर काम करनेवाला राकेश
( रितेश देशमुख ) एक नाकामयाब व्यक्ति है जिसे हमेशा
जिल्लत ही मिलती रही है ,
उसकी बीवी सोनु( आमना शरीफ )भी आए दिन उसे ताने देती रहती
है,
लेकिन वह चाहने के बावजुद भी अपनी बीवी को कुछ नहीं कर सकता
क्योकि वह उसे
बेहद चाहता है ! अपनी बीवी के लिए अंदर ही अंदर पनपता गुस्सा उसे मानसिक रूप से
विकृत बना देता है ,
और वह अपनी बीवी को छोड़ हर उस औरत का कत्ल करने लगता है
जो उस
पर चिल्लाती है तंज कसती है .
गुरु भी अपने अपराध की दुनिया को अलविदा कह चुका है ,
गुरु भी अपने अपराध की दुनिया को अलविदा कह चुका है ,
और सीजर को भी इस से कोई आपत्ति नहीं ! अब वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह आयशा
के साथ खुश है ,
लेकिन उनकी खुशियों को ग्रहण लग जाता है जब आयशा का राकेश से सामना
होता है .
राकेश आयशा का
बेरहमी से कत्ल कर देता है ,जिसके बाद गुरु पागल सा हो जाता है,
और वह उस सीरियल
किलर की तलाश में निकल पड़ता है , गुरु और राकेश का आमना सामना होता है लेकिन गुरु
उसे बुरी तरह घायल करके छोड़ देता है !
गुरु उसे एकदम से नहीं मारना चाहता वह राकेश
को तिल तिल करके मारना चाहता है ,
लेकिन गुरु की वजह से राकेश की असलियत दुनिया के
सामने आ जाती है ,
और उसकी बीवी भी पुलिस की हिरासत में आ जाती है !
जिस वजह से
राकेश क्रोध में आ जाता है और वह खुद गुरु की तलाश में निकल पड़ता है ,
फिर क्या
होता है ? जब दो जुनूनी और पागल व्यक्ति एकदूसरे के जान के प्यासे हो ? दोनों के
टकराव का क्या अंजाम होता है ? यही बाकी कहानी है .
यह एक सस्पेंस फिल्म
नहीं है ,जैसा के प्रचारीत किया गया है !
क्योकि सीरियल किलर के रूप में रितेश की
शिनाख्त पहले ही बता दी जाती है ,
फिल्म थ्रिलर और रोमांटिक एंगल लिए हुए है .
अभिनय की बात करे तो
श्रद्धा कपूर अपनी ओवर एक्टिंग के बावजूद
प्रभाव छोड़ने में सफल है ,लें फिल्म जिन
दो कंधो पर टिकी है वे है सिद्धार्थ और रितेश देशमुख ,
जहा सिद्धार्थ के साथ ही
अपना डेब्यू करनेवाले वरुण धवन चालु मसाला फिल्मो में नजर आ रहे है वही सिद्धार्थ ने
सही वक्त पर सही फिल्म को चुनकर समझदारी का परिचय दिया !
सिद्धार्थ की अदाकारी (
हालांकि की कई जगहों पर उनके एक से भाव अखरते भी है ,
किन्तु कहानी के हिसाब से सही
है ) प्रभावित करती है .
फिल्म का रोमांटिक
एंगल भी बढ़िया बन पड़ा है ,
आयशा और गुरु की प्रेमकहानी फिल्म की मजबुत नींव बनती है
.
वही एक बेबस और
लाचार व्यक्ति के रूप में रितेश सहानुभूति के पात्र बनते है किन्तु साईको किलर के
रूप में घृणा के भी !
रितेश ने दोनों पहलु बखूबी प्रस्तुत किये है .
कहानी में यदि दिमाग
लगाए तो बहुत से लुप होल्स मिलेंगे
जैसे इतने खतरनाक गैंग्स्टर गुरु का खुलेआम
समाज में रहना, घुलना मिलना !
उसके खिलाफ एक महिला का गवाही सिर्फ इसलिए न देना के
उसे उपरवाले की सजा पर
यकींन है जो वो गुरु को देगा ,पूरी फिल्म में ऑफिसर बने ‘शाद
रंधावा ‘गुरु के हर इरादे को नाकाम करते रहते है, किसी बदले वदले की बात को लेकर
(
जो क्या है यह बताना भी जरुरी नहीं समझा गया ) और भी कई है जो तार्किकता की कसौटी
पर खरे नहीं उतरते, किन्तु फिर भी फिल्म प्रभाव छोडती है और दर्शको को बांधे रखती
है अंत तक .
संगीत पक्ष मधुर है
और कई गीत पहले ही हिट हो चुके है !
‘तेरी गलिया ,बंजारा ,जरुरत ! आदि गीत रूमानी
अहसास लिए हुए है जो दिल में उतर जाते है , हां कमाल खान भी एक छोटी सी भूमिका में
नजर आते है जो राकेश के मित्र के रूप में है वह जितना राकेश को इरिटेट करता है,
उतना ही दर्शको को भी !
पता नहीं निर्माताओ की कौन सी मज़बूरी रही होगी .
बहरहाल मधुर संगीत
एवं थ्रिलर के शौक़ीन दर्शको को यह फिल्म अवश्य पसंद आयेगी .
तीन स्टार पांच में
से
देवेन पाण्डेय
गुरुवार, 26 जून 2014
‘जय हो पंखो वाली मईया ‘
कल से ही देख रहा हु
!
कुछ दिनों पहले ही हमारे गोदाम में एक खम्बे पर एक कबूतरी ने अंडे दिए थे
जो अब बच्चो में
परिवर्तित हो चुके है !
चूँकि वे एक बंद गोदाम में जन्मे है इसलिए बाहरी वातावरण
की तुलना में
उन्हें उड़ने का अभ्यस्त होने में जरुरत से ज्यादा समय लगना है ,
बच्चे माँ की आधी
बराबरी इतने बड़े तो हो ही चुके है ,
माँ को भी शायद फ़िक्र है के बच्चे इतने बड़े हो
चुके है किन्तु अभी तक उड़ना नहीं सिखा .
इसी चिंता में माता
दो दिन से बच्चो के पीछे पड़ी है ,
लेकिन बच्चे जो है अपनी शरारतो से माँ की नाक में
दम किये हुए है !
कबूतरी उन्हें खम्बे से निचे धकेलने का भरसक प्रयत्न कर रही है
किन्तु बच्चे भी पक्के ढ़ीट है वे निचे गिरते ही नहीं बल्कि जोरो से पंखो को फडफडा
कर माँ को दूर कर देते है !
कबूतरी उन्हें अपनी चोच से पकड कर निचे की और गिराने
का प्रयत्न करती है लेकिन बच्चे खम्बे को मजबूती से पकडे हुए है !
अब यह तरिका काम
नहीं आया तो कबूतरी ने खुद उड़कर ‘प्रैक्टिकल ‘ करके भी दिखाया जिसके नतीजे में
बच्चे भी बैठे बैठे बिना उड़े पंख जोर जोर से फडफडा रहे है !
एक बच्चा थोडा सा
ऊपर उठा तो कबूतरी चहचहाने लगी जोर जोर से,
मानो वो उसकी हिम्मत बढ़ा रही हो !
किन्तु इतनी मेहनत के बाद हुयी थकान से बच्चा वापस धरातल पर आ गया .
माँ शायद समझ गई ,और
वह तुरंत वहा से उड़कर निचे जमीं पर आ गई,
और निचे से बच्चो की और देखने लगी इस
उम्मीद में के शायद बच्चे भी माँ की और आने का प्रयत्न करे ,बच्चे माँ को दूर
देखकर बेचैनी में पंख फडफडा रहे है ,
लेकिन निचे आने में डर रहे है ! कुछ देर पंख
फडफडाने के बाद वो शांत बैठ गए !
अब माँ ने यहाँ वहा
पड़े चावल ,दाने आदि चुगने शुरू कर दिये और कुछ ही पलो में वापस अपने घोंसले पर जा
पहुंची,
उसके पहुँचने की देर थी के बच्चे चोंच खोल कर माँ की और लपक पड़े और माँ ने
बड़े प्यार से बारी बारी अपनी चोंच से उन दोनों बच्चो के चोंच में कुछ दाने डाल दिए
!
बच्चो की भूख मिटते ही माँ उनसे रूठी सी प्रतीत हुयी !
और वह खम्बे के दूसरी और
चलते हुए चली गई ,
किन्तु बच्चो को माँ की नाराजगी की परवाह ही नहीं ,वे तो माँ के
पीछे पीछे पैदल ही चल रहे है !
माँ बार बार पीछे
मुडती और उन्हें परे धकेलती किन्तु वे माँ से दूर नहीं जा रहे और दोबारा करीब आ गए
,कुछ देर धक्का मुक्की यु ही चलती रही
और आख़िरकार माँ ने हार मान ली और घोंसले में
आकर बैठ गई,
दोनों बच्चे माँ के समीप आ गए मानो जैसे माँ को आलिंगन दे रहे हो .
और माँ फिर से गोदाम
के छप्पर की ओर देख रही है ,
मानो सोच रही हो आज तो बच गए कल देखती हु कैसे नहीं
उड़ते .
बड़ा ही अप्रतिम
दृश्य था ,मै तो अपलक करीब एक घंटे तक उनकी हरकतों को निहारता रहा ! किन्तु माता
के प्रयत्न पर मुझे पूरा विश्वास है ,
बच्चे आज नहीं तो कल जब उड़ेंगे तो उनसे
ज्यादा ख़ुशी उस अबोध मूक पक्षी को होगी जो उनकी माता है .
( तस्वीर में कबूतर
काफी उंचाई पर है ,इसलिए तस्वीर स्पष्ट नहीं है )
शुक्रवार, 20 जून 2014
दी सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ़ एरियरीटी : फिल्म समीक्षा ( एनिमेशन )

इसके बावजूद मैंने अब तक ढेर सारी एनिमेशन फिल्मे देखि है !
जिनमे से सिर्फ गिनी चुनी फिल्मे ही उल्लेखनीय है !
यह फिल्म भी उन्ही यादगार और प्यारी फिल्मो में से एक है , मैंने किसी के आग्रह पर यह फिल्म देखि थी ,
वैसे मै बहुत कम फिल्मे अंग्रेजी में देखता हु , मै अधिकतर अंग्रेजी फिल्मो की हिंदी डब देखता हु ,
लेकिन ईस फिल्म को मैंने इंग्लिश में ही देखि क्योकि यह मेरे पास इंग्लिश में ही उपलब्ध थी .
और जब मैंने फिल्म देखनी शुरू की तब मै एक जगह चिपका रह गया ,
और फिल्म पूरी खत्म करने के बाद ही उठा ,
नहीं नहीं यह कोई बहुत ही धमाकेदार ,जबर्दस्त या हाई क्वालिटी एनिमेशन फिल्म नहीं है !
यह एक बहुत ही प्यारी फिल्म है ,सीधी सपाट कहानी जो दिल को छू लेती है .
आईये ज्यादा बाते ना करते हुये सीधे फिल्म की कहानी पर आते है .
‘शौन’ एक बीमार लडका है , उसके दिल में छेद है ,उसका ऑपरेशन होना है !
जिसमे वह बचेगा या नहीं इसकी कोई उम्मीद नहीं है ,उसे ऑपरेशन का डर है .
उसकी माँ उसे अपने दादाजी के पुराने घर लेके आती है ! घर प्रकृति की गोद में बसा हुवा है ,
एक बेहद खूबसूरत और शांत, शहर से बाहरी हिस्से में .
शौन ने घर में की दहलीज में कदम रखते ही कुछ ऐसा देख लिया जिस से उसे घर से जुडी अफवाह पर यकीं हो गया .
उसके स्वर्गीय दादाजी ने घर में दस इंच के नन्हे इंसानों के होने का दावा किया था ,
जो सबसे छुप कर रहते है उसी घर में ! लेकिन वे सारी जिन्दगी ईस बात को साबित नहीं कर पाए थे ,
तो ईस बात को नजरअंदाज कर दिया गया था .
लेकिन शौन ने कदम रखते ही गार्डन में एक नन्ही सी लडकी को देख लिया था ,
जो बामुश्किल से आठ इंच की थी ,लेकिन वह तुरंत वहा से भाग कर कही गायब हो गई .
उस लडकी का नाम “एरियरीटी” था .
एरियरीटी घबराई हुयी घर के तहखाने में स्थित अपने नन्हे से घर में पहुँचती है ,जहा उसके माँ बाप भी है ,
वह अपने माँ बाप से देखे जाने की बात कहती है !
तो उसके पिता उसे समझाते है के इंसानों द्वारा हम नन्हे इंसानों का देखा जाना हमारे लिये अच्छा नहीं है .
इसलिए आगे से सावधानी बरतना .
वे नन्हे इंसान खुद को ‘बोर्रोवर्स ‘ कहते है ,
उनका परिवार कई सालो से वहा बसा हुवा है और वे अपनी जरुरत का हर सामान शौन के घर में से ही लाते है ,
एक बार शौन की नजर एरियरीटी पर पड़ती है और वह उस से दोस्ती करना चाहता है ,लेकिन एरियरीटी को इसमें डर है !
इसलिए वह उस से बचती है ,
शौन उस से दोस्ती करने के प्रयत्न करता है !
धीरे धीरे एरियरीटी को अहसास होता है के शौन उसके लिये खतरा नहीं है .
लेकिन शौन की ईस हरकत की वजह से उसके नन्हे परिवार पर आफत आ जाती है ,
शौन की नौकरानी को शुरू से ही घर में नन्हे इंसानों के होने का शक था !
और शौन की हरकतों ने उसके ईस शक को यकीं बदल दिया .
उसने नन्हे इंसानों को पकड़ने के लिये जाल बिछाया जिसमे एरियरीटी की माँ फंस जाती है .
अब एरियरीटी शौन से मदद मांगती है ,और शौन उसकी माँ को आजाद करवाता है
और उनके रहस्य को दुनिया के सामने लाने से बचाता है .
लेकिन अब एरियरीटी और उसके परिवार को यह जगह छोड़ कर जाना है ,
क्योकि उनका नियम है के अगर इंसानों को आपके बारे में पता चल जाए तो आपको जगह बदल लेनी चाहिये तो ही आप सुरक्षित हो .
एरियरीटी शौन से मिलकर उसे अपने जाने के बारे में बताती है ,
और शौन भी उसे दुखी मन से विदा करता है .
उन दोनों में एक अनजाना सा रिश्ता बन जाता है जिसे फिल्म ने एनिमेशन होने के बावजूद भावनात्मक तरीके से पेश किया है .
फिल्म देखते वक्त हम भी किसी छोटे बच्चे जैसे हो जाते है ,और एरियरीटी की अनोखी दुनिया में खो जाते है ,
कहानी कब खत्म हो जाती है ,वक्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता .
अगर आप एनिमेशन फिल्मो के शौक़ीन हो तो आपको यह एनिमेशन फिल्म जरुर देखनी चाहिये ,
और अगर ना भी हो तो भी एक बार जरुर देखनी चाहिये .
फिल्म की सीधी सपाट कहानी ,और दिल को छू लेनेवाले पल आपको बाँध लेते है .
फिल्म को फाईव स्टार ना देने के लिये मेरे पास कोई वजह नहीं है ,इसलिए
फाईव स्टार
देवेन पाण्डेय
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