रविवार, 21 फ़रवरी 2016

फिल्म एक नजर में : नीरजा

बॉलीवुड के मिजाज आजकल बदले बदले से है , जहा कुछ फूहड़ और अर्थहीन फिल्मो ने गंद मचा रखी है ( और दर्शको ने उन फिल्मो को पानी पिला कर जवाब भी दे दिया के अब वे गंदगी से उब चुके है )
वही कुछ फिल्मे राहत का कार्य करती है ,हाल ही में सत्यघटनाओ एवं रियल हीरोज पर फिल्म बनाने के चलन ने जोर पकड़ा है जो के एक अच्छी बात है !
ऐसी कितनी घटनाये है जो हमें भारतीयता का अहसास कराती है 
और मन को गर्व से भर देती है ! 
ताजा उदाहरण है अक्षय कुमार की “एयरलिफ्ट ‘’ का जिसने न सिर्फ सफलता प्राप्त की
 बल्कि लोगो का प्यार भी मिला ,और दर्शक एक भूला दिये गए घटना से रूबरू भी हुए .
ऐसे ही विषय पर आधारीत है ‘’नीरजा ‘’ जो एक सत्यघटना पर आधारित है ! 
फिल्म बायोपिक नहीं है ,केंद्र में केवल 5 सितम्बर 1986 को हुयी पैन एम् 
एयरलाइंस हाईजैक की ही घटना है .
कहानी : नीरजा ( सोनम कपूर ) पैन एम् एयरलाईन्स में फ्लाईट अटेंडेंट है ,
वह काफी खुशमिजाज है , शादी में मिली नाकामी के बावजूद उसने हार नहीं मानी है , वह एक मॉडल भी है ,और घर परीवार के साथ साथ सभी की चहेती है , उसकी जिन्दगी बदल जाती है एक घटना से  न्युयोर्क के लिए रवाना फ्लाईट का  कराची में फलिस्तीनी उग्रवादियों द्वारा अपहरण कर लिया जाता है , जिसमे नीरजा फ्लाईट अटेंडेंट है , लेकिन नीरजा अपनी सुझबूझ से पयिलेट्स को आगाह कर देती है ,और पयिलेट्स को वहा से भाग निकलने का मौका मिल जाता है .
अब पयिलेट्स न होने की वजह से उग्रवादियों के प्लान पर पानी फिर गया और वे कराची में ही रहने पर मजबूर हो गए ! इसी गुस्से में वे अमरीकी प्रवासियों को मारने के निर्णय करते हैलेकिन नीरजा समझदारी दिखाते हुए सभी अमिरिकियो के पासपोर्ट छिपा लेती है .
नीरजा का पयिलेट्स को फरार करवाने का मकसद ही यही था के फ्लाईट टेक ऑफ़ न करे और सुरक्षा एजेंसियों को कार्यरत होने के लिए समय मिल सके .
सारी फ्लाईट में तनाव का माहौल है , और आतंकवादी भी उग्र हो चुके है ! ऐसे में किसी मासूम की जान न जाये इसके लिए नीरजा प्रयासरत रहती है .
फिर क्या होता है यह सभी जानते है ! आतंकवादियो से अकेले ही लोहा लेती यह २३ साल की लडकी फिर पाकिस्तान ,भारत ,अमरीका की हीरो बन जाती है ,
चूँकि यह सत्यघटना पर आधारित है ,इसलिए इसमें क्रिएटिव छूट का दुरूपयोग बिलकुल भी नहीं किया गया है , फिल्म का ट्रीटमेंट आपको सारी घटना आपके समक्ष होने का अहसास दिलाती है और वाकई डराती हा ! सोनम कपूर ने नीरजा के किरदार में बेहतरीन अभिनय किया ( जिसकी उन्हें जरुरत थी )
नीरजा ने सबसे कम उम्र में भारत का सर्वोचक सम्मान ‘’अशोक चक्र ‘’’ मरणोपरांत प्राप्त किया ,यह पहली बार था जब अशोक चक्र किसी महिला को मिला , और पहली बार इतनी कम उम्र पर मिला .
पाकिस्तान और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें ‘’तमगा ए इंसानियत ‘’ और ‘’ जस्टिस फॉर क्राईम ‘ अवार्ड से सम्मानित किया ,
फिल्म में गीत संगीत न के बराबर है ,जो भी है वह फिल्म के ट्रीटमेंट के अनुरूप ही हल्का फुल्का है .
एक्टिंग सभी की बढ़िया है भले वो शबाना अजमी हो या नीरजा के परिवार के सदस्य , यहाँ तक की आतंकी की भूमिका करनेवाले कलाकार भी खौफ पैदा करने में कामयाब रहे है .
फिल्म में फ्लैशबैक्स भी है ,जिनसे कहानी को गति ही मिलती है ! और विस्तार भी .

कुछ फिल्मे स्टार्स से परे होती है जिन्हें किसी समीक्षा की जरूरत नहीं होती ! यह उन्ही में से एक है .

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

फिल्म एक नजर में : डेडपूल

सनम तेरी कसम ,सनम रे ,फितूर ,लवशुदा ,डाईरेक्ट इश्क ,जैसी केवल प्यार मोहब्बत और टिपिकल बोलीवूड मसाला फिल्मो के ट्रेलर्स ,फिल्म रिलीज ने काफी कन्फ्यूज कर रखा है ! कौन सी रिलीज हुयी है और कौन सी होने वाली है कुछ पता नहीं चल रहा ! सब एक ही जैसी नजर आती है और मोहब्बत प्यार का ओवरडोज सा हो जाता है ! ऐसे में कोई फिल्म देखने का मन ही नहीं हुवा ,इन पुराने मसालों को छोड़ कर फिर रुख हुवा होलीवूड की ओर , ताजा रिलीज डेडपूल की ओर ! 
और थोडा सा बोलीवूड के वैलेंटाईन रूप हैंगोवर से राहत मिली .
कॉमिक्स जगत में सुपरहीरो है जो हीरो कम एंटीहीरो ज्यादा है ! 
जो मस्तमौला है ,जिसे दुसरो की परवाह नहीं जो स्वार्थी भी है !
ऐसा नकचढ़ा हीरो जिससे हर कोई परेशान हो और ,उसपर तुर्रा यह के वह अमर है ,मर ही नहीं सकता . गंभीर से गंभीर परिस्थितियों में भी गंभीर ना रहनेवाला और 
अजीब अजीब चुटकुले सुनाने वाला निडर और हद से ज्यादा खतरनाक भी .
मार्वल कॉमिक्स यूनिवर्स का ऐसा ही पात्र है ‘’डेडपूल ‘’ जिसकी फिल्म का इन्तजार बेसब्री से किया जा रहा था ! मार्वल की यह शुरुवाती ‘’रेड बैंड ‘’ फिल्म है ,जिसमे अतिरंजकता एवं खुले संवादों दृश्यों की भरमार होती है ,लेकिन भारतीय वर्जन में कुछ दृश्यों पर कैंची चल चुकी है , हिंदी ट्रेलर के संवादों को भी फिल्म में बदला गया है ,
फिल्म की कहानी है वेड विल्सन की ( रयान रिनोल्ड्स ) जो स्पेशल फोर्सेस से निकाला हुवा व्यक्ति है और कुछ गैरकानूनी संगठनों के लिए काम करता है ,पैसे के लिए किसी को भी उठवा लेना ,हड्डिया तोडना उसका पेशा है ,उसके जीवन को ठहराव मिलता है ‘’वेनेसा ‘’ के रूप में जो खुद वेड जितनी ही पागल है .
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा होता है किन्तु तभी पता चलता है के वेड को लास्ट स्टेज का कैंसर है ! वह जीने की उम्मीद खो बैठता है के तभी उसके सम्पर्क में आता है डॉक्टर एजेक्स ,जो उसका कैंसर ठीक करने और नयी शक्तिया दिलवाने का वायदा करता है .
लेकिन अजेक्स वेड का इस्तेमाल कर रहा होता है और वह प्रयोग से वेड में अनोखे बदलाव ला देता है जिसकी उम्मीद खुद उसे नहीं थी,अब वह एक म्युटेंट बन चूका है  ! वेड कीसी तरह एजेक्स के चंगुल से निकल जाता है ,अब उसका जीवन बदल जाता है ,कैंसर तो ठीक हो जाता है किन्तु उसका साईड इफेक्ट उसकी स्किन पर होता है और वह बदसूरत हो जाता है ! लेकिन उसे शक्तियों के रूप में हीलिंग पावर मिलती है जो उसे अविजित बना देती है ! अब उसका मकसद है ,एजेक्स को ढूँढना और उसे खत्म करना .
फिर क्या होता है यह कहानी का बाकि हिस्सा है .
ट्रीटमेंट की बात करे तो फिल्म में रंजक दृश्य है ( जिनमे से कुछ सेंसर भी हो चुके है ) ,साथ में कॉमेडी भी ऑर द्विअर्थी संवाद भी ! फिल्म डार्क कॉमेडी एक्शन का मिला जुला रूप है , एक्शन दृश्य उतने ख़ास नहीं है जितना के एक सुपरहीरो फिल्म से उम्मीद की जाती है केवल शुरुवाती एक्शन सिक्वेंस को छोड़कर , यह डेडपूल की शुरुवाती फिल्म होने की वजह से भी हो सकता है , वैसे इसमें एक्स मेन के कुछ सदस्य भी है जो डेडपूल को एक्स मेन ग्रुप का हिस्सा बनने के पीछे पड़े है .
और डेडपूल यदि एवेंजर्स में दिखे तो हैरानी नहीं होगी ,और ऐसा होगा भी ! जिसका लिंक क्लाइमैक्स की फाईट में दिया गया है ,जिस वर्कशॉप में आखिरी लड़ाई होती है उसमे एवेंजर्स के ‘’शील्ड ‘’ की शिप भी है .
कुल मिला कर मजेदार फिल्म है जो एक्शन और कॉमेडी का बढ़िया तालमेल है , एक अनोखे और अलग तरह के सुपरहीरो को देखना हो तो डेडपूल बढ़िया विकल्प है .
वैसे भी आधे से ज्यादा खाली थियेटर और हर थियेटर में एक या दो शोज ही होने से साफ़ पता चलता हा के अभी भी दर्शको के बड़े हिस्से को ऐसे किसी सुपरहीरो की कोई जानकारी नहीं है .
तीन स्टार

देवेन पाण्डेय 

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

तांडव : शार्ट फिल्म समीक्षा

यूट्यूब पर मनोज बाजपेयी की एक शोर्ट फिल रिलीज हुयी है जिसे बनाया है muvizz.com ने .
गयारह मिनट की इस फिल्म में व्यक्ति की मनोदशा दिखाई गयी है , जिसे अपनी इमानदारी और जमीर को जिन्दा बनाये रखने के लिए कड़ी मानसिक जद्दोजहद करनी पडती है .
ताम्बे एक हेड कॉन्स्टेबल है ( मनोज बाजपेयी ) जो इमानदार कॉन्स्टेबल है ,किन्तु उसकी इमानदारी उसके लिए अभिशाप भी है ! वह अपनी जरूरते पूरी नहीं कर सकता , परिवार को बेहतर भविष्य नहीं दे सकता ! अपनी बेटी को उज्वल भविष्य देने के लिए प्रयासरत ताम्बे के सामने समस्या आती है बेटी के एडमिशन की ,जिसके लिए पांच लाख की आवश्यकता है .
और संयोग से एक मुठभेड़ में बारह लाख रूपये हाथ लगते है ,इतना पैसा देखकर कर मातहतों का ईमान डोल जाता है और सभी ताम्बे को सलाह देते है पैसे बाँट लेने की ! ताम्बे का मन  भी कशमकश में फंसा हुवा है , लेकिन वह मन कड़ा करके पैसा थाणे में जमा करवा देता है जिससे मातहत तो नाराज है ही साथ ही पत्नी भी क्रोधित है के हाथ आया हुवा पैसा छोड़ दिया .
अब ताम्बे तनाव में है ,इमानदारी और बेईमानी के बिच पिस रहा है ! वह फैसला नहीं कर पा रहा है के उसने सही किया या गलत .
उसकी ड्यूटी गणेश विसर्जन पर लगी हुयी है ,हर ओर ढोल ताशे नगाड़े उत्सव हो रहा है , हर कोई उल्लास में दिल खोल कर झूम रहा है , बाहर के शोर में भी ताम्बे का मन  का शोर कम नहीं हो रहा  .अवसाद हावी होने लगता है और अपने आपे से बाहर निकल कर ताम्बे भी इस उल्लास में शामिल हो जाता है बगैर अपने पद की परवाह किये , उसे खुद पता नहीं चलता के उसके कदम क्यों बहकने लगे है ,उस पल वह इमानदारी और बेईमानी से दूर हो जाता है , आम आदमी की समस्याओ को भुल जाता है ,घर परिवार का अवसाद भी भुल जाता है ,केवल रहता है तो उसका मन जो उसे सब भुल कर झुमने पर विवश कर देता है , और जी खोल कर मन का उन्माद शांत करता है .
उसके विडिओ वायरल हो जाते है ,और सस्पेंशन झेलना पड़ता है , वह घर पर आता है और अपने बीवी बच्चो को खुद का विडिओ देखते हुए पाता है ! वह उनकी मुस्कान देख कर खुश हो जाता है .
बढ़िया शोर्ट फिल्म है , बिना अधिक संवादों के केवल दृश्यों से बहुत कुछ कह जाती है ! मनोज बाजपेयी कमाल के अभिनेता तो है ही .


शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

फिल्म एक नजर में : घायल वंस अगेन .

काफी समय से सनी देओल की कोई सफल फिल्म नहीं आई थी ! जो आई भी उनका नाम तक किसी को याद नहीं ,जैसे कंगना रानावत और सनी की ‘आई लव एन वाय ‘’ जो काफी अरसे से डिब्बा बंद थी और जिसने बॉक्स ऑफिस पर पानी तक नहीं माँगा .
आलम यह था के सनी को फिल्मे मिलना ही बंद हो गयी और यह बात खुद सनी ने स्वीकारी ,और एक दमदार कलाकार हाशिये पर धकेल दिया गया ! अब सनी के पास खुद ही फिल्म बनाने के आलावा कोई और चारा नहीं था ,और उन्होंने रिस्क लिया ‘’घायल वंस अगेन ‘’ बना कर जो उनकी ‘’घायल ‘’ का सिक्वल ,( वैसे सही मायनों में सिक्वेल ही है जबरदस्ती लिंक जोड़ने की कोशिश नहीं की गयी है पिछली फिल्म से ) फिल्म अलग है और इसका ट्रीटमेंट पिछली घायल से अलग है तो दोनों की तुलना करना मूर्खता होगी ,सच्चाई यह है के सनी को एक हिट  की अदद जरुरत थी जो उन्हें अपनी जगह पुनःस्थापित कर सके .
कहानी : अजय मेहरा ( सनी देओल ) अपनी चौदह साल की सजा काट कर बाहर निकलता है और अपनी जिन्दगी को मकसद देते हुए ‘सत्यकाम ‘ नमक मिडिया पोर्टल चलाता है जिसमे सनसनी के नाम पर किसी भी मसालेदार खबर को प्रमुखता नहीं दी जाती .
अजय सच के लिए लड़ता है , और इसके लिए कीसी भी हद तक जाने के लिए तैय्यार है ! बलवंत राय की दुश्मनी के चलते वह अपने परिवार को खो चूका है और मेंटल पेशंट रह चूका है , और ‘रिहा ‘ (सोहा अली खान ) उसकी डॉक्टर है जो उसकी देखभाल करती है .
इसी बिच कुछ बच्चो के हाथ एसीपी ‘डिसूजा ‘ (ओम पूरी ) के कत्ल का वीडिओ लगता है ,जिसमे शहर के बिजनेस टायकून राज बंसल ( नरेंद्र झा ) का और उसके बेटे का हाथ है .
इस कत्ल को एक्सीडेंट की शक्ल देकर छुपा लिया जाता है ,किन्तु जब बंसल को पता चलता है के कत्ल के सुबूत इन लडको के पास है तो वह उनकी जान का प्यासा हो जाता है .
अब उन लडको की जान बचाने और बंसल को सलाखों के पीछे करवाने का जिम्मा अजय अपने सर ले लेता है . फिर क्या होता है यही आगे की कहानी है .
फिल्म का ट्रीटमेंट नया है कहानी भले ही नब्बे के दशक की लगती हो ! यहाँ सनी ने बदलाव भी किये है और तकनीक का डील खोल कर इस्तेमाल किया है , फिल्म का फर्स्ट हाफ थोडा धिमा है जो भूमिका बांधने में निकल जाता है , फिल्म तब रफ़्तार पकडती है जब अजय राज बंसल की भिडंत होती है ,और उसके बाद फिल्म किसी होलीवूड एक्शन फिल्म की तरह हैरत अंगेज चेज ,और स्टंट्स के साथ आगे बढती हुयी रफ्तार के साथ खत्म होती है .
फिल्म के एक्शन डिरेक्टर होलीवूड से है जिसका असर साफ़ दिखाई देता है , उन दृश्यों की तारीफ़ करनी होगी जिनमे अजय का पीछा बंसल का विदेशी सिक्योरिटी चीफ करता है ! चाहे वह मुंबई की ट्रैफिक भरी सडको का हो जिसमे अजय सैकड़ो गाडियों से लड़ते भिड़ते हैरतंगेज तरीके से बच निकलता है ,फीर लोकल ट्रेन से कार टकराने का दृश्य हो या चलती लोकल में फाईट का , हर दृश्य तालियाँ और सीटियों का हकदार बनता दिखता है और वही पुराना सनी देओल दिखता है जो अपने घूंसों से दुश्मन को सुन्न कर देता है .
क्लाईमैक्स में बजट की कमी के कारण एनिमेशन का स्तर दिखता है ,जिसमे हैलीकॉप्टर बनावटी दिखाई पड़ता है ! लेकिन इस खामी को नजरअंदाज करना ही सही है ,कुल मिलाकर फिल्म सनी के कंधो पढ़ी टिकी हुयी है , फिल्म को उम्मीद से बेहतर ओपनिंग मिली है जो सनी और उनके फैन्स के लिए ख़ुशी कीबात है ! और काफी सकारत्मक रिव्यू के साथ दर्शको का भी प्यार मिला है फिल्म को ,उम्मीद की जा सकती है के यह फिल्म सनी की एक अदद हिट की कामना पूर्ती करेगा .
 फिल्म देखने लायक है , भावनात्मक दृश्यों का अभाव रहा है और एक अच्छी बात यह के एक्शन फिल्म में यदि जबरदस्ती का रोमांस घुसा दिया जाये ( जैसा के अक्सर बॉलीवूड में होता है ) तो फिल्म का कबाड़ा होना तय है ,लेकिन यहाँ ऐसे चोंचलों से साफ़ बचा गया है ,और रोमांस नाम की चीज ढूंढे नहीं मिलेगी , और गाने भी फिल्म में नदारद है केवल एक गाने ‘लपक झपक ‘ को छोड़ कर ,जो संक्षेप में उन चार युवाओ का इंट्रो करवाने का प्रयास है ,जिससे फिल्म बेवजह नहीं खिचती .
इस उम्र में भी सनी को एक्शन करता देख अच्छे अच्छे एक्शन स्टार्स को जलन हो सकती है .
रिव्यू वगैरह के चक्कर में न पडते हुए फिल्म को इंजॉय कीजिये
साधे तीन स्टार

देवेन पाण्डेय 

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