रविवार, 19 जुलाई 2015

फिल्म एक नजर में : बजरंगी भाईजान


कबीर खान ने बतौर निर्देशक अपनी फिल्म ‘काबुल एक्सप्रेस ‘ से काफी प्रशंषा बटोरी थी , 
कुछ समय बाद वे सलमान के साथ ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ एक था टाईगर ‘
 में नजर आये जो उनकी पिछली फिल्म से एकदम अलग थी और मसालेदार
 एक्शन से भरी थी ! सलमान भी लगातार एक्शन भूमिकाओं में दिखने लगे 
जिसमे वे काफी जमते भी थे एवं हिट भी रहे !
ऐसे में जब सलमान एक एक्शन स्टार के रूप में अपनी इमेज मजबूत कर चुके है , 
‘बजरंगी भाईजान ‘ जैसी भावुक फिल्म करना एक हिसाब से रिस्क ही कहा जायेगा !
 फिल्म रिलीज के पहले काफी विवाद बटोर चुकी है ,कुछ संगठनों को इसके 
नाम पर ऐतराज था ! किन्तु यदि ये फिल्म और उसका कथानक देखा जाये तो 
आपको इसके नाम पर गर्व होगा न की विषाद .
फिल्म की कहानी के केंद्र में है ‘मुन्नी ‘ ( हर्शाली मल्होत्रा ) जो एक छह साल की बालिका है ,
 एवं एक दुर्घटना के कारण बोल नहीं सकती !
उसकी  माता उसे भारत इसी सिलसिले में लेकर आती है ,और वापसी में ‘अटारी ‘ 
स्टेशन पर मुन्नी बिछड़ जाती है .
और मिलती है ‘पवन चतुर्वेदी ‘ ( सलमान खान ) से जो ‘बजरंगी ‘ 
नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है !  पवन एक सीधा साधा व्यक्ति है और बजरंगबली जी का भक्त है ,
 और वह इस बच्ची से पहले तो पीछा छुड़ाना चाहता है 
किन्तु जल्द ही वो इसे वापस अपने घर पहुँचाने की ठान लेता है ! 
उस वक्त उसे पता नहीं होता के मुन्नी पाकिस्तान से है , 
वह एक कट्टर परिवार के साथ रहता है जिसका प्रमुख ( शरत सक्सेना ) उसके 
स्वर्गीय पिता का मित्र है ,और जब उन्हें पता चलता है तो वह उसे पाकिस्तानी
 एम्बेसी छोड़ने के लिए कहते है , किन्तु एम्बेसी के सामने पवन मुन्नी को 
पाकिस्तानी नहीं साबित कर पाता और न ही उसके पास पासपोर्ट है जिसके कारण
  उसे भगा दिया जाता है ! सब रास्ते बंद देख कर पवन स्वयम मुन्नी को पाकिस्तान 
पहुँचाने की ठानता है ,जिसमे उसका साथ देती है ‘रसिका ‘ ( करीना ) 
जिनके यहाँ पवन मेहमान है
अपने प्रयत्नों से पवन पाकिस्तान पहुँच तो जाता है ,किन्तु अवैध प्रवेश  के कारण 
उसे बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ! वहा पहुँचते ही उसे भारतीय जासूस
 घोषित कर दिया जाता है ,और सारी पुलिस और मिलिट्री उसकी तलाश में लग जाती है ,
तब उनका साथ देता है ‘चाँदनवाज ‘ ( नवजुद्दीन सिद्दीकी ) जो एक लोकल पत्रकार है
 और किसी धमाकेदार खबर की तलाश में है ! पहले पहल वह पवन को भारतीय 
जासूस मान लेता है किन्तु उसकी कहानी जानकर वह उसकी सहायता करता है ! 
फिर क्या होता है ,मुन्नी वापस अपने घर पहुँच पाती है या नहीं ? 
पवन सुरक्षित भारत वापस आता है या नहीं ? यही अगली कहानी है ,
जिसे फिल्म में ही देखे तो अच्छा .
कहानी सीधी है ,बिना किसी लागलपेट के ! और दर्शको के मन को छूने वाली , 
सलमान अपनी एक्शन इमेज से विपरीत रहे है ,एकाध एक्शन दृश्य है नाममात्र के ,
वे भी कहानी के हिसाब से सही है ! फिल्म की कहानी के हिसाब से
 यह एक जबरदस्त एक्शन फिल्म हो सकती थी ,किन्तु इससे बचा गया है 
और फिल्म में कही भी रंजकता को स्थान देने के बजे मानवीय मूल्यों को 
अधिक प्राथमिकता दी गयी है .
पवन के चरित्र में सलमान काफी भावुक करते है ,तो मुन्नी के अभिनय में नन्ही 
हर्शाली सबका दिल जीत लेती है ! पूरी फिल्म में बिना एक भी संवाद के वे
 सबका दिल जीत लेती है ! फिल्म में कई भावनात्मक पल है जो बरबस ही 
पलके नम कर देते है तो कभी मुस्कुराने पर विवश कर देते है !
रसिका के अभिनय में करीना मात्र खानापूर्ति करती है ,वैसे भी उनका रोल ज्यादा नहीं है
 मध्यांतर के पश्चात लगभग नदारद रही है ! तो फिल्म में अपनी दमदार छाप छोड़ते है
 ‘नवाजुद्दीन सिद्दीकी ‘ जो एक लोकल मीडियाकर्मी की भूमिका में गुदगुदाते है ,
कही कही तो वे सलमान पर भी भारी पड़ते दिखे है ,
संगीत पक्ष में एकाद हिट गाने ही है ,बाकी बेवजह का कोई गीत हो ऐसा महसूस नहीं हुवा ,
केवल एक युगल गीत को अपवाद रखे तो ,साफ़ सुथरी मनोरंजक फिल्म है जिसे 
पुरे परिवार के साथ देखा जा सकता है ,फिल्म में न तो किसी धर्म का उपहास है 
और न ही किसी मजहब का मजाक ,कोई भाई भरकम उपदेश भी नहीं देती !  
क्लाईमैक्स थोडा नाटकीय हो गया .
चार स्टार

देवेन पाण्डेय 

रविवार, 12 जुलाई 2015

फिल्म एक नजर में : बाहुबली दी बिगनिंग


एस राजामौली इ ऐसे निर्माता निर्देशक है जिनकी फिल्मो की प्रतीक्षा केवल टोलीवूड
 ही नहीं अपितु हिंदी दर्शक भी बेसब्री से करता है ,
उनकी पिछली फिल्मो के बारे में कुछ कहने की जरुरत नहीं है !
बाहुबली जैसी वरिश्द कथानक देने के पश्चात उनका नाम इसी फिल्म से जाना जायेगा 
यह कहना कोई आतिश्योक्ति नहीं होगी .
राजामौली की वर्षो की मेहनत एवं लगन का परिणाम है यह फिल्म ,जिसके हर दृश्य में वह मेहनत साफ़ नजर आती है ! इसे भारत की सबसे महंगी फिल्म बताया गया है जो फिल्म देखने के पश्चात सही भी लगती है ,और ऐसा एक भी दृश्य नहीं दिखता जिसमे ग्राफिक्स बर्बाद किये गए हो ,हां कहानी आपको जरुर नयी न लगे किन्तु इसका भव्य प्रस्तुतिकरण आपकी आँखे चौंधिया देगा और यह वजह पर्याप्त होगा इसे देखने के लिए ! ऐसी फिल्म के लिए दक्षिण के निर्माताओ की प्रसंशा करनी होगी , 

बोलीवूड को न जाने कब ऐसा सौभाग्य प्राप्त होगा .
कहानी है एक ऐसे बालक की जो एक काबिले में पला बढ़ा है जो एक 
विशालकाय गगनचुम्बी जलप्रपात के परीसर में रहता है , उस बालक ‘शिविडू ‘
 ( प्रभास ) के मन में हमेशा से उस जलप्रपात का आकर्षण बना हुवा है ,
वो उस जलप्रपात के ऊपर जाकर देखना चाहता है के वहा कौन रहता है और 
उसका उनसे क्या संबंध है ! उसकी माँ उसके इस व्यवहार से परेशान है और उसे प्रपात 
पर न जाने देने के लिए  लिए तरह तरह यत्न करती है ! 
किन्तु एक दिन ‘शिविडू ‘ अपने प्रयत्न में सफल होता है और जलपर्वत के ऊपर पहुँच जाता है ,
वहा उसकी भेंट होती है ‘अवन्तिका ‘ ( तमन्ना ) से जो एक विद्रोही है, 
और एक विद्रोही संगठन से जुडी हुयी है जिनका राज्य ‘महिष्मति ‘ 
गुलामी की अवस्था में है और उनपर क्रूर शाषक ‘भल्लालदेव ‘ ( राणा दागुबति ) का राज है ,
 शिविडू को अवन्तिका से प्रेम हो जाता है और इसी के साथ उसका संबंध भी खुलता है , 
वह महिष्मती राजपरिवार का वंशज है और उसके पिता ‘बाहुबली ‘ के राज्य के 
साथ ही उसकी ‘माँ ‘  ‘देवसेना ‘ ( अनुष्का ) को भी  भल्लालदेव से स्वतंत्र कराना अब उसकी जिम्मेदारी है ! और यहाँ से खुलता है माहिष्मती इतिहास का रक्तिम अध्याय ,
 जो शिविडू के अतीत के साथ उसके वर्तमान को भी प्रभावित करता है ,
 अब आगे क्या होगा यह प्रश्न तो मात्र एक शुरुवात है !
फिल्म की कहानी एक विचित्र मोड़ पर आकर खत्म होती है , 
दुसरा भाग २०१६ में आना है जिसके पश्चात अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे !
सबसे पहले बात करूँगा फिल्म के ग्राफिक्स की ,जो इतने लाजवाब है के 
आपको लगेगा ही नहीं के आप कोई भारतीय फिल्म देख रहे है ! 
फिल्म के शुरुवाती दृश्यों में विहंगम जलप्रपात का दृश्य देखते ही हृदय कांप उठता है ,
अलौकिक सुन्दरता अप्रतिम दृश्य के दर्शक उस मनोरम वातवरण में खो जाए ! 
फिल्म का फिल्म का प्रथम भाग थोडा सुस्त लगता है , किन्तु मध्यांतर के पश्चात
 फिल्म द्रुत गति से आगे बढती है, फिल्म के अंत में बाहुबली और उसके भाई ‘भल्लाल देव ‘ 
की एक आदिम काबिले की विशालकाय सेना के  साथ युद्ध के दृश्य आपको 
होलीवूड के समकक्ष दीखते है ,कुछ जगहो पर चर्चा थी के इसके युद्ध दृश्य हाल ही में आई 
‘हरक्युलिस ‘ के युद्ध दृश्यों से प्रभावित है !  किन्तु आप फिल्म देखिये और आपको यह महसूस होगा के युद्ध के दृश्य होलीवूड की उस फिल्म के दृश्य से कई गुना अधिक प्रभावी है बेहतरीन है ! 
वैसे भी यह फिल्म काफी वर्षो से बन रही है और इसकी तुलना इससे नहीं की जा सकती ! 
कुछ दृश्यों में एवं स्टंट्स में अंग्रेजी फिल्म 300 की झलक दिखती है ,
किन्तु उनकी संख्या नगण्य है ,आसानी से नजरअंदाज कर सकते है !
फिल्म की लागत का 85 प्रतिशत भाग फिल्म के ग्राफिक्स पर खर्च किया गया 
जिसका असार परदे पर साफ़ दिखता है और उसकी भव्यता झलकती है ! 
 आजकल थ्रीडी फिल्मो का चलन भी जोर पकड रहा है किन्तु यह फिल्म बिना थ्रीडी 
के भी बेहतरीन लगती है जिसे किसी थ्रीडी टेक्नोलोजी की जरुरत नहीं है !
 फिल्म का कमजोर पक्ष केवल इसके गीत कह सकते है 
( जो शायद हिंदी डब के कारण उकताहट भरे प्रतीत होते है ) जो न केवल फिल्म को बेवजह 
खींचते है बल्कि फिल्म की गति को भी बाधित करते है,केवल कैलाश खेर एवं शान के गाये गाने ही नेपथ्य में जमते है जो कहानी को आगे बढाते है  !
एक्टिंग में प्रभास ,राणा प्रभावी रहे है तो अनुष्का एकदम अलग और ग्लैमर लैस किरदार में है , 
तमन्ना का एक अलग रूप देखने को मिलता है किन्तु कही कही अति
 की शिकार हो गयी लगता है ,’कट्प्पा ‘ के रूप में अभिनेता ‘सत्यराज ‘ भी प्रभावित करते है ,
 एक किरदार के जिक्र के बगैर फिल्म अधूरी है वो है महारानी बनी ‘राम्या कृष्णन ‘ 
जो एक क्रूर महरानी से कब एक ममतामयी माँ में तब्दील हो जाती है इसका पता ही नहीं चलता !,
जो एक तरफ से कुशल राजनीतीज्ञ है तो दूसरी ओर सौम्य हृदय माँ .
एक ख़ास बात और हाल ही मे रिलीज हुई 'जुरासिक वर्ल्ड' और 'बाहुबली' फिल्मों मे एक ही विजुअल इफैक्ट टीम ने काम किया है ! बाहुबली को 4000 सिनेमा घरों मे रिलीज किया गया है जिनमें 135 अकेले अमेरिका मे हैं  बाहुबली स्क्रीन काउंट के लिहाज से अब तक की सबसे बड़ी डबिंग की गई फिल्म है, बाहुबली फिल्म ऐसी पहली भारतीय फिल्म है जो भाषा के बंधन को तोड़कर पूरे देश में चर्चा एवं उत्सुकता बनाने में सफल हुयी है ,ओपनिंग के लिहाज से ये भारतीय फिल्मो की सबसे बड़ी ओपनिंग है ! पहले दिन के आंकड़े 60 करोड़ से 75 करोड़ तक बताये जा रहे है ,यदि यह सत्य है तो शायद ही कोई और भारतीय फिल्म अरसे तक इस रिकॉर्ड को ध्वस्त कर पाये .
फिल्म दो भागो में बनी है जिस कारण कथानक सम्पूर्ण नहीं है , और यह मात्र शुरुवात थी ! जब शुरुवात ऐसी है तो अंत कैसा होगा ? यह उत्सुकता का विषय है .
कुल मिला कर एक भरपूर पैसा वसूल फिल्म है ,जिसे निसंकोच होकर देखा जा सकता है !

मनोरंजन के लिहाज से और ग्राफिक्स के लिहाज से फिल्म को पांच में से पांच अंकन देने का कोई कारण नजर नहीं आता .
देवेन पाण्डेय 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

पुस्तक समीक्षा : बनारस टाकिज


इस पुस्तक का मैंने हाल ही में बड़ा नाम सुना था ,

काफी चर्चा हो रही थी शोशल जगत की आभासी दुनिया में !हम तो ठहरे पुस्तक प्रेमी ,तो भला हम इससे कैसे अछूते रहते भला ! वैसे भी आजकल हिंदी लेखन भी अपनी पुख्ता पहचान बना रही है ,जो कुछ समय पहले तक लुप्तप्राय समझी जाती थी ,किन्तु नए लेखको ने इसमें जीवन का संचार किया है ! नए लेखक कुछ नया लिखने और उसकी नयी प्रस्तुती जो के आजके युवा मन को छू जाए और हल्का फुल्का मनोरंजन भी करे के प्रयास में ज्यादा रहते है ! और अधिकतर उनमे सफल भी रहते है ,वैसे भी कुछ समय पहले या कहू एक –दो वर्ष पहले ही हिंदी के नाम पर मूल ‘अंग्रेजी ‘ पुस्तक का हिंदी रूपांतर ही मिलता था ! हिंदी में लिखा गया उपन्यास तो क्वचित या न के बराबर था , यहाँ पल्प फिक्शन के धुरंधरों की बात नहीं करूँगा जो हमेशा से अपनी शैली और जेनर में अव्वल रहे है और रहेंगे ! या यु कहू के इनके बाद भारतीय पल्प फिक्शन ,क्राईम राईटिंग अनाथ हो जाएगी तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ,खैर बात कर रहा हु नए लेखको की जिन्होंने अपनी लेखन शैली पाठको को प्रभावित किया है , तो हमने भी नयी पीढ़ी के लेखको को समझने एवं कुछ नया पढने की गरज से ‘भगत ‘ जी को पढना शुरू किया और जल्द ही मन उकता गया , पता नहीं क्यों इनमे वो गहराई नहीं मिल पा रही थी जो होनी चाहिए ! मसालेदार कहानी ,रोमांस ,खुलापन ,कॉलेज युवा ,कैम्पस ,बस उनका हर उपन्यास इन्ही चीजो के चारो ओर सिमट के रहा गया ,जो शुरू शुरू में अच्छा लगा किन्तु जल्द ही उकताहट का कारन बनने लगा तो हमने तौबा कर ली !इसी के साथ कुछ अन्य लेखको के हिंदी प्रयास देखे जिन्होंने बिना किसी शोर शराबे और विग्यापनो के चुपचाप आकर और अपनी दमदार उपस्थिति प्रस्तुती करके अपनी लेखन शैली और प्रस्तुती की खूब वाह वाही बटोरी .गत दिनों इसी कड़ी में तीन पुस्तके खरीदी ,जिनमे क्रमवार है ‘जिंदगी ऐस पैस ,बनारस टाकिज ,और इश्क में शहर होना !पहली फुर्सत में ही ‘बनारस टाकिज ‘ निपटा डाली ,अन्य अभी कतार में है और खाली क्षणों की प्रतीक्षा में भी !तो ‘बनारस टाकिज ‘ कहानी है कुछ दोस्तों की जो ‘भगवानदास होस्टल ‘ में है ! और अपनी वकिली पढ़ाई निपटा रहे है ! इनमे एक से एक नमूने भरे पड़े है ,कुछ सीनियर कुछ जूनियर, कही रैगिंग का डर तो कही नए दोस्त जो न चाहते हुए भी दोस्त बन गए  ! जिंदगी बेफिक्र सी लापरवाह आवारा हवा के झौंको की तरह बह रही है ! यहाँ ‘बुद्धिजीवी ‘ कहना आपको ‘गंवार ‘ की श्रेणी में शामिल कर सकता है तो आप यहाँ ‘बी .डी ,जीवी ‘ शब्द का ही प्रयोग करे ,इस होस्टल में एक है ‘जयवर्धन जी , जो हर बात में ‘घंटा ‘ शब्द का प्रयोग करते है , फिर मिलना होगा ‘अनुराग डे ‘ से जो जो विदेशी नाम से प्रसिद्ध है , पुरखे बंगलादेशी रहे होंगे ,ये दादा नाम से जाने जाते है ! फिर है ‘सूरज ‘ जो बाबा भी कहलाते है , रामप्रताप उर्फ़ दुबे जी हर जुगाड़ में माहिर ,हर मर्ज की दवा इनके पास है ! आगे ज्ञान के सागर ‘पाण्डेय जी ‘ भी मिलेंगे , ‘नवेंदु ‘ भी है जो चलता फिरता विकिपीडिया है ‘फिल्मो ‘ का ,और इनकी हर बात फ़िल्मी है !और ये सब है अपने ‘बनारस ‘ में , भोलेनाथ जी की नगरी !बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के होस्टल में !सभी किरदार जाने पहचाने है ! क्योकि आप इन सबसे मिल चुके होंगे पहले भी ,स्कूल में ,कॉलेज में , और सबसे  डरावना और उकताहट भरे शब्द ‘ फैकल्टी ‘ में ! ( इस शब्द से सबसे ज्यादा चिढ और खीज होने लगी है ‘भगत ‘ जी के कारण )पता नहीं क्यों आजकल हर पुस्तक में इस शब्द का वर्णन अवश्य होता है , जहा इस शब्द का जिक्र आया वहा मूड खराब हुवा ही समझो ! किन्तु कहानी का प्रस्तुतिकरण जल्द ही फैकल्टी भुलाने में सहायक बनता है और हम बनारसी छात्रो में घुल मिल जाते है ! उनकी रोजमर्रा की समस्याए ,पढाई की चिंता ,सेमेस्टर का तनाव , चाय की गुन्टी और दुनिया भर की बकलोली ! एकदम देसी मिजाज ! इस उम्र में जो हर युवा की समस्या है वह इनकी भी है जिन्हें ये कोई समस्या नहीं मानते ,वह है लापरवाही और गैरजिम्मेदारी , जिसे लिया हल्के में ही जाता है ,तब तक ,जब तक के कोई बड़ा सबक न मिल जाए !तो ऐसा सबक कैसे मिले ?  अब सब यही चेप देंगे तो पुस्तक में का ‘सम्पादकीय ‘ पढोगे ? ( वो तो है ही नहीं पुस्तक में )हां जिन्हें सुखा सुखा पसंद नहीं है ,उनके लिए ‘लभ इश्टोरी ‘ भी है !  माने हर किसी के लिए कुछ न कुछ है , किन्तु एक बात काफी अखरती रही जिसके चलते हम पृष्ठ कुतरते रहे ,हर दो तीन पृष्ठों के पश्चात ! वह थी गालियाँ , दोस्तों में गालियाँ चलती है किन्तु इतना अधिक भी क्या गलियों का आग्रह ? क्या बनारस की पृष्ठभुमी का उल्लेख आते ही ‘गालियाँ ‘ आवश्यक हो जाती है ?  जो बनारस के नहीं है वे इन्ही पुस्तको से बनारस को जानते है ! ऐसे में क्या बनारस में ‘गालियाँ ‘ प्यार दर्शाती है ,दर्शाकर भ्रामकता फैलाना सही है ? ( माना लेखक का यह उद्देश नही रहा हो ,) क्या हम इस तरह से बनारस का एक विपरीत स्वरूप नहीं प्रस्तुत कर रहे ? सब कुछ सही था किन्तु यही बात कचोटती रही और जहा भी गाली दिखी वहा कुतर दिए ! अब पुस्तको के साथ ऐसा करना मुझे अच्छा नहीं लगता किन्तु रोक न पाया ,उम्मीद करता हु के मै लेखक की अन्य किसी विषय पर आधारित उपन्यास भी जल्द ही पढू ! ( जब प्रकाशित हो ),और उसमे कुछ ऐसा पढू जो अब तक कही और नही पढ़ा , ऐसा न लगे के विषय वही पढ़ रहा हु बस लेखक ‘भगत ‘ के बजाय कोई और है . मिली जुली प्रतिक्रिया रही हमारी .

सोमवार, 6 जुलाई 2015

फिल्म एक नजर में : मैड मैक्स : फुरी रोड


मैड मैक्स से भला कौन नहीं परिचित है , 
मैड मैक्स का नाम आते ही आँखों के सामने ‘मेल गिब्सन ‘ 
की एक माचो हीरो वाली इमेज तैर जाती है ! 
जिसकी तीन भागो की श्रृंखला ने अपार कामयाबी और प्रसिद्धि पाई .
तीसरी श्रृंखला के एक अरसे बाद चौथा भाग ‘मैड मैक्स : फुरी रोड ‘ रिलीज हुवा है ,
जो इस सीरिज के प्रशंषको के लिए एक तोहफे के समान है !
कहानी है उस तबाह हुयी दुनिया की ,जहा हैड्रोजन बम के विस्फोट के पश्चात
 हर चीज की कमतरता है ,जमीन बंजर है ,हरियाली गायब है !
 पानी की कमी के कारण मानवता नाश के कगार पर है और पृथ्वी 
एक मरुस्थल में तब्दील हो चुकी है ,ऐसे में ‘मैक्स ‘ ( टॉम हार्डी ) 
अब भी अपनी पुरानी यादो से पीछा छुडाने की गरज से बिना मकसद की
 जिन्दगी लिए दरबदर भटक रहा है !
उस मरुस्थल में एक तानाशाह का राज है ‘इमोर्टन जोई ‘ ( ,जिसके पास ‘पानी ‘ है ! 
और इसी वजह से वो सर्वेसर्वा बना हुवा है , वह मानवता की नस्लों को तबाह कर रहा है
 और नयी पीढ़ी के युवाओ की एक सेना का मालिक है ,
जो के पूरी तरह से जंगी युवा है जंग ही जिनका जीवन है ,उद्देश है ! 
उसके इस उद्देश की पूर्ति के लिए उसके पास कई बीविया है ,
जिनसे वह और योद्धा चाहता है !
उसकी एक दलपति ‘फ्युरोशिया ‘ ( चार्लीज थेरोन ) , ‘जोई ‘ के
 कब्जे से उसकी बीवियों को छुड़ा लेती है और फरार हो जाती है ! 
इसी दौरान मैक्स भी बंदी बना लिया गया है जोई की सेना द्वारा किन्तु वह
 इन्हें चकमा देकर भाग निकलता है और उसकी मुलाक़ात होती है ‘फ्युरोशिया  ‘ से !
 अब मैक्स और फ्युरोशिया का मकसद एक हो जाता है ,
अब जोई अपनी पूरी पागल योद्धाओ की सेना के साथ फ्युरोशिया के पीछे पड़ा है ,
और शुरू होती है एक न खत्म होनेवाले युद्ध का सिलसिला ,
जिसमे हार या जीत का अर्थ किसी एक का नाश है !
जहा इस सीरिज की पहली तीन फिल्मे ‘पेट्रोल ‘ के लिए जंग के ऊपर आधारित थी !
 वही फिल्म का चौथा भाग ‘पानी ‘ और ‘ लिंग अनुपात ‘ पर आधारित है ,
 फिल्म की जान इसका एक्शन है जो एक्शन प्रेमियों की कसौटी 
पर एकदम खरा उतरेगा .
हम मैड मैक्स का नाम लेते ही इसके मुख्य पात्र मैक्स के रूप में मेल गिब्सन को 
देखने के इतने आदि हो चुके है के ,
यह शंका घर कर जाती है के टॉम हार्डी इस किरदार को ढंग से निभा पायेंगे या नहीं ,
 किन्तु यह शंका एकदम निर्मूल साबित होती है जब आप फिल्म देखना शुरू करते है ! 
तब आप टॉम हार्डी या मेल गिब्सन को यद् नहीं रखते ,याद रहता है तो
 सिर्फ मैक्स जो आणविक युद्धों से तबाह और विकिरणों से ग्रस्त इस धरती पर मौजूद विभिन्न विकारों एवं मानसिक विकृतियों वाले समाज से लड़ रहा है ,
पूरी फिल्म में बमुश्किल से कुछ ही संवाद मिले है उसे ,इसके बावजूद वह सब पर भारी है ! 
फिल्म का दुसरा मुख चरित्र है फ्युरोशिया का जिसे चार्लीज थेरोन ने बखूबी निभाया है ,
कही कही तो वह मैक्स के किरदार पर भी हावी हो जाती है . फिल्म पूरी तरह से एक्शन के तानेबाने पर है ,ऐसा एक्शन जो आपको पलके झपकाने तक का भी अवसर न दे ! रेगिस्तान में सांसे रोक देनेवाले चेजिंग दृश्य वाकई अब तक के बेस्ट चेजिंग दृश्यों में से एक है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी ! स्पेशल इफेक्ट्स और ग्राफिक्स का शानदार प्रयोग है जिसे देख दांतों तले उंगलिया दबा लेंगी दर्शक .
शुरुवाती एक्शन दृश्यों में वह दृश्य बहुत ही लोमहर्षक बना है जिसमे वार ब्वायज द्वारा फ्युरोशिया एवं मैक्स का पीछा करने के प्रयास में पूरी टोली ‘रेत के भयानक तूफ़ान ‘ में फंस जाती है ! हद दर्जे का पागलपन एवं जुनून , फिल्म शुरू से लेकर अंत तक एक्शन से ही भरी है ,जिसमे दोहराव और उबाऊ क्षण बिलकुल भी नहीं आते ! और एक से बढकर एक स्टंट और ग्राफिक्स देखने को मिलते है !
कहानी दो लाईन की है ,बिलकुल सीधी और सपाट ! 
वैसे भी ये सीरिज एक्शन के लिए जानी जाती है ! और नब्बे एवं अस्सी के दशक के तुलना में २०१५ के ‘मैड मैक्स ‘ का एक्शन जानदार होना ही है .
कुल मिला कर यह फिल्म वैसे भी केवल एक्शन और स्टंट के दीवाने दर्शको के लिए ही है ! 
इसलिए ये शायद अन्य दर्शक वर्ग को इतनी पसंद न आये किन्तु इस जेनर के दीवानों की आशाओं पर यह फिल्म शत प्रतिशत खरी उतरती है ,काफी अरसे बाद एक ऐसी जबरदस्त एक्शन फिल्म आई है जो साँसे रोके थियेटर में बैठने को मजबूर कर देती है .
चूँकि फिल्म केवल एक्शन जेनर के लिए ही बनी है 
इसलिए इसे इस जेनर के लिए पुरे स्टार्स दिए जा सकते है !

देवेन पाण्डेय 

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