गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

फ़िल्म एक नजर में : अग्ली

फ़िल्म एक नजर में : अग्ली
 अनुराग कश्यप का नाम इंडस्ट्री में साहसिक फिल्मकारों में गिना जाता है,इनकी बनाई फिल्मो का एक अलग ही दर्शक वर्ग होता है , अनुराग कभी भी बेवजह के चालु मसालो के चक्कर में नहीं पड़े और पूर्ण रूप से कहानी के साथ न्याय किया है । "ब्लैक फ्राइडे, नो स्मोकिंग,गैंग्स ऑफ़ वासेपुर,गर्ल इन यलो बूट्स, शॉर्ट्स, जैसी अलग फिल्मो से इन्होंने एक मजबूत दर्शक वर्ग खड़ा किया है । इनकी फिल्में कभी प्रिडक्टिबल नहीं रही ,दर्शक फ़िल्म के शुरुवात से आगे की घटनाओ का अंदाजा नहीं लगा सकता ।
ईसी तरह की फ़िल्म है "अग्ली" जो एक बच्ची के अपहरण को आधार बना कर लिखी गयी है । कहानी का केंद्र अपहरण है, किन्तु कहानी में मौजूद हर शख्स कैसे बदलता है यह फ़िल्म का एक शशक्त पहलु है ।
कहानी की बात करते है ,राहुल एक स्ट्रगलर है जो हीरो बनने की चाह में है । पैसो की तंगी और खराब परिस्थितियो के चलते उसका तलाक हो चूका है। वह अपने मित्र "चैतन्य" के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए प्रयासरत है,राहुल की पत्नी ने दूसरी शादी की है,और उसका पति एक सख्त ऑफिसर है "शौमिक"( रोनित रॉय) । अपनी पत्नी से राहुल को एक बेटी है "कली" जिसका अपहरण हो जाता है, और "शौमिक" संदेह में राहुल और चैतन्य को प्रताड़ित करता है । शौमिक की उसकी बीवी से भी नहीं बनती,किन्तु फिर भी वह कलि की तलाश  युद्धस्तर पर कर रहा है,कहानी में कई किरदार आते है राहुल,राहुल का दोस्त"चैतन्य", शौमिक,उसकी पत्नी ,उसका साला जिससे शौमिक परेशान है ।
अपहरणकर्ता की तालाश में हर चरित्र बदलते जाता है । हर किरदार एक नकारात्मक छवि लिये हुए है जो अवसर की ताक में लगा रहता है।
फिर क्या होता है? कौन अपहरण कर्ता निकलता है यह भी काफी उलझन भरे तरीके से प्रस्तुत किया गया है । क्लाइमेक्स वास्तविकता का क्रूर रूप दिखाती है, कहानी का अंत अनपेक्षित है और दर्शको को विचलित कर सकता है ।
फ़िल्म के किसी भी किरदार के संबंध एकदूसरे से साफ़ नहीं है,हर कोई स्वार्थी नजर आता है, अभिनय की बात करना वो भी अनुराग कश्यप की फ़िल्म में ? भाई वो तो पत्थरो से भी अभिनय करवा ले । शौमिक के किरदार में रोनित क्रूर रहे है ,अनुराग की ही फ़िल्म "उडान" के किरदार से दो कदम आगे नजर आते है । फ़िल्म में एक जगह दृश्य है जब राहुल और चैतन्य बेटी के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस सटेशन जाते है तब पुलिसिया पूछताछ से राहुल और चैतन्य कम दर्शक ज्यादा खीजते नजर आएंगे । अनुराग बारीक सी बारीक चीजो को भी महत्वपूर्ण बना देते है,कहानी धीमी होने के बावजूद कसावट लिये हुये है । कुछ जगहों पर गालियों का प्रयोग अत्यधिक हो गया है, वैसे भी फ़िल्म में राहुल और उसकी पत्नी के संबंधो को समझने के लिये एक अलग से 5 मिनट का प्रोलोग ऑनलाईन रिलीज किया गया है। यह भी एक अनूठा प्रयोग किया है अनुराग ने ,फ़िल्म से इतर कुछ दृश्यों को रिलीज करना जो फ़िल्म में नहीं है । यदि आपने इसे नहीं देखा तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता फ़िल्म देखते वक्त,यदि देखा है तो फ़िल्म को समझने में अतिरिक्त सहायता मिलेगी ।
फ़िल्म पूरी तरह से डार्क है,कही भी हल्के पल नहीं है । एक भी गाना नहीं है,इसके बावजूद फ़िल्म दो घण्टे नौ मिनट की है ।
अनुराग कश्यप के फैन्स जरूर पसंद करेंगे,मसाला की चाह रखनेवालों को निराशा होगी ।
तीन स्टार

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

फिल्म एक नजर में : पि.के .




राजकुमार हिरानी अनूठे विषयों के लिए जाने जानेवाले फिल्मकार है ,
और आमिर खान फिल्म इंडस्ट्री में अपने परफेक्शन के लिए मशहूर है !
 तो लाजमी है जब दो धुरंधर मिल जाये तो कुछ उम्दा निर्माण देखने को मिले .
ऐसा ही कुछ है फिल्म ‘पि .के ‘ के साथ ,
जो बेशक एक बढ़िया फिल्म है अपनी कुछ विसंगतियों के बावजूद !
 फिल्मो में एलियन जैसी किसी चीज की उपस्थिति में उसे जनमानस के
 साथ बांधे रखना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है ,जिसे बखूबी निभाया था 
राकेश रोशन ने ‘कोई मिल गया ‘ का निर्माण करके ! 
किन्तु पि के का एलियन अनूठा है ,वह भोजपुरी बोलता है
 ( जाने क्यों ‘अवधि ‘ को भोजपुरी बता दिया जाता है ,जबकि नितांत अलग है )
,भगवान की खोज में है !
उसके अपने कुछ मासूम सवाल है जिन्हें सुनकर कोई सोच में पड़ जाता है ,
तो कोई बिदक जाता है ,
फिल्म की शुरुवात एक एलियन से होती है जो पृथ्वी पर निर्वस्त्र आता है ,
उसके तन पर सिर्फ एक ही चीज है और वह है उसका रिमोट जो एक
 लोकेट की शक्ल में है ! कीन्तु एक चोर उसका लोकेट छीन कर भाग जाता है ,
जिसके बाद वह असहाय हो जाता है क्योकि उस रिमोट के 
बगैर वह अपने यान को बुला नहीं सकता ! 
वह अपने रिमोट के लिए दर दर भटकता है ,तब अपनी खोज के 
दौरान वह भोजपुरी ( कथित ? )भाषा को आत्मसात कर लेता है ,
जो उसकी भाषा बन जाती है संवाद की ! उसकी उल जलूल हरकतों के
 कारण उसका नाम ‘पीके ‘ पड़ जाता है ! 
वह यह देख कर हैरान हो जाता है के कोई ‘भगवान ‘ है जिसपर यहाँ के लोग
 विश्वास रखते है के वह सब ठीक कर देगा ,भोला भाला पीके भी अपने रिमोट के लिए हर भगवान की खोज में निकल जाता है ,कभी चर्च में नारियल तो कभी मस्जिद
 में वाईन लेकर जाता है ! जिसमे कई बार वह पिटते पिटते बचता है ,
वह उलझन में है के लोग कहते है भगवान ने सबको बनाया तो सब भगवान को 
अलग अलग तरीको से क्यों मानते है ?
तब उसकी मुलाक़ात होती है ‘जग्गू ‘ ( अनुष्का शर्मा ) से ,जो एक रिपोर्टर है ,
और पीके से प्रभावित है ! उसे पता चलता है के पीके एक एलियन है और वह अपने रिमोट की तलाश में है ,तो वह उसका साथ देती है !
इसी दौरान पता चलता है के एक ढोंगी बाबा ‘तपस्वी ‘ ( सौरभ शुक्ला ) के पास पीके का रिमोट है जिसे वह ‘भगवान शिव ‘ के डमरू का अंश बताकर चंदा उगाही कर रहा है ! पीके धर्म के पाखंड की पोल खोलने का निर्णय लेता है ,फिर क्या होता है ? पीके अपना रिमोट वापस ले पाता है या नहीं ? धर्म के आडम्बर के खिलाफ क्या उसकी कोशिशे रंग लाती है ? यह फिल्म में देखना दिलचस्प रहेगा .
फिल्म का विषय अनूठा है ,पीके का किरदार बेहद मासूम और प्यारा है जिससे दर्शक जुडाव महसूस करता है ! कभी वह हंसने पर विवश कर देता है तो कभी आँखे नम कर देता है ,आमिर ने पीके के किरदार को पूरी जीवटता से निभाया है !फिल्म की पटकथा अपने निर्देशन के मुताबिक़ ही कसी हुयी है ,किन्तु फिल्म का मध्यांतर के बाद सिर्फ तपस्वी पर केन्द्रित होकर रह जाना बहुत अखरता है ,ऐसा लगता है मानो फिल्म अचानक से दुसरे ढर्रे पर चली गयी हो ! और क्लाईमेक्स भी जल्दबाजी में निपटाया गया प्रतीत होता है ,खैर ,बात करे अभिनय की तो जग्गू के किरदार में अनुष्का अपना प्रभाव छोडती है ! तो छोटे छोटे किरदारों में  ‘सुशांत राजपूत ,भीष्म साहनी ,बोमन इरानी ,संजय दत्त ,सौरभ शुक्ला ‘भी छाप छोड़ जाते है ! 
फिल्म बढ़िया है ,ढोंग पाखंड की पोल खोलती है लेकिन कई जगहों पर
 फिल्म पक्षपाती सी हो जाती है ! ढोंगी, पाखंडी, धर्म को लेकर आम आदमी को 
भ्रमित करनेवाले हर धर्म में मौजूद है ,
किन्तु फिल्म को सिर्फ किसी एक धर्मविशेष के बारे में केन्द्रित करना पक्षपात ही लगता है ! 
ऐसा नहीं है के उनका जिक्र नहीं किया गया है ,एक दृश्य है जब ट्रेन की बोगी के विस्फोट से पीके विचलित हो जाता है ,जिसे आतंकवादियों ने किया है ! 
जिसके बारे में पीके कहता है ,’ हर कोई अपने भगवान को बचाना चाहता है ,धर्म को बचाना चाहता है! कोई ट्रेन को उड़ाकर तो कोई पत्थर को भगवान बनाकर ‘
किन्तु यह सिर्फ खानापूर्ति मात्र लगती है ! कई समीक्षकों ने कहा है यदि आप फिल्म देखते समय अपनी आस्था को साथ लेकर जायेंगे तो आपकी आस्था को ठेस अवश्य लगेगी ! तो उनसे प्रश्न यह है के आस्था को कहा रख के जाए ?
क्या आस्था कोई परे रखने वाली या साथ न ले जानेवाली चीज है ? और क्यों सिर्फ एक धर्म विशेष ही अपनी आस्था को परे रखे ? ऐसा आप इसलिए कहते हो क्योकि वह लचीला है और आपको कुछ भी कहने सुनने का हक़ देता है ,यही बात यदि दुसरे धर्म की होती तो आपको आस्था कही रखने के बजाय शायद फिल्म को ही कही और रख के आना पड़ता ! ऐसा क्यों लगता है के सुधार की आवश्यकता मात्र इसी धर्म को है ? आपको नहीं लगता के आधी दुनिया को नरक बना देनेवाले और अपने धर्म के आलावा किन्ही और धर्म को न बर्दाश्त करनेवाले कट्टर पंथियों को सुधार की आवश्यकता है ज्यादा है ? किन्तु उस विषय पर गहनता से और ईमानदारी से कुछ बनाने दिखाने का साहस बोलीवूड में नहीं है ,
बेशक "पीके" एक बढ़िया फ़िल्म है । किन्तु आमिर भी हिम्मत उतनी ही दिखा
 पाये ढोंग पाखंड के खिलाफ जितनी उनकी हिम्मत थी । 
धर्म के सबसे बड़े आडम्बर के खिलाफ कुछ बोलने दिखाने की कुव्वत उनमे नहीं थी
 जिसकी उपज आज आतंकवाद है ।
पूरी तरह पक्षपाती फ़िल्म । लोग भी पता नहीं क्यों ऐसे समय में हद से ज्यादा समझदार बन जाते है या फिर हवा के रूख में बहने लगते है । 
भाई सब जिसकी तारीफ़ करे उसमे कुछ गलत मिलना भी तो आपकी मूर्खता या 
अज्ञानता ही कही जायेगी न ?
और कुछ लोग बेवजह फूल के कुप्पा हुए जा रहे है के आमिर ने भोजपुरी को सम्मान दिया 
बोलकर ( जबकि वह अवधि थी वो भी अशुद्ध ) तो भइया मुगालते में मत रहो कोई सम्मान वम्मान नहीं यह सिर्फ व्यापार है ।
फ़िल्म बढ़िया है लेकिन मैंने देखते वक्त कुछ आडम्बरो की बखिया 
उधेड़ने की उम्मीद पाली थी । लेकिन ऐसा नहीं हुवा क्योकि शायद अपनी हद उन्हें
 पता है के कहा बोलना है और कहा नहीं ।
गलत चीजो का विरोध करना या सुधार की उम्मीद करना गलत नहीं है किन्तु
 यह तब गलत हो जाता है जब आप किन्ही का बचाव और किन्ही की गलतिया सुधारने का प्रयत्न या दिखावा करना शुरू कर देते हो

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

फिल्म एक नजर में : एक्शन जैक्सन

निर्देशक : प्रभु देवा
कलाकार : अजय देवगन ,सोनाक्षी सिन्हा ,आनंद राज ,यामी गौतम

प्रभु देवा अपनी अलग तरह की एक्शन फिल्मो के लिए मशहूर है जो मॉस अपीलिंग होती है ,
वांटेड हो या रावडी राठोड ,दोनों फिल्मे चालू मसालों और एक्शन से भरपूर थी
जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही !
प्रभु देवा ने हल ही में एक्क्षन इमेज के विपरित एक रोमांटिक फिल्म बनाई थी ‘रमैय्या वस्तावैय्या ‘
,जिसकी कमजोर कहानी और निर्देशन की वजह फिल्म औसत रही !
शायद इसीलिए प्रभु देवा ने पुनः एक्शन की और लौटने का मन बनाया और
 ‘एक्शन जैक्सन ‘ के रूप में फिर से एक एक्शन से भरपूर मसाला फिल्म प्रस्तुत है !
लेकिन इस बार वह बात नहीं बनी ,कुछ कमी अवश्य रह गयी ,मसाले कुछ ज्यादा ही तीखे हो गए !
विशी ( अज्जी देवगन ) एक मवाली है ,जो कुछ प्पैसो के लिए किसी की भी धुनाई कर सकता है !
किन्तु उस मवाली का भी एक अच्छा पहलु है के वहा सह्रदय व्यक्ति भी है जो किसी के दुःख से पसीज जाता है !
एक दिन एक अज्जिब घटनाक्रम में उसकी मुलाकात ‘ख़ुशी ‘( सोनाक्षी ) से होती है जो विशी को नग्न अवस्था में देख लेती है,दरअसल वह एक फूटी किस्मत की लडकी है किन्तु विशी से मुलाक़ात के
 बाद उसकी किस्मत बदल जाती है जिसका जिम्मेदार वह विशी को उस हालत में देखना मानती है
और वह अपना लक बदलने के लिए फिर से उसे उसी हालत में देखना चाहती है ( मूर्खता की हद है ) कुछ घटनाक्रम के पश्चात उसे विशी से प्यार हो जाता है ,लेकिन कहानी में तब ट्विस्ट आता है जब ‘एजे ‘ ( अजय देवगन दोहरी भूमिका में ) का प्रवेश होता है !
उधर कुछ गैंग्स्टर्स विशी के पीछे पड़ जाते है ,तब एजे की हकीकत विशी के सामने खुलती है ! और एजे विशी की मदद मांगता है ! दरअसल विशी एक इंटरनैशनल क्रिमिनल ‘जेवियर ‘( आनंद राज )
 के लिए काम करता था,और उस पर जेवियर की बहन ‘मरीना ‘ आकर्षित हो जाती है
और वह उसे हर हाल में पाना चाहती है ,लेकिन एजे ‘अनुषा ‘ ( यामी गौतम )
से प्यार करता है और वह ‘मरीना ‘ का प्रस्ताव ठुकरा देता है ,
जिसकी वजह से मरीना और जेवियर 'अनुषा ' की जान के पीछे पड़ जाते है ,
और एजे को मुंबई आने पर विवश होना पड़ता है !
अनुषा पर हुए जानलेवा हमले की वजह से वह अंडरग्राउंड है और अनुषा का इलाज करवा रहा है !
 वह कुछ समय के लिए विशि को अपनी जगह जाने को कहता है !
फिर क्या होता है यही बाकी कहानी है !
कहानी इतनी बिखरी हुयी है के सिर्फ टुकड़ो में ही अच्छी लगती है ,
एक जगह पर सोनाक्षी का संवाद है 'पहले यह 'सिंघम ' था लेकिन बदलने के बाद 'चिंगम ' बन गया ''
! यह संवाद इस फिल्म के लिए भी सटीक बैठता है ,चूँकि फिल्म सिर्फ सौ करोड़ी दो सौ करोड़ी क्लब के लिए ही बनायी गयी थी इसलिए शायद कहानी से कोई फर्क नहीं पड़ता ,
वैसे फिल्म को उम्मीद के मुताबिक बम्पर ओपनिंग नहीं मिली ,
पहले दिन तरह चौदह करोड़ का आंकड़ा ही पार कर पायी ,फिल्म में बैकग्राउंड बहुत अखरता है
 जो काफी बिखरा हुवा और अस्पष्ट है , बाकी अभिनय की बात करे तो अजय देवगन सामान्य रहे ,
विशि  के रोल में जहा हँसाते है वही एजे के किरदार में उलझे हुए लगते है !
सोनाक्षी ने अपनेआप को दोहराया है ,यामी गौतम को उल्लेख करने जितनी फूटेज भी नहीं मिली ,फिल्म के दो किरदार असर छोड़ जाते है जिसमे जेवियर बने आनंद राज अपने गेट अप और भारी आवाज के साथ खलनायक के रोल को पूरी तरह से जीते है ,डॉन की सनकी बहन के किरदार में 'मनस्वी ' भी न्याय करती है ,उनका किरदार बोल्ड एवं क्रूर था जो उन्होंने बढ़िया निभाया !
कुणाल रॉय कपूर विशि के दोस्त 'मूसा ' के किरदार में हल्के फुल्के क्षण जरूर दे जाते है
 जो फिल्म में राहत प्रदान करते है ! संगीत पक्ष में गीत रिलीज के एक हफ्ते बाद भुला दिए जायेंगे
 इसलिए उल्लेखनीय नहीं है ,एक्शन ओवर रहा है ,
वही केबल के पुराने ट्रिक्स जिन्हे देख देख कर दर्शक उकता चुके है !
एक्शन प्रधान फिल्म में एक्शन की क्वालिटी न होना अखरता है ,
कुल मिला कर प्रभु देवा ने इस बार वह कमाल नहीं दिखाया जिसकी उनसे अपेक्षा की  जाती है !
डेढ़ स्टार
देवेन पाण्डेय

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