शनिवार, 27 सितंबर 2014

फिल्म एक नजर में : आई फ्रंकेस्टाईन

इंग्लिश ।
जेनर : एक्शन,फैंटसी,साईंस फिक्शन
फ्रंकेस्टाईन एक काल्पनिक चरित्र है जिसे आधार बना कर एक कालजयी उपन्यास लिखा गया
 जिसने सफलता के रिकार्ड तोड़े । इस चरित्र पर कई फिल्मे भी बन चुकी है ।
 इसी कड़ी में इस चरित्र को वर्तमान युग कल्पना करके कहानी का तानाबाना बुना गया है
 "आई फ्रंकेस्टाईन" में।
फिल्म की शुरुवात होती है फ्रंकेस्टाईन द्वारा अपने निर्माता "विक्टर फ्रंकेस्टाईन" की लाश को दफनाये जाने से , 
फ्रंकेस्टाईन एक मानवनिर्मित प्राणी है जिसे कई मानवो के अंगो से मिलाकर बनाया गया है ।
कब्रस्तान में फ्रंकेस्टाईन पर उसी वक्त कुछ शैतानी प्राणियों का हमला होता है,

लेकिन उस हमले को नेक शक्तियों के रक्षक "गार्गोइल्स" नाकाम कर देते है । 
गर्गोइल्स फ्रंकेस्टाईन को अपनी दुनिया में ले जाते है ,उनका मानना है के उसका जन्म ईश्वर की 
मर्जी के विरूद्ध है इसलिए उसका नष्ट होना जरुरी है ।
लेकिन गर्गोइल्स की क्वीन को फ्रंकेस्टाईन से हमदर्दी है जिसके कारण वह उसे जीवित छोड़ देती है

 और शैतानी हमलो से बचने की सलाह देती है ।
शैतानो का राजा "प्रिंस नैबेरियस" फ्रंकेस्टाईन की तलाश में है,वह उसके जैसे और प्राणी बना

 कर देवताओ की सत्ता को चनौती देना चाहता है ।
फ्रंकेस्टाईन अब चुप नहीं बैठना चाहता और वह इन शैतानो को खत्म करने की कसम खाता है । 

और इसी तरह दो सौ वर्ष बीत जाते है और घटनाए इक्कीसवी सदी में प्रवेश करती है । 
जिसमे फ्रंकेस्टाईन के खिलाफ गर्गोइल्स हो चुके है क्योकि उसने शैतानो के खिलाफ खुलेआम जंग छेड़ रखी है , इसी समय नैबेरियस द्वारा क्वीन का अपहरण कर लिया जाता है जिसे छुड़ाने के लिए
 गर्गोइल्स फ्रंकेस्टाईन के निर्माता की एकमात्र पुस्तक का सौदा करते है ,
जिसमें फ्रंकेस्टाईन को बनाने की कहानी दर्ज थी । 
अब फ्रंकेस्टाईन के सामने चुनौती है इस पुस्तक को हासिल करने की और क्वीन को बचाने की ।
 जिसके लिए उसे गार्गोइल्स और नोबेरियस की सेना से लड़ना है ।
यह है कहानी ,जिसे बड़े रोमांचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है ।
कहानी एक्शन से भरपूर है, फ्रंकेस्टाईन का इस युग में मौजूद होने की कल्पना और उसे पाने के लिए 

शैतान और रक्षको की लड़ाई का कांसेप्ट भी बढ़िया है ।
 कमी है तो फ्रंकेस्टाईन के चित्रण में । सदियों से जिस फ्रंकेस्टाईन की कल्पना हम करते आये है ,
यह वह सात फुट लम्बा और भीमकाय फ्रंकेस्टाईन नहीं है ।
 इसके बावजूद फिल्म देखते समय यह कमी खटकती नहीं है ।
शुरू से अंत तक फिल्म में गति है जिस वजह से फिल्म चुस्त है । 

एक्शन दृश्य और स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल बढिया है ,देख सकते है ।
तीन स्टार
देवेन पाण्डेय

बुधवार, 17 सितंबर 2014

फिल्म एक नजर में :मैरी कॉम

 निर्देशक :ओमंग कुमार कलाकार : प्रियंका चोपड़ा। 
अक्सर माना गया है के खेल पर आधारित फिल्मो से भावनात्मक लगाव महसुस नहीं होता
लेकिन "लगान ,चक दे इंडिया,भाग मिल्खा भाग 'जैसी फिल्मो ने सिर्फ इस 
मिथक को तोडा बल्कि खेल पर आधारित फिल्मो को भी नई दिशा दी। 
खेल पर आधारित फिल्म बनाना अलग है और किसी खिलाड़ी पर फिल्म बनाना अलग
जहा खेल पर आधारित फिल्मो में कल्पना से तानाबाना बुन कर फिल्म को दिलचस्प
और मनोरंजक बनाने की स्वतन्त्रता होती है तो वही बायोपिक बनाते समय हाथ बंध से
जाते है इसलिए फिल्म को नीरस बनाने से बचाने के लिए कुछ रचनात्मक छूट लेनी ही पडती है
क्योकि दर्शक अक्सर मनोरंजन का होता है।
निर्देशक ओमंग कुमार निस्संदेह प्रशंषा के पात्र है के उन्होंने समतोल बनाये रखा 
और फिल्म जो कही भी मूल विषय से भटकने नहीं दिया  
फिल्म की कहानी मणिपुर में अशांति से आरंभ होती है जहा उग्रवादी संगठनों के
कारण कर्फ्यू लगा हुवा है। उस अशांति के दौर में "चुम्नेजिंग "(प्रियंका चोपड़ा )
और उसका पति "ओन्लर "( दर्शन कुमार ) परेशान है क्योकि चुम्नेजिंग प्रसव पीड़ा से गुजर रही है  
इसके बाद कहानी भूतकाल में जाती है जब इसी अशांत माहौल में नन्ही चुम्नेजिंग को 
एक बोक्सिंग ग्लब मिलता है और उसके मन में बोक्सिंग के प्रति जूनून पैदा हो जाता है ,
किन्तु उसके पिता उसे एथलीट बनाना चाहते है। 
किन्तु गुस्सैल चुम्नेजिंग को बोक्सर ही बनना है ,और किस्मत से उसकी मुलाक़ात 
"कोच सिंग"(सुनील थापा) जो के बॉक्सिंग फेडरेशन में कोच है  
चुम्नेजिंग अपनी जिद से उन्हें अपना कोच बनने पर विवश करती है  
और उसे नया नाम मिलता है "मैरी कॉम" लेकिन उसने बॉक्सिंग की बात घर में नहीं बतायी 
और एक मैच में "मैरी" का सिलेक्शन हो जाता है ,मैच में विजयी होने के बाद यह बात मैरी के
पिता तक पहुँचती है जिससे खफा होकर वह मैरी से बात करना बंद कर देते है  
किन्तु मैरी का जुनून कम नहीं होता,इसी बिच फेडरेशन से मैरी की अनबन होती है 
और उसकी मुलाक़ात "ओन्लर " से होती है , मैरी बॉक्सिंग में अपने प्रदेश का नाम रोशन करती है
जिसके बाद उसके पिता को उस पर गर्व होता है
इसी बिच ओन्लर और मैरी विवाह कर लेते है जिस वजह से कोच सिंग को दुःख होता है और
वह मैरी को कैरियर के सुनहरे दौर में ऐसा फैसला लेने पर फटकारते है  
शादी के बाद मैरी जुड़वाँ बच्चो की माँ बनती है और बॉक्सिंग से दूर हो जाती है
लेकिन बॉक्सिंग के प्रति उसका लगाव ओन्लर जानता है और वह मैरी को दोबारा 
बॉक्सिंग के लिए प्रेरित करता है मैरी कोच सिंग के पास वापस आती है ,वे रिटायर हो चुके है
मैरी फिर से बॉक्सिंग रिंग में उतरती है और हार जाती है ,
जिसके लिए वह फेडरेशन को और आपसी अनबन को जिम्मेदार ठहराती है। 
इसके बाद उसके कैरियर में उतरन शुरू होती है,कभी बेटे की बिमारी तो कभी फेडरेशन
में राजनीति की शिकार होकर मैरी निराश हो जाती है
लेकिन ओन्लर की मदद से और कोच सिंग के साथ से अपने जूनून की बदौलत विपरीत 
परिस्थतियो पर मात करते हुए मैरी फिर से विजेता बनकर उभरती है  
यह थी कहानी जिसमे मैरी कॉम के जीवन को उकेरा गया ,उनके संघर्ष को दिखाया गया ,
प्रियंका चोपड़ा का अभिनय लाजवाब है
आपको फिल्म देखते समय प्रियंका चोपड़ा नजर नही आती बल्कि मैरी कॉम नजर आती है  
बेशक या फिल्म प्रियंका की बेतरीन फिल्मो में शीर्ष पर रहेगी
फिल्म की कहानी में भी गति है जो फिल्म को उबाऊ और बेमतलब की लम्बाई बनने नहीं देते ,
बेशक इसके लिए एडिटिंग की पूरी प्रशंषा की जानी चहिये  
फिल्म में गीतों की कमी है जो के होनी भी चाहिए ,बैकग्राउंड सशक्त है  
फिल्म में एक दृश्य है जब बॉक्सर बनने से खफा पिता को मैरी एक घडी तोहफे में देती है ,
उस दृश्य में बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ बता दिया गया है  
वही कोच सिंग की भूमिका में सुनील थापा भी अपना प्रभाव छोड़ जाते है तो मैरी के पति की भूमिका में दर्शन ने भी सहज अभिनय किया है जो कही भी बनावटी नहीं लगता
फिल्म की शूटिंग में अधिकतर पूर्वोत्तर भारत की रियल लोकेशंस का उपयोग किया गया है  
जो फिल्म को वास्तविक बनाने में सहायक होती है ,पूरी फिल्म में प्रियंका के अलावा एक भी चर्चित कलाकार नहीं है ,और यह कहानी की जरुरत भी है ,मैरी की माँ,पिता,मित्र आदि के किरदार में ऐसे लोग है
जिन्हें कोई जानता भी नहीं ,किन्तु अपने साहजिक अभिनय से हर किरदार स्थापित 
करने का कार्य बखूबी किया है। फिल्म चूँकि बॉक्सिंग पर आधारित है तो दर्शक शायद शानदार
बॉक्सिंग मूव्स देखने की उम्मीद भी रखता हो ,
किन्तु फिल्म में बॉक्सिंग सिक्वेंस में जबरदस्ती की उत्तेजना दिखाने से बचा गया है
जो इसे स्वाभाविक बनाती है क्लाईमैक्स दृश्य रोमांचित करता है तो 
उसमे थोड़ी नाटकीयता का पुट भी है ,किन्तु दर्शक उस दृश्य और मैरी के संघर्ष से 
खुद को जुड़ा हुवा पाता है। देखने लायक एवं प्रेरणादायक फिल्म जो हर वर्ग के लिए देखने लायक है  
प्रियंका की मेहनत साफ़ दिखती है, फिल्म देखते वक्त मैरी कॉम पर सम्मान की भावना में
और इजाफा होता है एक बहुत बढ़िया देखने लायक फिल्म  
फाईव स्टार देने लायक। 

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